जित्तू अधुरी कहानी के सपने देखता सोया पड़ा है। वह कैसे जगेगा? वह नहीं जगेगा तो देवी मन्दिर का खाँड़ा कौन उठाएगा...? एक-एक आदमी पापमुक्त कब तक होगा? उठ जित्तू! तुर-तुत्तु-उ-तू-ऊ-तू-ऊ!
ग्राम परानपुर, थाना रानीगंज, परगना हवेली...।
जिले के अन्य परगनावाले हवेली परगनावालों पर व्यंग्य करत लेते हुए कहते हैं-कहाँ घर है? हवेली परगना?...हवेली परगना में लड़का भी पैदा होता है?
परानपुर के नौजवानों ने हमेशा मुँहतोड़ उत्तर दिया है-“परगना हवेली में होने से क्या हआ? हम लोग परानपुर के प्रतिष्ठित समाज के वंशधर हैं।" नौजवानों की बात में सच्चाई है। परानपुर की प्रतिष्ठा सारे जिले में है। सबसे उन्नत गाँव समझा जाता है। इस इलाके में सबसे उन्नत गाँव है परानपुर। किन्तु, जिस तरह बाँस बढ़ते-बढ़ते अन्त में झुक जाता है, उसी तरह यह गाँव भी झुका है।...अब इस सब-डिवीज़न-भर के लोग यहाँ के दस वर्ष के लड़के से भी बात करते समय अपना पॉकेट एक बार टटोलकर देख लेते हैं। फारबिसगंज बाजार की किसी दुकान में चले जाइए, ज्यों ही मालूम हआ कि परानपुर का ग्राहक आया है, दुकानदार अपनी बिखरी हुई चीजों को समेटना शुरू कर देता है।...हाकिम-हक्काम भी यहाँ के लोगों से बातें करते समय इस बात का खयाल रखते हैं कि सिर्फ एक गाँव में, एक ही वर्ष के अन्दर सरकार के तीन-तीन विभागों के अधिकारियों की आँखों में धूल झोंकी गई।...ट्रेन के चेकर जानते हैं, परानपुर के लोग टिकट लेकर गाड़ी में नहीं चलते। चार्ज करनेवाले चेकर को रोड़े और पत्थरों से भाड़ा चुकाते हैं ये।
गाँव की आबादी है करीब सात-आठ हजार। विभिन्न जातियों के तेरह टोले हैं। मुसलमानटोली छोटी है, पचास घर रह गए हैं अब। परानपुर की पुरानी प्रतिष्ठा की रक्षा आज भी ये सामूहिक रूप से करने की बात सोच सकते हैं। पहले पढ़े-लिखे लोगों की ही बात लीजिए! आठ ग्रेजुएट, दो एम-ए-, एक शास्त्री (काशी विद्यापीठ), पचास मैट्रिक्युलेट, एक सौ मिडिल पास। डेढ़ दर्जन कवि, दो साहित्यालंकार और एक नाटककार। लड़कियाँ भी पढ़ी-लिखी हैं। जिले की एकमात्र साहित्यिक साप्ताहिक पत्रिका में एक कुमारी कवयित्री की रचनाएँ हमेशा सचित्र छपती हैं।...और रग्घू रामायनी को क्या कहिएगा? एक अक्षर का भी बोध जिसे नहीं, किन्तु बालकांड तक क्षेपक सहित जिसके कंठ में है! गोस्वामी तुलसीदास जिसे स्वप्न में दर्शन देते हैं...जो रामायण को गाँव की बोली में जोड़कर गाता है-सारंगी का गीत!
उस पुराने पोखरे के पास जो झंडे का बाँस दिखलाई पड़ता है, वही है स्कूल-उच्चांगल विद्यालय। सन् 1929 में ही मिडिल वर्नाकुलर स्कूल की स्थापना हुई थी। उच्चांगल तो दस साल से हुआ है। हाईस्कूल के लिए पैसे जिस वृद्ध दाता ने दिए थे, उसके लड़कों ने अपने पिता के नाम पर स्कूल के नामकरण का विरोध किया था! ‘चमरू चौधरी हाईस्कूल' नहीं, 'दि ब्राह्मण एच.ई.स्कल'! 'दि' जोड़ा है भिम्मल मामा ने। गत पाँच वर्षों से इस स्कल में कोई हेडमास्टर नहीं टिक पाते। जाति और पंचायत के झगड़े! गाँव की दलबन्दी के ऊपर चढ़े करेले की भुजिया कमिटी की कड़ाही में पूँजी जाती है न! पिछले साल हेडमास्टर ने कई मास्टरों को अपनी पार्टी में कर लिया और दूसरे ही दिन असिस्टेंट हेडमास्टर साहब की मरम्मत कर दी। असिस्टेंट हेडमास्टर साहब को विरोधी दल के लोगों के अलावा स्वजाति के लोगों की मदद मिली। गाँव में 'मेजरौटी' शब्द का अर्थ सभी समझते हैं। जब मेजरौटी है तो क्या बात है! सारे स्कूल को घेरकर लाठी, ईंटों और पत्थरों से सभी को अच्छी शिक्षा दी थी।...भिम्मल मामा ने इसलिए इस स्कूल के आगे 'दि' जोड़ दिया। एक कन्या विद्यालय है। उस केले के बड़े-बड़े पत्तों के बीच से जो नए मकान का हिस्सा दिखाई दे रहा है, वही है गर्ल स्कूल। गाँव की ही अध्यापिकाएँ हैं। विद्यालय की लड़कियाँ कोरस में जन-गण-मन बहुत सुन्दर गाती हैं।
डिस्ट्रिक्ट बोर्ड ने प्रस्ताव पास कर परानपुर अस्पताल को बन्द कर दिया है।... भूमिहार डॉक्टर को राजपूतों ने मिलकर धमकी दी। कायस्थ डॉक्टर के खिलाफ दरखास्त दी गई थी-पैसा लेकर भी दूसरी जातिवालों को बढ़िया दवा नहीं देता, और कायस्थों को मफ्त में दवा और सई देकर इलाज करता है।...डिस्ट्रिक्ट बोर्ड ने अस्पताल को बन्द कर दिया, पाँच साल पहले।
पुस्तकालय भी है। 1930 में ही स्थापना हई है। 1944 से सरकारी सहायता मिलती है। पाँच साल पहले रेडियो भी दिया गया, राज्य सरकार की ओर से। आजकल बन्द है।...पुस्तकालय के कुछ सदस्यों का कथन है-छित्तनबाबू के बड़े भाई साहब ने ही पुस्तकालय के लिए अपने बँगले की एक कोठरी दी थी। चार महीना पहले की बात है, छित्तनबाबू ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया-“यहाँ लायब्रेरी कहाँ है? खबरदार, यदि बँगले की सीढ़ी पर किसी ने पैर भी रखा तो फौजदारी हो जाएगी। ट्रेसपासिंग का मुकद्दमा कैसा होता है, किसी वकील से जाकर पूछो।"...छित्तनबाबू अन्यायी हैं, सार्वजनिक पुस्तकालय को इस तरह हथिया लेना छोटी बात नहीं! निन्दा का प्रस्ताव पास...।
छित्तनबाबू सुनाते हैं-“पिछले दस वर्षों से पुस्तकालयवाले सरकार से घरभाड़ा के नाम पर चालीस रुपए माहवार वसूलते हैं। पूछिए, कभी एक पैसा भी दिया है मुझे? चार-पाँच हजार रुपए की बात है, खेल नहीं।...कहाँ गए रुपए कुछ हिसाब तो होना चाहिए? सरकारी रेडियो बिकूबाबू की सुहागरात में बजने के लिए गया, उसी रात से उनके यहाँ खराब होकर पड़ा है। लेकिन, बैटरी का पैसा सरकार से बराबर वसूला गया है।"
बिकूबाबू और छित्तनबाबू के झगड़े में जातिवाद के पैंतरे। फिर से सेक्रेटरीप्रेसीडेंट कलह-कांडा...इसलिए, छित्तनबाब का पंचवर्षीय पत्र 'दीपशिखा' के पृष्ठों को काट-काटकर दीवार पर चिपकाता है, उसे कौन मना कर सकता है?
पिछले साल नवीन परानपुर ग्राम पुस्तकालय' खुला है। नाट्यशाला का पक्का स्टेज आज भी है। टीन की ऊँची छत आँधी में उड़ गई है। स्थापना1920 में। 1921 में राजबनैली चम्पानगर के दरबार में कलकत्ता की लड्डन कम्पनी को पानी-पानी कर दिया था परानपुर-नाटक-मंडली ने। चार-पाँच साल पहले तक नाटक खेले गए हैं। अब तो...।
बहुत उन्नत गाँव है परानपुर। सात-आठ हजार की आबादी है। प्रत्येक राजनीतिक पार्टी की शाखा है यहाँ। धार्मिक संस्थाओं के कई धुरन्धर धर्मध्वजी इस गाँव में विराजते हैं।...पंडित नेहरू तीन बार पदार्पण कर चुके हैं इस गाँव में। लाहौर कांग्रेस के बाद पहली बार, दूसरी बार 1936 दौरे पर और पिछले साल कोसी प्रोजेक्ट देखने आए थे जब।...
पिछले आठ चुनावों में सॉलिड वोट कांग्रेस को नहीं मिला, इसलिए इस बार सॉलिड वोट प्राप्त करने के लिए हर पार्टी को शाखा प्रत्येक मास अपनी बैठक में महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पास करती है।
पिछले आठ-दस वर्षों से जातिवाद ने काफी जोर पकड़ा है। राजनीतिक पार्टियाँ भी जातिवाद की सहायता से संगठन करना जायज समझती हैं। राजनीति के दंगल में सबकुछ माफ है।
गाँव में अंग्रेजी शब्दों के शुद्ध और अपभ्रंश रूप का धड़ल्ले से व्यवहार होता है-नामनेशन, मेजरौटी, पौलटीस, पौलीसी।
और सारे गाँव के मामा-भिम्मल मामा-पढ़े-लिखे पागल समझे जाते हैं। उनके गढ़े हुए शब्दों का प्रचलन हो रहा है धीरे-धीरे-दिमाकृषि, प्रद्युस, ट्राअर्थात डेमॉक्रेसी, प्रोड्यूस, टेलीग्राम!