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भाग 13

11 जून 2022

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खोह वाले तिलिस्म के अंदर बाग में कुँवर वीरेंद्रसिंह और योगी जी मे बातचीत होने लगी जिसे वनकन्या और इनके ऐयार बखूबी सुन रहे थे।

कुमार - ‘पहले यह कहिए चंद्रकांता जीती है या मर गई?’

योगी – ‘राम-राम, चंद्रकांता को कोई मार सकता है? वह बहुत अच्छी तरह से इस दुनिया में मौजूद है।’

कुमार - ‘क्या उससे और मुझसे फिर मुलाकात होगी?’

योगी – ‘जरूर होगी।’

कुमार - ‘कब?’

योगी - (वनकन्या की तरफ इशारा करके) – ‘जब यह चाहेगी।’

इतना सुन कुमार वनकन्या की तरफ देखने लगे। इस वक्त उसकी अजीब हालत थी। बदन में घड़ी-घड़ी कँपकँपी हो रही थी, घबराई-सी नजर पड़ती थी। उसकी ऐसी गति देख कर एक दफा योगी ने अपनी कड़ी और तिरछी निगाह उस पर डाली, जिसे देखते ही वह सँभल गई। कुँवर वीरेंद्रसिंह ने भी इसे अच्छी तरह से देखा और फिर कहा -

कुमार - ‘अगर आपकी कृपा होगी तो मैं चंद्रकांता से अवश्य मिल सकूँगा।’

योगी – ‘नहीं यह काम बिल्कुल (वनकन्या को दिखा कर) इसी के हाथ में है, मगर यह मेरे हुक्म में है, अस्तु आप घबराते क्यों हैं। और जो-जो बातें आपको पूछनी हो पूछ लीजिए, फिर चंद्रकांता से मिलने की तरकीब भी बता दी जाएगी।’

कुमार - ‘अच्छा यह बताइए कि यह वनकन्या कौन है?’

योगी – ‘यह एक राजा की लड़की है।’

कुमार - ‘मुझ पर इसने बहुत उपकार किए, इसका क्या सबब है?’

योगी - इसका यही सबब है कि कुमारी चंद्रकांता में और इसमें बहुत प्रेम है।’

कुमार - ‘अगर ऐसा है तो मुझसे शादी क्यों किया चाहती है?’

योगी – ‘तुम्हारे साथ शादी करने की इसको कोई जरूरत नहीं और न यह तुमको चाहती ही है। केवल चंद्रकांता की जिद्द से लाचार है, क्योंकि उसको यही मंजूर है।’

योगी की आखिरी बात सुन कर कुमार मन में बहुत खुश हुए और फिर योगी से बोले - ‘जब चंद्रकांता में और इनमे इतनी मुहब्बत है तो यह उसे मेरे सामने क्यों नहीं लातीं?’

योगी – ‘अभी उसका समय नहीं है।’

कुमार - ‘क्यो’

योगी – ‘जब राजा सुरेंद्रसिंह और जयसिंह को आप यहाँ लाएँगे, तब यह कुमारी चंद्रकांता को ला कर उनके हवाले कर देगी।’

कुमार - ‘तो मैं अभी यहाँ से जाता हूँ, जहाँ तक होगा उन दोनों को ले कर बहुत जल्द आऊँगा।’

योगी – ‘मगर पहले हमारी एक बात का जवाब दे लो।’

कुमार - ‘वह क्या?’

योगी - (वनकन्या की तरफ इशारा करके) ‘इस लड़की ने तुम्हारी बहुत मदद की है और तुमने तथा तुम्हारे ऐयारों ने इसे देखा भी है। इसका हाल और कौन-कौन जानता है और तुम्हारे ऐयारों के सिवाय इसे और किस-किस ने देखा है?’

कुमार - ‘मेरे और फतहसिंह के सिवाय इन्हें आज तक किसी ने नहीं देखा। आज ये ऐयार लोग इनको देख रहे हैं।’

वनकन्या – ‘एक दफा ये (तेजसिंह की तरफ बता कर) मुझसे मिल गए हैं, मगर शायद वह हाल इन्होंने आपसे न कहा हो, क्योंकि मैंने कसम दे दी थी।’

यह सुन कर कुमार ने तेजसिंह की तरफ देखा। उन्होंने कहा - ‘जी हाँ, यह उस वक्त की बात है, जब आपने मुझसे कहा था कि आजकल तुम लोगों की ऐयारी में उल्ली लग गई है। तब मैंने कोशिश करके इनसे मुलाकात की और कहा कि अपना पूरा हाल मुझसे जब तक न कहेंगी मैं न मानूँगा और आपका पीछा न छोडूँगा। तब इन्होंने कहा – “एक दिन वह आएगा कि चंद्रकांता और मै, कुमार की कहलाएँगी मगर इस वक्त तुम मेरा पीछा मत करो नहीं तो तुम्हीं लोगों के काम का हर्ज होगा।” तब मैंने कहा – “अगर आप इस बात की कसम खाएँ कि चंद्रकांता, कुमार को मिलेंगी तो इस वक्त मैं यहाँ से चला जाऊँ।” इन्होंने कहा – “तुम भी इस बात की कसम खाओ कि आज का हाल तब तक किसी से न कहोगे जब तक मेरा और कुमार का सामना न हो जाए।” आखिर इस बात की हम दोनों ने कसम खाई। यही सबब है कि पूछने पर भी मैंने यह सब हाल किसी से नहीं कहा, आज इनका और आपका पूरी तौर से सामना हो गया इसलिए कहता हूँ।’

योगी - (कुमार से) ‘अच्छा तो इस लड़की को सिवाय तुम्हारे तथा ऐयारों के और किसी ने नहीं देखा, मगर इसका हाल तो तुम्हारे लश्कर वाले जानते होंगे कि आजकल कोई नई औरत आई है जो कुमार की मदद कर रही है?’

कुमार - ‘नहीं, यह हाल भी किसी को मालूम नहीं, क्योंकि सिवाय ऐयारों के मैं और किसी से इनका हाल कहता ही न था और ऐयार लोग, सिवाय अपनी मंडली के दूसरे को किसी बात का पता क्यों देने लगे। हाँ, इनके नकाबपोश सवारों को हमारे लश्कर वालों ने कई दफा देखा है और इनका खत ले कर भी जब-जब कोई हमारे पास गया तब हमारे लश्कर वालों ने देख कर शायद कुछ समझा हो।’

योगी – ‘इसका कोई हर्ज नहीं, अच्छा यह बताओ कि तुम्हारी जुबानी राजा सुरेंद्रसिंह और जयसिंह ने भी कुछ इसका हाल सुना है?’

कुमार - ‘उन्होंने तो नहीं सुना हाँ, तेजसिंह के पिता जीतसिंह जी से मैंने सब हाल जरूर कह दिया था, शायद उन्होंने मेरे पिता से कहा हो।’

योगी – ‘नहीं, जीतसिंह यह सब हाल तुम्हारे पिता से कभी न कहेंगे। मगर अब तुम इस बात का खूब ख्याल रखो कि वनकन्या ने जो-जो काम तुम्हारे साथ किए हैं, उनका हाल किसी को न मालूम हो।’

कुमार - ‘मैं कभी न कहूँगा, मगर आप यह तो बताएँ कि इनका हाल किसी से न कहने में क्या फायदा सोचा है? अगर मैं किसी से कहूँगा तो इसमें इनकी तारीफ ही होगी।’

योगी – ‘तुम लोगों के बीच में चाहे इसकी तारीफ हो मगर जब यह हाल इसके माँ-बाप सुनेंगे तो उन्हें कितना रंज होगा? क्योंकि एक बड़े घर की लड़की का पराए मर्द से मिलना और पत्र-व्यवहार करना तथा ब्याह का संदेश देना इत्यादि कितने ऐब की बात है।’

कुमार - ‘हाँ, यह तो ठीक है। अच्छा, इनके माँ-बाप कौन हैं और कहाँ रहते हैं।’

योगी – ‘इसका हाल भी तुमको तब मालूम होगा जब राजा सुरेंद्रसिंह और महाराज जयसिंह यहाँ आएँगे और कुमारी चंद्रकांता उनके हवाले कर दी जाएगी।’

कुमार - ‘तो आप मुझे हुक्म दीजिए कि मैं इसी वक्त उन लोगों को लाने के लिए यहाँ से चला जाऊँ।’

योगी – ‘यहाँ से जाने का भला यह कौन-सा वक्त है। क्या शहर का मामला है? रात-भर ठहर जाओ, सुबह को जाना, रात भी अब थोड़ी ही रह गई है, कुछ आराम कर लो।’

कुमार - ‘जैसी आपकी मर्जी।’

गर्मी बहुत थी इस वजह से उसी मैदान में कुमार ने सोना पसंद किया। इन सभी के सोने का इंतजाम योगी जी के हुक्म से उसी वक्त कर दिया गया। इसके बाद योगी जी अपने कमरे की तरफ रवाना हुए और वनकन्या भी एक तरफ को चली गई।

थोड़ी-सी रात बाकी थी, वह भी उन लोगों को बातचीत करते बीत गई। अभी सूरज नहीं निकला था कि योगी जी अकेले फिर कुमार के पास आ मौजूद हुए और बोले - ‘मैं रात को एक बात कहना भूल गया था सो इस वक्त समझा देता हूँ। जब राजा जयसिंह इस खोह में आने के लिए तैयार हो जाएँ बल्कि तुम्हारे पिता और जयसिंह दोनों मिल कर इस खोह के दरवाजे तक आ जाएँ, तब पहले तुम उन लोगों को बाहर ही छोड़ कर अपने ऐयारों के साथ यहाँ आ कर हमसे मिल जाना, इसके बाद उन लोगों को यहाँ लाना, और इस वक्त स्नान-पूजा से छुट्टी पा कर तब यहाँ से जाओ।’

कुमार ने ऐसा ही किया, मगर योगी की आखिरी बात से इनको और भी ताज्जुब हुआ कि हमें पहले क्यों बुलाया।

कुछ खाने का सामान हो गया। कुमार और उनके ऐयारों को खिला-पिला कर योगी ने विदा कर दिया।

दोहरा कर लिखने की कोई जरूरत नहीं, खोह में घूमते-फिरते कुँवर वीरेंद्रसिंह और उनके ऐयार जिस तरह इस बाग तक आए थे, उसी तरह इस बाग से दूसरे और दूसरे से तीसरे में होते सब लोग खोह के बाहर हुए और एक घने पेड़ के नीचे सबों को बैठा, देवीसिंह कुमार के लिए घोड़ा लाने नौगढ़ चले गए।

थोड़ा दिन बाकी था जब देवीसिंह घोड़ा ले कर कुमार के पास पहुँचे, जिस पर सवार हो कर कुँवर वीरेंद्रसिंह अपने ऐयारों के साथ नौगढ़ की तरफ रवाना हुए।

नौगढ़ पहुँच कर अपने पिता से मुलाकात की और महल में जा कर अपनी माता से मिले। अपना कुल हाल किसी से नहीं कहा, हाँ, पन्नालाल वगैरह की जुबानी इतना हाल इनको मिला कि कोई जालिम खाँ इन लोगों का दुश्मन पैदा हुआ है जिसने विजयगढ़ में कई खून किए हैं और वहाँ की रियाया उसके नाम से काँप रही है, पंडित बद्रीनाथ उसको गिरफ्तार करने गए हैं, उनके जाने के बाद यह भी खबर मिली है कि एक आफत खाँ नामी दूसरा शख्स पैदा हुआ है जिसने इस बात का इश्तिहार दे दिया है कि फलाने रोज बद्रीनाथ का सिर ले कर महल में पहुँचूंगा, देखूँ मुझे कौन गिरफ्तार करता है।

इन सब खबरों को सुन कर कुँवर वीरेंद्रसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी बहुत घबराए और सोचने लगे कि जिस तरह हो विजयगढ़ पहुँचना चाहिए क्योंकि अगर ऐसे वक्त में वहाँ पहुँच कर महाराज जयसिंह की मदद न करेंगे और उन शैतानों के हाथ से वहाँ की रियाया को न बचाएँगे तो कुमारी चंद्रकांता को हमेशा के लिए ताना मारने की जगह मिल जाएगी और हम उसके सामने मुँह दिखाने लायक भी न रहेंगे।

इसके बाद यह भी मालूम हुआ कि जीतसिंह पंद्रह दिनों की छुट्टी ले कर कहीं गए हैं। इस खबर ने तेजसिंह को परेशान कर दिया। वह इस सोच में पड़ गए कि उनके पिता कहाँ गए, क्योंकि उनकी बिरादरी में कहीं कुछ काम न था जहाँ जाते, तब इस बहाने से छुट्टी ले कर क्यों गए?

तेजसिंह ने अपने घर में जा कर अपनी माँ से पूछा – ‘हमारे पिता कहाँ गए हैं?’ जिसके जवाब में उस बेचारी ने कहा - ‘बेटा, क्या ऐयारों के घर की औरतें इस लायक होती हैं कि उनके मालिक अपना ठीक-ठीक हाल उनसे कहा करें।’

इतना ही सुन कर तेजसिंह चुप हो गए। दूसरे दिन राजा सुरेंद्रसिंह के पूछने पर तेजसिंह ने इतना कहा – ‘हम लोग कुमारी चंद्रकांता को खोजने के लिए खोह में गए थे, वहाँ एक योगी से मुलाकात हुई जिसने कहा कि अगर महाराज सुरेंद्रसिंह और महाराज जयसिंह को ले कर यहाँ आओ तो मैं चंद्रकांता को बुला कर उसके बाप के हवाले कर दूँ। इसी सबब से हम लोग आपको और महाराज जयसिंह को लेने आए हैं।’

राजा सुरेंद्रसिंह ने खुश हो कर कहा - ‘हम तो अभी चलने को तैयार हैं मगर महाराज जयसिंह तो ऐसी आफत में फँस गए हैं कि कुछ कह नहीं सकते। पंडित बद्रीनाथ यहाँ से गए हैं, देखें क्या होता है। तुमने तो वहाँ का हाल सुना ही होगा।’

तेजसिंह – ‘मैं सब हाल सुन चुका हूँ, हम लोगों को वहाँ पहुँच कर मदद करना मुनासिब है।’

सुरेंद्रसिंह – ‘मैं खुद यह कहने को था। कुमार की क्या राय है, वे जाएँगे या नहीं?’

तेजसिंह – ‘आप खुद जानते हैं कि कुमार काल से भी डरने वाले नहीं, वह जालिम खाँ क्या चीज है।’

राजा – ‘ठीक है, मगर किसी वीर पुरुष का मुकाबला करना हम लोगों का धर्म है और चोर तथा डाकुओं या ऐयारों का मुकाबला करना तुम लोगों का काम है, क्या जाने वह छिप कर कहीं कुमार ही पर घात कर बैठे।’

तेजसिंह – ‘वीरों और बहादुरों से लड़ना कुमार का काम है सही, मगर दुष्ट, चोर-डाकू या और किसी को भी क्या मजाल है कि हम लोगों के रहते कुमार का बाल भी बाँका कर जाए।’

राजा – ‘हम तो नाम के आगे जान कोई चीज नहीं समझते, मगर दुष्ट घातियों से बचे रहना भी धर्म है। सिवाय इसके कुमार के वहाँ गए बिना कोई हर्ज भी नहीं है, अस्तु तुम लोग जाओ और महाराज जयसिंह की मदद करो। जब जालिम खाँ गिरफ्तर हो जाए तो महाराज को सब हाल कह-सुना कर यहाँ लेते आना, फिर हम भी साथ होकर खोह में चलेंगे।’

राजा सुरेंद्रसिंह की मर्जी, कुमार को इस वक्त विजयगढ़ जाने देने की नहीं समझ कर और राजा से बहुत जिद करना भी बुरा ख्याल करके तेजसिंह चुप ही रहे, अकेले ही विजयगढ़ जाने के लिए महाराज से हुक्म लिया और उनके खास हाथ की लिखा हुआ खत का खलीता ले कर विजयगढ़ की तरफ रवाना हुए।

कुछ दूर जा कर दोपहर की धूप घने जंगल के पेड़ों की झुरमुट में काटी और ठंडे हो रवाना हुए। विजयगढ़ पहुँच कर महल में आधी रात को ठीक उस वक्त पहुँचे जब बहुत से जवांमर्दों की भीड़ बटुरी हुई थी और हर एक आदमी चौकन्ना हो कर हर तरफ देख रहा था। यकायक पूरब की छत से धमाधम छः आदमी कूद कर बीचोंबीच भीड़ में आ खड़े हुए, जिनके आगे-आगे बद्रीनाथ का सिर हाथ में लिए आफत खाँ था।

तेजसिंह को अभी तक किसी ने नहीं देखा था, इस वक्त इन्होंने ललकार कर कहा - ‘पकड़ो इन नालायकों को, अब देखते क्या हो?’ इतना कह कर आप भी कमंद फैला कर उन लोगों की तरफ फेंका, तब तक बहुत से आदमी टूट पड़े। उन लोगों के हाथ में जो गेद मौजूद थे, जमीन पर पटकने लगे, मगर कुछ नहीं, वहाँ तो मामला ही ठंडा था, गेद क्या थी धोखे था। कुछ करते-धारते न बन पड़ा और सब-के-सब गिरफ्तार हो गए।

अब तेजसिंह को सभी ने देखा, आफत खाँ ने भी इनकी तरफ देखा और कहा - ‘तेज, मेमचे बद्री।’ इतना सुनते ही तेजसिंह ने आफत खाँ का हाथ पकड़ कर इनको सभी से अलग कर लिया और हाथ-पैर खोल गले से लगा लिया। सब शोर-गुल मचाने लगे - ‘हाँ-हाँ, यह क्या करते हो, यह तो बड़ा भारी दुष्ट है, इसी ने तो बद्रीनाथ को मारा है। देखो, इसी के हाथ में बेचारे बद्रीनाथ का सिर है, तुम्हें क्या हो गया कि इसके साथ नेकी करते हो?’

पर तेजसिंह ने घुड़क कर कहा - ‘चुप रहो, कुछ खबर भी है कि यह कौन हैं? बद्रीनाथ को मारना क्या खेल हो गया है?’

तेजसिंह की इज्जत को सब जानते थे। किसी की मजाल न थी कि उनकी बात काटता। आफत खाँ को उनके हवाले करना ही पड़ा, मगर बाकी पाँचों आदमियों को खूब मजबूती से बाँधा।

आफत खाँ का हाथ भी तेजसिंह ने छोड़ दिया और साथ-साथ लिए हुए महाराज जयसिंह की तरफ चले। चारों तरफ धूम मची थी, जालिम खाँ और उसके साथियों के गिरफ्तार हो जाने पर भी लोग काँप रहे थे, महाराज भी दूर से सब तमाशा देख रहे थे। तेजसिंह को आफत खाँ के साथ अपनी तरफ आते देख घबरा गए। म्यान से तलवार खींच ली।

तेजसिंह ने पुकार कर कहा - ‘घबराइए नहीं, हम दोनों आपके दुश्मन नहीं हैं। ये जो हमारे साथ हैं और जिन्हें आप कुछ और समझे हुए हैं, वास्तव में पंडित बद्रीनाथ हैं।’ यह कह आफत खाँ की दाढ़ी हाथ से पकड़ कर झटक दी जिससे बद्रीनाथ कुछ पहचाने गए।

आप महाराज जयसिंह का जी ठिकाने हुआ, पूछा - ‘बद्रीनाथ उनके साथ क्यों थे?’

बद्रीनाथ - ‘महाराज, अगर मैं उनका साथी न बनता तो उन लोगों को यहाँ तक ला कर गिरफ्तार कौन कराता?’

महाराज – ‘तुम्हारे हाथ में यह सिर किसका लटक रहा है?’

बद्रीनाथ - ‘मोम का, बिल्कुल बनावटी।’

अब तो धूम मच गई कि जालिम खाँ को बद्रीनाथ ऐयार ने गिरफ्तार कराया। इनके चारों तरफ भीड़ लग गई, एक पर एक टूटा पड़ता था। बड़ी ही मुश्किल से बद्रीनाथ उस झुंड से अलग किए गए। जालिम खाँ वगैरह को भी मालूम हो गया कि आफत खाँ कृपानिधान बद्रीनाथ ही थे, जिन्होंने हम लोगों को बेढ़ब धोखा दे कर फँसाया, मगर इस वक्त क्या कर सकते थे? हाथ-पैर सभी के बँधे थे, कुछ जोर नहीं चल सकता था, लाचार हो कर बद्रीनाथ को गालियाँ देने लगे। सच है जब आदमी की जान पर आ बनती है तब जो जी में आता है बकता है।

बद्रीनाथ ने उनकी गालियों का कुछ भी ख्याल न किया बल्कि उन लोगों की तरफ देख कर हँस दिया। इनके साथ बहुत से आदमी बल्कि महाराज तक हँस पड़े।

महाराज के हुक्म से सब आदमी महल के बाहर कर दिए गए, सिर्फ थोड़े से मामूली उमदा लोग रह गए और महल के अंदर ही कोठरी में हाथ-पैर जकड़ जालिम खाँ और उसके साथी बंद कर दिए गए। पानी मँगवा कर बद्रीनाथ का हाथ-पैर धुलवाया गया, इसके बाद दीवानखाने में बैठ कर बद्रीनाथ से सब खुलासा हाल जालिम खाँ के गिरफ्तार करने का पूछने लगे जिसको सुनने के लिए तेजसिंह भी व्याकुल हो रहे थे।

बद्रीनाथ ने कहा - ‘महाराज, इस दुष्ट जालिम खाँ से मिलने की पहली तरकीब मैंने यह की कि अपना नाम आफत खाँ रख कर इश्तिहार दिया और अपने मिलने का ठिकाना ऐसी बोली में लिखा कि सिवाय उसके या ऐयारों के किसी को समझ में न आए। यह तो मैं जानता ही था कि यहाँ इस वक्त कोई ऐयार नहीं है जो मेरी इस लिखावट को समझेगा।’

महाराज – ‘हाँ ठीक है, तुमने अपने मिलने का ठिकाना ‘टेटी-चोटी’ लिखा था, इसका क्या अर्थ है?’

बद्रीनाथ - ‘ऐयारी बोली में ‘टेटी-चोटी’ भयानक नाले को कहते हैं।’

इसके बाद बद्रीनाथ ने जालिम खाँ से मिलने का और गेद का तमाशा दिखला के धोखे का गेद उन लोगों के हवाले कर, भुलावा दे, महल में ले आने का पूरा-पूरा हाल कहा, जिसको सुन कर महाराज बहुत ही खुश हुए और इनाम में बहुत-सी जागीर बद्रीनाथ को देना चाही मगर उन्होंने उसको लेने से बिल्कुल इंकार किया और कहा कि बिना मालिक की आज्ञा के मैं आपसे कुछ नहीं ले सकता, उनकी तरफ से मैं जिस काम पर मुकर्रर किया गया था, जहाँ तक हो सका उसे पूरा कर दिया।

इसी तरह के बहुत से उज्र बद्रीनाथ ने किए जिसको सुन महाराज और भी खुश हुए और इरादा कर लिया कि किसी और मौके पर बद्रीनाथ को बहुत कुछ देंगे जबकि वे लेने से इंकार न कर सकेंगे। बात ही बात में सवेरा हो गया, तेजसिंह और बद्रीनाथ महाराज से विदा हो दीवान हरदयालसिंह के घर आए। 

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रचनाएँ
चंद्रकांता
5.0
पहला प्रसिद्ध उपन्यास चंद्रकांता सन्‌ 1888 ई. में काशी में प्रकाशित हुआ था। उसके चारो भागों के कुछ ही दिनों में कई संस्करण हो गए थे। चन्द्रकान्ता सन्तति (1894 - 1904): चन्द्रकान्ता की अभूतपूर्व सफलता से प्रेरित हो कर देवकीनन्दन खत्री ने चौबीस भागों वाले विशाल उपन्यास चंद्रकान्ता सन्तति की रचना की।
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भाग 1

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शाम का वक्त है,  कुछ-कुछ सूरज दिखाई दे रहा है, सुनसान मैदान में एक पहाड़ी के नीचे दो शख्स वीरेंद्रसिंह और तेजसिंह एक पत्थर की चट्टान पर बैठ कर आपस में बातें कर रहे हैं। वीरेंद्रसिंह की उम्र इक्कीस या

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भाग 2

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विजयगढ़ में क्रूरसिंह अपनी बैठक के अंदर नाजिम और अहमद दोनों ऐयारों के साथ बातें कर रहा है। क्रूरसिंह – ‘देखो नाजिम, महाराज का तो यह ख्याल है कि मैं राजा होकर मंत्री के लड़के को कैसे दामाद बनाऊँ, और च

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भाग 3

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कुछ-कुछ दिन बाकी है, चंद्रकांता, चपला और चंपा बाग में टहल रही हैं। भीनी-भीनी फूलों की महक धीमी हवा के साथ मिल कर तबीयत को खुश कर रही है। तरह-तरह के फूल खिले हुए हैं। बाग के पश्चिम की तरफ वाले आम के घन

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भाग 4

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तेजसिंह वीरेंद्रसिंह से रुखसत होकर विजयगढ़ पहुँचेगा और चंद्रकांता से मिलने की कोशिश करने लगे, मगर कोई तरकीब न बैठी, क्योंकि पहरे वाले बड़ी होशियारी से पहरा दे रहे थे। आखिर सोचने लगे कि क्या करना चाहिए

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भाग 5

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अहमद ने, जो बाग के पेड़ पर बैठा हुआ था जब देखा कि चपला ने नाजिम को गिरफ्तार कर लिया और महल में चली गई तो सोचने लगा कि चंद्रकांता, चपला और चंपा बस यही तीनों महल में गई हैं, नाजिम इन सभी के साथ नहीं गया

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भाग 6

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तेजसिंह को विजयगढ़ की तरफ विदा कर वीरेंद्रसिंह अपने महल में आए मगर किसी काम में उनका दिल न लगता था। हरदम चंद्रकांता की याद में सिर झुकाए बैठे रहना और जब कभी निराश हो जाना तो चंद्रकांता की तस्वीर अपने

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भाग 7

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अहमद के पकड़े जाने से नाजिम बहुत उदास हो गया और क्रूरसिंह को तो अपनी ही फिक्र पड़ गई कि कहीं तेजसिंह मुझको भी न पकड़ ले जाए। इस खौफ से वह हरदम चौकन्ना रहता था, मगर महाराज जयसिंह के दरबार में रोज आता औ

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भाग 8

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वीरेंद्रसिंह चंद्रकांता से मीठी-मीठी बातें कर रहे हैं, चपला से तेजसिंह उलझ रहे हैं, चंपा बेचारी इन लोगों का मुँह ताक रही है। अचानक एक काला कलूटा आदमी सिर से पैर तक आबनूस का कुंदा, लाल-लाल आँखें, लंगोट

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भाग 9

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वीरेंद्रसिंह और तेजसिंह बाग के बाहर से अपने खेमे की तरफ रवाना हुए। जब खेमे में पहुँचे तो आधी रात बीत चुकी थी, मगर तेजसिंह को कब चैन पड़ता था, वीरेंद्रसिंह को पहुँचा कर फिर लौटे और अहमद की सूरत बना क्र

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भाग 10

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क्रूरसिंह की तबाही का हाल शहर-भर में फैल गया। महारानी रत्नगर्भा (चंद्रकांता की माँ) और चंद्रकांता इन सभी ने भी सुना। कुमारी और चपला को बड़ी खुशी हुई। जब महाराज महल में गए तो हँसी-हँसी में महारानी ने क

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भाग 11

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क्रूरसिंह को बस एक यही फिक्र लगी हुई थी कि जिस तरह बने वीरेंद्रसिंह और तेजसिंह को मार डालना ही नहीं चाहिए, बल्कि नौगढ़ का राज्य ही गारत कर देना चाहिए। नाजिम को साथ लिए चुनारगढ़ पहुँचा और शिवदत्त के दर

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भाग 12

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वीरेंद्रसिंह और तेजसिंह नौगढ़ के किले के बाहर निकल बहुत से आदमियों को साथ लिए चंद्रप्रभा नदी के किनारे बैठ शोभा देख रहे थे। एक तरफ से चंद्रप्रभा दूसरी तरफ से करमनाशा नदी बहती हुई आई हैं और किले के नीच

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भाग 13

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तीन पहर रात गुजर गई, उनके सब दोस्त जो बेहोश पड़े थे वह भी होश में आए मगर अपनी हालत देख-देख हैरान थे। लोगों ने पूछा - ‘आप लोग कैसे बेहोश हो गए और दीवान साहब कहाँ हैं?’ उन्होंने कहा - ‘एक गंधी इत्र बेच

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भाग 14

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नौगढ़ और विजयगढ़ का राज पहाड़ी है, जंगल भी बहुत भारी और घना है, नदियाँ चंद्रप्रभा और कर्मनाशा घूमती हुईं इन पहाड़ों पर बहती हैं। जाबूजा खोह और दर्रे पहाड़ों में बड़े खूबसूरत कुदरती बने हुए हैं। पेड़ों

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भाग 15

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हम पहले यह लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त के यहाँ जितने ऐयार हैं सभी को तेजसिंह पहचानते हैं। अब तेजसिंह को यह जानने की फिक्र हुई कि उनमें से कौन-कौन चार आए हैं, इसलिए दूसरे दिन शाम के वक्त उन्होंने अप

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भाग 16

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एक दिन तेजसिंह बालादवी के लिए विजयगढ़ के बाहर निकले। पहर दिन बाकी था जब घूमते-फिरते बहुत दूर निकल गए। देखा कि एक पेड़ के नीचे कुँवर वीरेंद्रसिंह बैठे हैं। उनकी सवारी का घोड़ा पेड़ से बँधा हुआ है, सामन

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भाग 17

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चपला कोई साधारण औरत न थी। खूबसूरती और नजाकत के अलावा उसमें ताकत भी थी। दो-चार आदमियों से लड़ जाना या उनको गिरफ्तार कर लेना उसके लिए एक अदना-सा काम था, शस्त्र विद्या को पूरे तौर पर जानती थी। ऐयारी के फ

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भाग 18

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अब महाराज शिवदत्त की महफिल का हाल सुनिए। महाराज शिवदत्तसिंह महफिल में आ विराजे। रंभा के आने में देर हुई तो एक चोबदार को कहा कि जा कर उसको बुला लाएँ और चेतराम ब्राह्मण को तेजसिंह को लाने के लिए भेजा।

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भाग 19

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तेजसिंह को छुड़ाने के लिए जब चपला चुनारगढ़ गई तब चंपा ने जी में सोचा कि ऐयार तो बहुत से आए हैं और मैं अकेली हूँ, ऐसा न हो, कभी कोई आफत आ जाए। ऐसी तरकीब करनी चाहिए जिसमें ऐयारों का डर न रहे और रात को भ

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भाग 20

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महाराज शिवदत्तसिंह ने घसीटासिंह और चुन्नीलाल को तेजसिंह को पकड़ने के लिए भेज कर दरबार बर्खास्त किया और महल में चले गए, मगर दिल उनका रंभा की जुल्फों में ऐसा फँस गया था कि किसी तरह निकल ही नहीं सकता था।

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भाग 21

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दूसरे दिन महाराज जयसिंह दरबार में बैठे हरदयालसिंह से तेजसिंह का हाल पूछ रहे थे कि अभी तक पता लगा या नहीं, कि इतने में सामने से तेजसिंह एक बड़ा भारी गट्ठर पीठ पर लादे हुए आ पहुँचे। गठरी तो दरबार के बीच

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भाग 22

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सुबह होते ही कुमार नहा-धो कर जंगी कपड़े पहन हथियारों को बदन पर सजा माँ-बाप से विदा होने के लिए महल में गए। रानी से महाराज ने रात ही सब हाल कह दिया था। वे इनका फौजी ठाठ देख कर दिल में बहुत खुश हुईं। कु

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भाग 23

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शाम को महाराज से मिलने के लिए वीरेंद्रसिंह गए। महाराज उन्हें अपनी बगल में बैठा कर बातचीत करने लगे। इतने में हरदयालसिंह और तेजसिंह भी आ पहुँचे। महाराज ने हाल पूछा। उन्होंने अर्ज किया कि फौज मुकाबले में

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चंद्रकांता दूसरा - भाग 1

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इस आदमी को सभी ने देखा मगर हैरान थे कि यह कौन है, कैसे आया और क्या कह गया। तेजसिंह ने जोर से पुकार के कहा - ‘आप लोग चुप रहें, मुझको मालूम हो गया कि यह सब ऐयारी हुई है, असल में कुमारी और चपला दोनों जीत

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भाग 2

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मामूली वक्त पर आज महाराज ने दरबार किया। कुमार और तेजसिंह भी हाजिर हुए। आज का दरबार बिल्कुल सुस्त और उदास था, मगर कुमार ने लड़ाई पर जाने के लिए महाराज से इजाजत ले ली और वहाँ से चले गए। महाराज भी उदासी

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भाग 3

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कुछ दिन बाकी है, एक मैदान में हरी-हरी दूब पर पंद्रह-बीस कुर्सियाँ रखी हुई हैं और सिर्फ तीन आदमी कुँवर वीरेंद्रसिंह, तेजसिंह और फतहसिंह सेनापति बैठे हैं, बाकी कुर्सियाँ खाली पड़ी हैं। उनके पूरब की तरफ

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भाग 4

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महाराज शिवदत्त का शमला लिए हुए देवीसिंह कुँवर वीरेंद्रसिंह के पास पहुँचे और जो कुछ हुआ था बयान किया। कुमार यह सुन कर हँसने लगे और बोले - ‘चलो सगुन तो अच्छा हुआ?’ तेजसिंह ने कहा - ‘सबसे ज्यादा अच्छा

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भाग 5

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‘चंद्रकांता को ले जा कर कहाँ रखा होगा? अच्छे कमरे में या अँधेरी कोठरी में? उसको खाने को क्या दिया होगा और वह बेचारी सिवाय रोने के क्या करती होगी। खाने-पीने की उसे कब सुध होगी। उसका मुँह दु:ख और भय से

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भाग 6

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तेजसिंह चंद्रकांता और चपला का पता लगाने के लिए कुँवर वीरेंद्रसिंह से विदा हो फौज के हाते के बाहर आए और सोचने लगे कि अब किधर जाएँ, कहाँ ढूँढ़े? दुश्मन की फौज में देखने की तो कोई जरूरत नहीं क्योंकि वहाँ

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भाग 7

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अब सवेरा होने ही वाला था, महल में लौंडियों की आँखें खुलीं तो महारानी को न देख कर घबरा गईं, इधर-उधर देखा, कहीं नहीं। आखिर खूब गुल-शोर मचा, चारों तरफ खोज होने लगी, पर कहीं पता न लगा। यह खबर बाहर तक फैल

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भाग 8

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जिस जंगल में कुमार और देवीसिंह बैठे थे और उस सिपाही को पेड़ से बाँधा था वह बहुत ही घना था। वहाँ जल्दी किसी की पहुँच नहीं हो सकती थी। तेजसिंह के चले जाने पर कुमार और देवीसिंह एक साफ पत्थर की चट्टान पर

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भाग 9

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तेजसिंह पहरे वाले सिपाही की सूरत में किले के दरवाजे पर पहुँचे। कई सिपाहियों ने जो सवेरा हो जाने के सबब जाग उठे थे तेजसिंह की तरफ देख कर कहा - ‘जैरामसिंह, तुम कहाँ चले गए थे? यहाँ पहरे में गड़बड़ पड़ ग

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भाग 10

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चुनारगढ़ के किले के अंदर महाराज शिवदत्त के खास महल में एक कोठरी के अंदर जिसमें लोहे के छड़दार किवाड़ लगे हुए थे, हाथों में हथकड़ी, पैरों में बेड़ी पड़ी हुई, दरवाजे के सहारे उदास मुख वीरेंद्रसिंह बैठे

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भाग 11

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कुमारी के पास आते हुए चपला को नीचे से कुँवर वीरेंद्रसिंह वगैरह सभी ने देखा। ऊपर से चपला पुकार कर कहने लगी - ‘जिस खोह में हम लोगों को शिवदत्त ने कैद किया था उसके लगभग सात कोस दक्षिण एक पुराने खँडहर में

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भाग 12

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चार दिन रास्ते में लगे, पाँचवे दिन चुनारगढ़ की सरहद में फौज पहुँची। महाराज शिवदत्त के दीवान ने यह खबर सुनी तो घबरा उठे, क्योंकि महाराज शिवदत्त तो कैद हो ही चुके थे, लड़ने की ताकत किसे थी। बहुत-सी नजर

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भाग 13

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महाराज जयसिंह, कुँवर वीरेंद्रसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी खँडहर की सैर करने के लिए उसके अंदर गए। जाते ही यकीन हो गया कि बेशक यह तिलिस्म है। हर एक तरफ वे लोग घुसे और एक-एक चीज को अच्छी तरह दे

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भाग 14

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रात-भर जगन्नाथ ज्योतिषी रमल फेंकने और विचार करने में लगे रहे। कुँवर वीरेंद्रसिंह, तेजसिंह और देवीसिंह भी रात-भर पास ही बैठे रहे। सब बातों को देख-भाल कर ज्योतिषी जी ने कहा - ‘रमल से मालूम होता है कि इस

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भाग 15

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दूसरे दिन स्नान-पूजा से छुट्टी पा कर कुँवर वीरेंद्रसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी फिर उस खँडहर में घुसे, सिरका साथ में लेते गए। कल जो पत्थर निकला था उस पर जो कुछ लिखा था फिर पढ़ के याद कर लिया

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भाग 16

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इन फूलों को पा कर तेजसिंह जितने खुश हुए शायद अपनी उम्र में आज तक कभी ऐसे खुश न हुए होंगे। एक तो पहले ही ऐयारी में बढ़े-चढ़े थे, आज इन फूलों ने इन्हें और बढ़ा दिया। अब कौन है जो इनका मुकाबला करे? हाँ ए

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भाग 17

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तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी के चले जाने पर कुमार बहुत देर तक सुस्त बैठे रहे। तरह-तरह के ख्याल पैदा होते रहे, जरा खटका हुआ और दरवाजे की तरफ देखने लगते कि शायद तेजसिंह या देवीसिंह आते हों, जब किसी

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चंद्रकांता तीसरा भाग -1

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वह नाजुक औरत जिसके हाथ में किताब है और जो सब औरतों के आगे-आगे आ रही है, कौन और कहाँ की रहने वाली है, जब तक यह न मालूम हो जाए तब तक हम उसको वनकन्या के नाम से लिखेंगे। धीरे-धीरे चल कर वनकन्या जब उन पेड

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भाग 2

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कुँवर वीरेंद्रसिंह बैठे फतहसिंह से बातें कर रहे थे कि एक मालिन जो जवान और कुछ खूबसूरत भी थी हाथ में जंगली फूलों की डाली लिए कुमार के बगल से इस तरह निकली जैसे उसको यह मालूम नहीं कि यहाँ कोई है। मुँह से

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भाग 3

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कल रात से आज की रात कुमार को और भी भारी गुजरी। बार-बार उस बरवे को पढ़ते रहे। सवेरा होते ही उठे, स्नान-पूजा कर जंगल में जाने के लिए तेजसिंह को बुलाया, वे भी आए। आज फिर तेजसिंह ने मना किया मगर कुमार ने

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भाग 4

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तिलिस्मी खँडहर में घुस कर पहले वे उस दालान में गए जहाँ पत्थर के चबूतरे पर पत्थर ही का आदमी सोया हुआ था। कुमार ने इसी जगह से तिलिस्म तोड़ने में हाथ लगाया। जिस चबूतरे पर पत्थर का आदमी सोया था उसके सिरह

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भाग 5

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तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी के जाने के बाद कुँवर वीरेंद्रसिंह इन लोगों के वापस आने के इंतजार में रात-भर जागते रह गए। ज्यों-ज्यों रात गुजरती थी कुमार की तबीयत घबराती थी। सवेरा होने ही वाला था जब य

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भाग 6

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देवीसिंह और ज्योतिषी जी वनकन्या की टोह में निकल कर थोड़ी ही दूर गए होंगे कि एक नकाबपोश सवार मिला। जिसने पुकार कर कहा - ‘देवीसिंह कहाँ जाते हो? तुम्हारी चालाकी हम लोगों से न चलेगी, अभी कल आप लोगों की ख

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भाग 7

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आज तेजसिंह के वापस आने और बाँके-तिरछे जवान के पहुँच कर बातचीत करने और खत लिखने में देर हो गई, दो पहर दिन चढ़ आया। तेजसिंह ने बद्रीनाथ को होश में ला कर पहरे में किया और कुमार से कहा - ‘अब स्नान-पूजा कर

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भाग 8

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देवीसिंह उस बुढ़िया के पीछे रवाना हुए। जब तक दिन बाकी रहा बुढ़िया चलती गई। उन्होंने भी पीछा न छोड़ा। कुछ रात गए तक वह चुड़ैल एक छोटे से पहाड़ के दर्रे में पहुँची जिसके दोनों तरफ ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ थी

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भाग 9

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जब दरबार बर्खास्त हुआ आधी रात जा चुकी थी। फतहसिंह दीवान साहब को ले कर अपने खेमे में गए। थोड़ी देर बाद कुमार के खेमे में तेजसिंह, देवीसिंह, और ज्योतिषी जी फिर इकट्ठे हुए। उस वक्त सिवाय इन चारों आदमियों

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भाग 10

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सुबह को कुमार ने स्नान-पूजा से छुट्टी पा कर तिलिस्म तोड़ने का इरादा किया और तीनों ऐयारों को साथ ले तिलिस्म में घुसे। कल की तरह तहखाने और कोठरियों में से होते हुए उसी बाग में पहुँचे। स्याह पत्थर के दाल

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भाग 11

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तेजसिंह को तिलिस्म में से खजाने के संदूकों को निकलवा कर नौगढ़ भेजवाने में कई दिन लगे क्योंकि उसके साथ पहरे वगैरह का बहुत कुछ इंतजाम करना पड़ा। रोज तिलिस्म में जाते और पहर दिन जब बाकी रहता तिलिस्म से ब

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भाग 12

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कुँवर वीरेंद्रसिंह के गायब होने से उनके लश्कर में खलबली पड़ गई। तेजसिंह और देवीसिंह ने घबरा कर चारों तरफ खोज की मगर कुछ पता न लगा। दिन भर बीत जाने पर ज्योतिषी जी ने तेजसिंह से कहा - ‘रमल से जान पड़ता

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भाग 13

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कुँवर वीरेंद्रसिंह धीरे-धीरे बेहोश हो कर उस गद्दी पर लेट गए। जब आँख खुली अपने को एक पत्थर की चट्टान पर सोए पाया। घबरा कर इधर-उधर देखने लगे। चारों तरफ ऊँची-ऊँची पहाड़ी, बीच में बहता चश्मा, किनारे-किनार

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भाग 14

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कुमार के गायब हो जाने के बाद तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी उनकी खोज में निकले हैं। इस खबर को सुन कर महाराज शिवदत्त के जी में फिर बेईमानी पैदा हुई। एकांत में अपने ऐयारों और दीवान को बुला कर उसने कहा

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भाग 15

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चुनारगढ़ के पास दो पहाड़ियों के बीच के एक नाले के किनारे शाम के वक्त पंडित बद्रीनाथ, रामनारायण, पन्नालाल, नाजिम और अहमद बैठे आपस में बातें कर रहे हैं। नाजिम – ‘क्या कहें हमारा मालिक तो बहिश्त में चला

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भाग 16

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राजा सुरेंद्रसिंह भी नौगढ़ से रवाना हो, दौड़े-दौड़े बिना मुकाम किए दो रोज में चुनारगढ़ के पास पहुँचे। शाम के वक्त महाराज जयसिंह को खबर लगी। फतहसिंह सेनापति को, जो उनके लश्कर के साथ थे, इस्तकबाल के लिए

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भाग 17

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फतहसिंह सेनापति की बहादुरी ने किले वालों के छक्के छुड़ा दिए। यही मालूम होता था कि अगर इसी तरह रात-भर लड़ाई होती रही तो सवेरे तक किला हाथ से जाता रहेगा और फाटक टूट जाएगा। आश्चर्य में पड़े बद्रीनाथ वगैर

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भाग 18

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तेजसिंह वगैरह ऐयारों के साथ कुमार खोह से निकल कर तिलिस्म की तरफ रवाना हुए। एक रात रास्ते में बिता कर दूसरे दिन सवेरे जब रवाना हुए तो एक नकाबपोश सवार दूर से दिखाई पड़ा, जो कुमार की तरफ ही आ रहा था। जब

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भाग 19

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दिन अनुमानतः पहर भर के आया होगा कि फतहसिंह की फौज लड़ती हुई, फिर किले के दरवाजे तक पहुँची। शिवदत्त की फौज बुर्जियों पर से गोलों की बौछार मार कर उन लोगों को भगाना चाहती थी कि यकायक किले का दरवाजा खुल ग

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भाग 20

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तिलिस्म के दरवाजे पर कुँवर वीरेंद्रसिंह का डेरा खड़ा हो गया। खजाना पहले ही निकाल चुके थे, अब कुल दो टुकड़े तिलिस्म के टूटने को बाकी थे, एक तो वह चबूतरा जिस पर पत्थर का आदमी सोया था, दूसरे अजदहे वाले द

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चंद्रकांता चौथा भाग 1

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वनकन्या को यकायक जमीन से निकल कर पैर पकड़ते देख वीरेंद्रसिंह एकदम घबरा उठे। देर तक सोचते रहे कि यह क्या मामला है, यहाँ वनकन्या क्यों कर आ पहुँची और यह योगी कौन हैं जो इसकी मदद कर रहे हैं? आखिर बहुत द

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भाग 2

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आखिर कुँवर वीरेंद्रसिंह ने तेजसिंह से कहा - ‘मुझे अभी तक यह न मालूम हुआ कि योगी जी ने उँगली के इशारे से तुम्हें क्या दिखाया और इतनी देर तक तुम्हारा ध्यान कहाँ अटका रहा, तुम क्या देखते रहे और अब वे दोन

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भाग 3

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यह तो मालूम हुआ कि कुमारी चंद्रकांता जीती है, मगर कहाँ है और उस खोह में से क्यों कर निकल गई, वनकन्या कौन है, योगी जी कहाँ से आए, तेजसिंह को उन्होंने क्या दिखाया इत्यादि बातों को सोचते और ख्याल दौड़ाते

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राजा सुरेंद्रसिंह के सिपाहियों ने महाराज शिवदत्त और उनकी रानी को नौगढ़ पहुँचाया। जीतसिंह की राय से उन दोनों को रहने के लिए सुंदर मकान दिया गया। उनकी हथकड़ी-बेड़ी खोल दी गई, मगर हिफाजत के लिए मकान के च

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भाग 5

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कुँवर वीरेंद्रसिंह तीनों ऐयारों के साथ खोह के अंदर घूमने लगे। तेजसिंह ने इधर-उधर के कई निशानों को देख कर कुमार से कहा - ‘बेशक यहाँ का छोटा तिलिस्म तोड़ कर कोई खजाना ले गया। जरूर कुमारी चंद्रकांता को भ

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भाग 7

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विजयगढ़ के महाराज जयसिंह को पहले यह खबर मिली थी कि तिलिस्म टूट जाने पर भी कुमारी चंद्रकांता की खबर न लगी। इसके बाद यह मालूम हुआ कि कुमारी जीती-जागती है और उसी की खोज में वीरेंद्रसिंह फिर खोह के अंदर ग

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भाग 8

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बद्रीनाथ, जालिम खाँ की फिक्र में रवाना हुए। वह क्या करेंगे, कैसे जालिम खाँ को गिरफ्तार करेंगे इसका हाल किसी को मालूम नहीं। जालिम खाँ ने आखिरी इश्तिहार में महाराज को धमकाया था कि अब तुम्हारे महल में डा

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कुँवर वीरेंद्रसिंह तीसरे बाग की तरफ रवाना हुए, जिसमें राजकुमारी चंद्रकांता की दरबारी तस्वीर देखी थी और जहाँ कई औरतें कैदियों की तरह इनको गिरफ्तार करके ले गई थीं। उसमें जाने का रास्ता इनको मालूम था। ज

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भाग 10

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जो कुछ दिन बाकी था, दीवान हरदयालसिंह ने जासूसों को इकट्ठा करने और समझाने-बुझाने में बिताया। शाम को सब जासूसों को साथ ले हुक्म के मुताबिक महाराज जयसिंह के पास बाग में हाजिर हुए। खुद महाराज जयसिंह ने ज

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भाग 11

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विजयगढ़ के पास भयानक जंगल में नाले के किनारे एक पत्थर की चट्टान पर दो आदमी आपस में धीरे-धीरे बातचीत कर रहे हैं। चाँदनी खूब छिटकी हुई है जिसमें इन लोगों की सूरत और पोशाक साफ दिखाई पड़ती है। दोनों आदमिय

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भाग 12

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वह दिन आ गया कि जब बारह बजे रात को बद्रीनाथ का सिर ले कर आफत खाँ महल में पहुँचे। आज शहर भर में खलबली मची हुई थी। शाम ही से महाराज जयसिंह खुद सब तरह का इंतजाम कर रहे थे। बड़े-बड़े बहादुर और फुर्तीले जव

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भाग 13

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खोह वाले तिलिस्म के अंदर बाग में कुँवर वीरेंद्रसिंह और योगी जी मे बातचीत होने लगी जिसे वनकन्या और इनके ऐयार बखूबी सुन रहे थे। कुमार - ‘पहले यह कहिए चंद्रकांता जीती है या मर गई?’ योगी – ‘राम-राम, चंद

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भाग 14

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सुबह को खुशी-खुशी महाराज ने दरबार किया। तेजसिंह और बद्रीनाथ भी बड़ी इज्जत से बैठाए गए। महाराज के हुक्म से जालिम खाँ और उसके चारों साथी दरबार में लाए गए जो हथकड़ी-बेड़ी से जकड़े हुए थे। हुक्म पा तेजसिं

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भाग 15

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दो घंटे बाद दरबार के बाहर से शोरगुल की आवाज आने लगी। सभी का ख्याल उसी तरफ गया। एक चोबदार ने आ कर अर्ज किया कि पंडित बद्रीनाथ उस खूनी को पकड़े लिए आ रहे हैं। उस खूनी को कमंद से बाँधे साथ लिए हुए पंडित

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पाठक, अब वह समय आ गया कि आप भी चंद्रकांता और कुँवर वीरेंद्रसिंह को खुश होते देख खुश हों। यह तो आप समझते ही होंगे कि महाराज जयसिंह विजयगढ़ से रवाना होकर नौगढ़ जाएँगे और वहाँ से राजा सुरेंद्रसिंह और कुम

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भाग 17

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अपनी जगह पर दीवान हरदयालसिंह को छोड़, तेजसिंह और बद्रीनाथ को साथ ले कर महाराज जयसिंह विजयगढ़ से नौगढ़ की तरफ रवाना हुए। साथ में सिर्फ पाँच सौ आदमियों का झमेला था। एक दिन रास्ते में लगा, दूसरे दिन नौगढ

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भाग 18

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दिन दोपहर से कुछ ज्यादा जा चुका था। उस वक्त तक कुमार ने स्नान-पूजा कुछ नहीं की थी। लश्कर में जा कर कुमार राजा सुरेंद्रसिंह और महाराज जयसिंह से मिले और सिद्धनाथ योगी का संदेशा दिया। दोनों ने पूछा कि ब

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भाग 19

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बहुत सवेरे महाराज जयसिंह, राजा सुरेंद्रसिंह और कुमार अपने कुल ऐयारों को साथ ले खोह के दरवाजे पर आए। तेजसिंह ने दोनों ताले खोले जिन्हें देख महाराज जयसिंह और सुरेंद्रसिंह बहुत हैरान हुए। खोह के अंदर जा

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महाराज जयसिंह और सुरेंद्रसिंह के पूछने पर सिद्धनाथ बाबा ने इस दिलचस्प पहाड़ी और कुमारी चंद्रकांता का हाल कहना शुरू किया। बाबा जी – ‘मुझे मालूम था कि यह पहाड़ी एक छोटा-सा तिलिस्म है और चुनारगढ़ के इला

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भाग 21

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सिद्धनाथ योगी ने कहा - ‘पहले इस खोह का दरवाजा खोल मैं इसके अंदर पहुँचा और पहाड़ी के ऊपर एक दर्रे में बेचारी चंद्रकांता को बेबस पड़े हुए देखा। अपने गुरु से मैं सुन चुका था कि इस खोह में कई छोटे-छोटे बा

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भाग 22

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बाबा जी यहाँ से उठ कर महाराज जयसिंह वगैरह को साथ ले दूसरे बाग में पहुँचे और वहाँ घूम-फिर कर तमाम बाग, इमारत, खजाना और सब असबाबों को दिखाने लगे जो इस तिलिस्म में से कुमारी ने पाया था। महाराज जयसिंह उन

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भाग 23

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जिस राह से कुँवर वीरेंद्रसिंह वगैरह आया-जाया करते थे और महाराज जयसिंह वगैरह आए थे, वह राह इस लायक नहीं थी कि कोई हाथी, घोड़ा या पालकी पर सवार हो कर आए और ऊपर वाली दूसरी राह में खोह के दरवाजे तक जाने म

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