इन फूलों को पा कर तेजसिंह जितने खुश हुए शायद अपनी उम्र में आज तक कभी ऐसे खुश न हुए होंगे। एक तो पहले ही ऐयारी में बढ़े-चढ़े थे, आज इन फूलों ने इन्हें और बढ़ा दिया। अब कौन है जो इनका मुकाबला करे? हाँ एक चीज की कसर रह गई, लोपांजन या कोई गुटका इस तिलिस्म में से इनको ऐसा न मिला, जिससे ये लोगों की नजरों से छिप जाते, और अच्छा ही हुआ जो न मिला, नहीं तो इनकी ऐयारी की तारीफ न होती क्योंकि जिस आदमी के पास कोई ऐसी चीज हो जिससे वह गायब हो जाए तो फिर ऐयारी सीखने की जरूरत ही क्या रही? गायब हो कर जो चाहा कर डाला।
आज की रात इन चारों को जागते ही बीती। तिलिस्म की तारीफ, फूलों के गुण, तिलिस्मी किताब के पढ़ने, सवेरे फिर तिलिस्म में जाने आदि की बातचीत में रात बीत गई। सवेरा हुआ, जल्दी-जल्दी स्नान-पूजा से चारों ने छुट्टी पा ली और कुछ भोजन करके तिलिस्म में जाने को तैयार हुए।
कुमार ने तेजसिंह से कहा - ‘हमारे पलँग पर से तिलिस्मी किताब उठा के तुम लेते चलो, वहाँ फिर एक दफा पढ़ के तब कोई काम करेंगे।’ तेजसिंह तिलिस्मी किताब लेने गए, मगर किताब नजर न पड़ी, चारपाई के नीचे हर तरफ देखा, कहीं पता नहीं, आखिर कुमार से पूछा - ‘किताब कहाँ है? पलँग पर तो नहीं है?’
सुनते ही कुमार के होश उड़ गए, जी सन्न हो गया, दौड़े हुए पलँग के पास आए। खूब ढूँढ़ा, मगर कहीं किताब हो तब तो मिले।
कुमार ‘हाय’ करके पलँग के ऊपर गिर पड़े, बिल्कुल हौसला टूट गया, कुमारी चंद्रकांता के मिलने से नाउम्मीद हो गए, अब तिलिस्मी किताब कहाँ जिसमें तिलिस्म तोड़ने की तरकीब लिखी है। तेजसिंह, देवीसिंह, और जगन्नाथ ज्योतिषी भी घबरा उठे। दो घड़ी तक किसी के मुँह से आवाज तक न निकली, बाद इसके तलाश होने लगी। लश्कर भर में खूब शोर मचा कि कुमार के डेरे से तिलिस्मी किताब गायब हो गई, पहरे वालों पर सख्ती होने लगी, चारों तरफ चोर की तलाश में लोग निकले।
तेजसिंह ने कुमार से कहा - ‘आप जी मत छोटा कीजिए, मैं वादा करता हूँ कि चोर जरूर पकड़ूँगा, आपके सुस्त हो जाने से सभी का जी टूट जाएगा, कोई काम करते न बन पड़ेगा।’
बहुत समझाने पर कुमार पलँग से उठे, उसी वक्त एक चोबदार ने आ कर अजीब खबर सुनाई। हाथ जोड़ कर अर्ज किया कि तिलिस्म के फाटक पर पहरे के लिए जो लोग मुस्तैद किए गए हैं उनमें से एक पहरे वाला हाजिर हुआ है और कहता है कि तिलिस्म के अंदर कई आदमियों की आहट मिली है, किसी को अंदर जाने का हुक्म तो है नहीं जो ठीक मालूम करें, अब जैसा हुक्म हो किया जाए।’
इस खबर को सुनते ही तेजसिंह पता लगाने के लिए तिलिस्म में जाने को तैयार हुए। देवीसिंह से कहा - ‘तुम भी साथ चलो, देख आएँ क्या मामला है।’
ज्योतिषी जी बोले - ‘हम भी चलेंगे।’ कुमार भी उठ खड़े हुए। आखिर ये चारों तिलिस्म में चले। बाहर फतहसिंह सेनापति मिले, कुमार ने उनको भी साथ ले लिया। दरवाजे के अंदर जाते ही इन लोगों के कान में भी चिल्लाने की आवाज आई, आगे बढ़ने से मालूम हुआ कि इसमें कई आदमी हैं। आवाज की धुन पर ये लोग बराबर बढ़ते चले गए। उस दालान में पहुँचे जिसमें चबूतरे के ऊपर हाथ में किताब लिए पत्थर का आदमी सोया था।
देखा कि पत्थर वाला आदमी उठ के बैठा हुआ पंडित बद्रीनाथ ऐयार को दोनों हाथों से दबाए है और वह चिल्ला रहे हैं। पन्नालाल, रामनारायण और चुन्नीलाल छुड़ाने की तरकीब कर रहे हैं मगर कोई काम नहीं निकलता। तिलिस्मी किताब के खो जाने का इन लोगों को बड़ा भारी गम था, मगर इस वक्त पंडित बद्रीनाथ ऐयार की यह दशा देख सभी को हँसी आ गई, एकदम खिलखिला के हँस पड़े। उन ऐयारों ने पीछे फिर कर देखा तो कुँवर वीरेंद्रसिंह मय तीनों ऐयारों के खड़े हैं, साथ में फतहसिंह सेनापति हैं।
तेजसिंह ने ललकार कर कहा - ‘वाह खूब, जैसी जिसकी करनी होती है उसको वैसा ही फल मिलता है, इसमें कोई शक नहीं। बेचारे कुँवर वीरेंद्रसिंह को बेकसूर तुम लोगों ने सताया, इसी की सजा तुम लोगों को मिली। परमेश्वर भी बड़ा इंसाफ करने वाला है। क्यों पन्नालाल तुम लोग जान-बूझ कर क्यों फँसते हो? तुम लोगों को तो किसी ने पकड़ा नहीं है, फिर बद्रीनाथ के पीछे क्यों जान देते हो? इनको इसी तरह छोड़ दो, तुम लोग जाओ, हवा खाओ।’
पन्नालाल ने कहा - ‘भला इनको ऐसी हालत में छोड़ के हम लोग कहीं जा सकते हैं? अब तो आपके जो जी में आए सो कीजिए, हम लोग हाजिर हैं।’
तेजसिंह ने पंडित बद्रीनाथ के पास जा कर कहा - ‘पंडित जी प्रणाम। क्यों, मिजाज कैसा है? क्या आप तिलिस्म तोड़ने को आए थे? अपने राजा को तो पहले छुड़ा लिए होते? खैर, शायद तुमने यह सोचा कि हम ही तिलिस्म तोड़ कर कुल खजाना ले लें और खुद चुनारगढ़ के राजा बन जाएँ।’
देवीसिंह ने भी आगे बढ़ के कहा - ‘बद्रीनाथ भाई, तिलिस्म तोड़ना तो उसमें से कुछ मुझे भी देना, अकेले मत उड़ा जाना।’ ज्योतिषी जी ने कहा - ‘बद्रीनाथ जी, अब तो तुम्हारे ग्रह बिगड़े हैं। खैरियत तभी है कि वह तिलिस्मी किताब हमारे हवाले करो जिसे आप लोगों ने रात को चुराया है।’
बद्रीनाथ सबकी सुनते मगर सिवाय जमीन देखने के जवाब किसी को नहीं देते थे। पन्नालाल, रामनारायण और चुन्नीलाल पंडित बद्रीनाथ को छोड़ अलग हो गए और कुमार से बोले - ‘ईश्वर के वास्ते किसी तरह बद्रीनाथ की जान बचाइए।’
कुमार ने कहा - ‘भला हम क्या कर सकते हैं, कुल हाल तिलिस्म का मालूम नहीं, जो किताब तिलिस्म से मुझको मिली थी, जिसे पढ़ कर तिलिस्म तोड़ते, वह तुम लोगों ने गायब कर ली। अगर मेरे पास होती तो उसमें देख कर कोई तरकीब इनके छुड़ाने की करता, हाँ अगर तुम लोग वह किताब मुझे दे दो तो जरूर बद्रीनाथ इस आफत से छूट सकते हैं।’
यह सुन कर पन्नालाल ने तिरछी निगाहों से बद्रीनाथ की तरफ देखा, उन्होंने भी कुछ इशारा किया।
पन्नालाल ने कुमार से कहा - ‘हम लोगों ने किताब नहीं चुराई है, नहीं तो ऐसी बेबसी की हालत में जरूर दे देते। या तो किसी तरह से पंडित बद्रीनाथ को छुड़ाइए या हम लोगों के वास्ते यह हुक्म दीजिए कि बाहर जा कर इनके लिए कुछ खाने का सामान ला कर खिलावें, बल्कि जब तक आपकी किताब न मिले आप तिलिस्म न तोड़ लें और बद्रीनाथ उसी तरह बेबस रहें, तब तक हम लोगों में से किसी को खिलाने-पिलाने के लिए यहाँ आने-जाने का हुक्म हो।’
देवीसिंह ने कहा - ‘पन्नालाल, भला यह तो कहो कि अगर कई रोज तक बद्रीनाथ इसी तरह कैद रह गए तो खाने-पीने का बंदोबस्त तो तुम कर लोगे, जा कर ले आओगे लेकिन अगर इनको दिशा मालूम पड़ेगी तो क्या उपाय करोगे? उसको कहाँ ले जा कर फेंकोगे? या इसी तरह इनके नीचे ढेर लगा रहेगा?’
इसका जवाब पन्नालाल ने कुछ न दिया।
तेजसिंह ने कहा - ‘सुनो जी, ऐयारों को ऐयार लोग खूब पहचानते हैं। अगर तुम्हारे आने-जाने के लिए कुमार हुक्म नहीं देते तो हम हुक्म देते हैं कि आया करो और जिस तरह बने बद्रीनाथ की हिफाजत करो। तुम लोगों ने हमारा बड़ा हर्ज किया, तिलिस्मी किताब चुरा ली और अब मुकरते हो। इस वक्त हमारे अख्तियार में सब कोई हो, जिसके साथ जो चाहे करूँ, सीधी तरह से न दो तो डंडों के जोर से किताब ले लूँ मगर नहीं, छोड़ देता हूँ और खूब होशियार कर देता हूँ, किताब सँभाल के रखना, मैं बिना लिए न छोड़ूँगा और तुम लोगों को गिरफ्तार भी न करूँगा।’
तेजसिंह की बात सुन कर पंडित बद्रीनाथ लाल हो गए और बोले - ‘इस वक्त हमको बेबस देख के शेखी करते हो। यह हिम्मत तो तब जानें कि हमारे छूटने पर कह-बद के कोई ऐयारी करो और जीत जाओ। क्या तुम ही एक दुनिया में ऐयार हो? हम भी जोर दे कर कहते हैं कि हम ही ने तुम्हारी तिलिस्मी किताब चुराई है, मगर हम लोगों में से किसी को कैद किए या सताए बिना तुम नहीं पा सकते। यह शेखी तुम्हारी न चलेगी कि ऐयारों को गिरफ्तार भी न करो बल्कि आने-जाने के लिए छुट्टी दे दो और किताब भी ले लो। ऐसा कर तो लो उसी दिन से हम लोग तुम्हारे गुलाम हो जाएँ और महाराज शिवदत्त को छोड़ कर कुमार की ताबेदारी करें। मैं बता देता हूँ कि किताब भी न दूँगा और यहाँ से छूट के भी निकल जाऊँगा।’
तेजसिंह ने कहा - ‘मैं भी कसम खा कर कहता हूँ कि बिना तुम लोगों को कैद किए अगर किताब न ले लूँ तो फिर ऐयारी का नाम न लूँ और सिर मुड़ा के दूसरे देश में निकल जाऊँ। मुझको भी तुम लोगों से एक ही दफा में फैसला कर लेना है।’
इस बात पर तेजसिंह और बद्रीनाथ दोनों ने कसमें खाईं। बेचारे कुँवर वीरेंद्रसिंह सभी का मुँह देखते थे, कुछ कहते बन नहीं पड़ता था। तेजसिंह ने देवीसिंह और ज्योतिषी जी को अलग ले जा कर कान में कुछ कहा और दोनों उसी वक्त तिलिस्म के बाहर हो गए। फिर तेजसिंह बद्रीनाथ के पास आ कर बोले - ‘हम लोग जाते हैं, पन्नालाल, रामनारायण और चुन्नीलाल को जहाँ जी चाहे भेजो और अपने छुड़ाने की जो तरकीब सूझे करो। पहरे वालों को कह दिया जाता है, वे तुम्हारे साथियों को आते-जाते न रोकेंगे।’
कुमार को लिए हुए तेजसिंह अपने डेरे में पहुँचे, देखा तो ज्योतिषी जी बैठे हैं। तेजसिंह ने पूछा - ‘क्यों ज्योतिषी जी देवीसिंह गए?’
ज्योतिषी – ‘हाँ, वह तो गए।’
तेजसिंह – ‘आपने अभी कुछ देखा कि नहीं?’
ज्योतिषी – ‘हाँ पता लगा, पर आफत पर आफत नजर आती है।’
तेजसिंह – ‘वह क्या?’
ज्योतिषी – ‘रमल से मालूम होता है कि उन लोगों के हाथ से भी किताब निकल गई और अभी तक कहीं रखी नहीं गई। देखें देवीसिंह क्या करके आते हैं, हम भी जाते तो अच्छा होता।’
तेजसिंह – ‘तो फिर आप राह क्यों देखते हैं, जाइए, हम भी अपनी धुन में लगते हैं।’
यह सुन ज्योतिषी जी तुरंत वहाँ से चले गए।
कुमार ने कहा - ‘भला कुछ हमें भी तो मालूम हो कि तुम लोगों ने क्या सोचा, क्या कर रहे हो और क्या समझ के तुमने उन लोगों को छोड़ दिया। मैं तो जरूर यही कहूँगा कि इस वक्त तुम्हीं ने शेखी में आ कर काम बिगाड़ दिया, नहीं तो वे लोग हमारे हाथ फँस चुके थे।’
तेजसिंह ने कहा - ‘मेरा मतलब आप अभी तक नहीं समझे, किताब तो मैं उनसे ले ही लूँगा, मगर जहाँ तक बने उन सभी को एक ही दफा में अपना चेला भी करूँ, नहीं तो यह रोज-रोज की ऐयारी से कहाँ तक होशियारी चलेगी? सिवाय जिद्द और बदाबदी के ऐयार कभी ताबेदारी कबूल नहीं करते, चाहे जान चली जाए, मालिक का संग कभी न छोड़ेंगे।’
कुमार ने कहा - ‘इससे तो हमको और आश्चर्य हुआ? ईश्वर न करे कहीं तुम हार गए और बद्रीनाथ छूट के निकल गए तो क्या तुम हमारा भी संग छोड़ दोगे?’
तेजसिंह – ‘बेशक छोड़ दूँगा, फिर अपना मुँह न दिखाऊँगा।’
कुमार – ‘तो तुम आप भी गए और मुझे भी मारा, अच्छी दोस्ती अदा की। हाय अब क्या करूँ? भला यह तो बताओ कि देवीसिंह और ज्योतिषी जी कहाँ गए?’
तेजसिंह – ‘अभी न बताऊँगा, पर आप डरिए मत, ईश्वर चाहेगा तो सब काम ठीक होगा और मेरा आपका साथ भी न छूटेगा। आप बैठिए, मैं दो घंटे के लिए कहीं जाता हूँ।’
कुमार – ‘अच्छा जाओ।’
तेजसिंह वहाँ से चले गए, फतहसिंह को भी कुमार ने विदा किया, अब देखना चाहिए ये लोग क्या करते हैं और कौन जीतता है।