shabd-logo

भाग 11

11 जून 2022

14 बार देखा गया 14

तेजसिंह को तिलिस्म में से खजाने के संदूकों को निकलवा कर नौगढ़ भेजवाने में कई दिन लगे क्योंकि उसके साथ पहरे वगैरह का बहुत कुछ इंतजाम करना पड़ा। रोज तिलिस्म में जाते और पहर दिन जब बाकी रहता तिलिस्म से बाहर निकल आया करते। जब तक कुल असबाब नौगढ़ रवाना नहीं कर दिया गया, तब तक तिलिस्म तोड़ने की कार्रवाई बंद रही।

एक रात कुमार अपने पलँग पर सोए हुए थे। आधी रात जा चुकी थी,कुमारी चंद्रकांता और वनकन्या की याद में अच्छी तरह नींद नहीं आ रही थी, कभी जागते कभी सो जाते। आखिर एक गहरी नींद ने अपना असर यहाँ तक जमाया कि सुबह क्या, बल्कि दो घड़ी दिन चढ़े तक आँख खुलने न दीं।

जब कुमार की नींद खुली अपने को उस खेमे में न पाया जिसमें सोए थे अथवा जो तिलिस्म के पास जंगल में था, बल्कि उसकी जगह एक बहुत सजे हुए कमरे को देखा जिसकी छत में कई बेशकीमती झाड़ और शीशे लटक रहे थे। ताज्जुब में पड़ इधर-उधर देखने लगे। मालूम हुआ कि यह एक बहुत भारी दीवानखाना है, जिसमें तीन तरफ संगमरमर की दीवार और चौथी तरफ बड़े-बड़े खूबसूरत दरवाजे हैं जो इस समय बंद हैं। दीवारों पर कई दीवारें लगी हुई हैं, जिनमें दिन निकल आने पर भी अभी तक मोमबत्तियाँ जल रही हैं। ऊपर उसके चारों तरफ बड़ी-बड़ी खूबसूरत और हसीन औरतों की तस्वीरें लटक रही थीं। लंबी दीवार के बीचोंबीच एक तस्वीर, आदमी के कद के बराबर सोने के चौखटे में जड़ी, दीवार के साथ लगी हुई थी।

कुमार की निगाह तमाम तस्वीरों पर से दोड़ती हुई उस बड़ी तस्वीर पर आ कर अटक गई। सोचने लगे बल्कि धीमी आवाज में इस तरह बोलने लगे जैसे अपने ‘बगल’ में बैठे हुए किसी दोस्त को कोई कहता हो - ‘अहा, इस तस्वीर से बढ़ कर इस दीवानखाने में कोई चीज नहीं है और बेशक यह तस्वीर भी उसी की है जिसके इश्क ने मुझे तबाह कर रखा है। वाह क्या साफ भोली सूरत दिखलाई है।’

कुमार झट से उठ बैठे और उस तस्वीर के पास जा कर खड़े हो गए। दीवानखाने के दरवाजे बंद थे मगर हर एक दरवाजे के ऊपर छोटे-छोटे मोखे (सूराख) बने हुए थे जिनमें शीशे की टट्टियाँ लगी हुई थीं, उन्हीं में से सीधी रोशनी ठीक उस लंबी-चौड़ी तस्वीर पर पड़ रही थी जिसको देखने के लिए कुमार पलँग पर से उतर कर उसके पास गए थे। असल में वह तस्वीर कुमारी चंद्रकांता की थी।

कुमार उस तस्वीर के पास जा कर खड़े हो गए और फिर उसी तरह बोलने लगे जैसे किसी दूसरे को जो पास ही खड़ा हो सुना रहे हैं - ‘अहा, क्या अच्छी और साफ तस्वीर बनी हुई है। इसमें ठीक उतना ही बड़ा कद है, वैसी ही बड़ी-बड़ी आँखें हैं जिनमें काजल की लकीरें कैसी साफ मालूम हो रही हैं। अहा। गालों पर गुलाबीपन कैसा दिखलाया है, बारीक होंठों में पान की सुर्खी और मुस्कुराहट साफ मालूम हो रही है, कानों में बाले, माथे में बेंदी और नाक में नथ तो हई है मगर यह गले की गोप क्या ही अच्छी और साफ बनाई है जिसके बीच के चमकते हुए मानिक और अगल-बगल के कुंदन की उभाड़ (हसली) में तो हद दर्जे की कारीगरी खर्च की गई है। ‘गोप’ ही क्या, सभी गहने अच्छे हैं। गले की माला, हाथों के बाजूबंद, कंगन, छंद, पहुँची, अँगूठी सभी चीजें अच्छी बनाई हैं, और देखो एक बगल चपला दूसरी तरफ चंपा क्या मजे में अपनी ठुड्डी पर उँगली रखे खड़ी हैं।’

‘हाय, चंद्रकांता कहाँ होगी।’ इतना कह एक लंबी साँस ले एकटक उस तस्वीर की तरफ देखने लगे।

ऊपर की तरफ कहीं से पाजेब की छन्न से आवाज आई जिसे सुनते ही कुमार चौंक पड़े। ऊपर की तरफ कई छोटी-छोटी खिड़कियाँ थीं जो सब-की-सब बंद थीं। यह आवाज कहाँ से आई? इस घर में कौन औरत है? इतनी देर तक तो कुमार अपने पूरे होशो-हवास में न थे मगर अब चौंके और सोचने लगे - ‘हैं, इस जगह मैं कैसे आ गया? कौन उठा लाया? उसने मेरे साथ बड़ी नेकी की जो मेरी प्यारी चंद्रकांता की तस्वीर मुझे दिखला दी, मगर कहीं ऐसा न हो कि मैं यह बातें स्वप्न में देखता होऊँ? जरूर यह स्वप्न है, चलो फिर उसी पलँग पर सो रहें।’

यह सोच फिर कुमार उसी पलँग पर आ कर लेट गए, आँखें बंद कर लीं, मगर नींद कहाँ से आती। इतने में फिर पाजेब की आवाज ने कुमार को चौंका दिया। अबकी दफा उठते ही सीधे दरवाजों की तरफ गए और सातों दरवाजों को धक्का दिया, सब खुल गए। एक छोटा-सा हरा-भरा बाग दिखाई पड़ा। दिन अनुमानत पहर-भर के चढ़ चुका होगा।

यह बाग बिल्कुल जंगली फूलों और लताओं से भरा हुआ था, बीच में एक छोटा-सा तालाब भी दिखाई पड़ा। कुमार सीधे तालाब के पास चले गए जो बिल्कुल पत्थर का बना हुआ था। एक तरफ उसके खूबसूरत सीढ़ियाँ उतरने के लिए बनी हुई थीं, ऊपर उन सीढ़ियों के दोनों तरफ दो बड़े-बड़े जामुन के पेड़ लगे हुए थे जो बहुत ही घने थे। तमाम सीढ़ियों पर बल्कि कुछ जल तक उन दोनों की छाया पहुँची हुई थी और दोनों पेड़ों के नीचे छोटे-छोटे संगमरमर के चबूतरे बने हुए थे। बाएँ तरफ के चबूतरे पर नरम गलीचा बिछा हुआ था, बगल में एक टोंटीदार चाँदी का गड़वा, उसके पास ही शहतूत के पत्तो पर बना-बनाया दातून एक तरफ से चिरा हुआ था, बगल में एक छोटी-सी चाँदी की चौकी पर धोती-गमछा और पहनने के खूबसूरत और कीमती कपड़े भी रखे हुए थे।

दाहिनी तरफ वाले संगमरमर के चबूतरे पर चाँदी की एक चौकी थी जिस पर पूजा का सामान धारा हुआ था। छोटे-छोटे कई जड़ाऊ पँचपात्र, तश्तरी, कटोरियाँ सब साफ की हुई थीं और नरम ऊनी आसन बिछा हुआ था जिस पर एक छोटा-सा बेल भी पड़ा था।

कुमार इस बात पर गौर कर रहे थे कि वे कहाँ आ पहुँचे, उन्हें कौन लाया, इस जगह का नाम क्या है तथा यह बाग और कमरा किसका है? इतने में ही उस पेड़ की तरफ निगाह जा पड़ी जिसके नीचे पूजा का सब सामान सजाया हुआ था। एक कागज चिपका हुआ नजर पड़ा। उसके पास गए, देखा कि कुछ लिखा हुआ है। पढ़ा, यह लिखा था –

‘कुँवर वीरेंद्रसिंह, यह सब सामान तुम्हारे ही वास्ते है। इसी बावड़ी में नहाओ और इन सब चीजों को बरतो, क्योंकि आज के दिन तुम हमारे मेहमान हो।’

कुमार और भी सोच में पड़ गए कि यह क्या, सामान तो इतना लंबा-चौड़ा रखा गया है मगर आदमी कोई भी नजर नहीं पड़ता, जरूर यह जगह परियों के रहने की है और वे लोग भी इसी बाग में फिरती होंगी, मगर दिखाई नहीं पड़तीं। अच्छा इस बाग में पहले घूम कर देख लें कि क्या-क्या है फिर नहाना-धोना होगा, आखिर इतना दिन तो चढ़ ही चुका है। अगर कहीं दरवाजा नजर पड़ा तो इस बाग के बाहर हो जाएँगे, मगर नहीं, इस बाग का मालिक कौन है और वह मुझे यहाँ क्यों लाया, जब तक इसका हाल मालूम न हो इस बाग से कैसे जाने को जी चाहेगा? यही सब सोच कर कुमार उस बाग में घूमने लगे।

जिस कमरे में नींद से कुमार की आँख खुली थी वह बाग के पश्चिम तरफ था। पूरब तरफ कोई इमारत न थी क्योंकि निकलता हुआ सूरज पहले ही से दिखाई पड़ा था जो इस वक्त नेजे बराबर ऊँचा आ चुका होगा। घूमते हुए बाग के उत्तर तरफ एक और कमरा नजर पड़ा जो पूरब तरफ वाले कमरे के साथ सटा हुआ था।

कुमार ने चाहा कि उस कमरे की भी सैर करें मगर न हो सका, क्योंकि उसके सब दरवाजे बंद थे, अस्तु आगे बढ़े और जंगली फूलों, बेलों और खूबसूरत क्यारियों को देखते हुए बाग के दक्षिण तरफ पहुँचे। एक छोटी-सी कोठरी नजर पड़ी जिसकी दीवार पर कुछ लिखा हुआ था, पढ़ने से मालूम हुआ कि पाखाना है। उसी जगह लकड़ी की चौकी पर पानी से भरा हुआ एक लोटा भी रखा था।

दिन डेढ़ पहर से ज्यादा चढ़ चुका होगा, कुमार की तबीयत घबराई हुई थी, आखिर सोच-विचार कर चौकी पर से लोटा उठा लिया और पाखाने गए, बाद इसके बावड़ी में हाथ-मुँह धोए, सीढ़ियों के ऊपर जामुन के पेड़ तले चौकी पर बैठ कर दातुन किया, बावली में स्नान करके उन्हीं कपड़ों को पहना जो उनके लिए संगमरमर के चबूतरे पर रखे हुए थे, दूसरे पर बैठ के संध्या-पूजा की।

जब इन सब कामों से छुट्टी पा चुके तो फिर उसी कमरे की तरफ आए जिसमें सोते से आँख खुली थी और कुमारी चंद्रकांता की तस्वीर देखी थी, मगर उस कमरे के कुल किवाड़ बंद पाए, खोलने की कोशिश की मगर खुल न सके। बाहर दालान में खूब कड़ी धूप फैली हुई थी। धूप के मारे तबीयत घबरा उठी, यही जी चाहता था कि कहीं ठंडी जगह मिले तो आराम किया जाए। आखिर उस जगह से हट कुमार घूमते हुए उस दूसरी तरफ वाले कमरे को देखने चले जिसमें किवाड़ पहर भर पहले बंद पाए थे, वे अब खुले हुए दिखलाई पड़े, अंदर गए।

भीतर से यह कमरा बहुत साफ संगमरमर के फर्श का था, मालूम होता था कि अभी कोई इसे धो कर साफ कर गया है। बीच में एक कश्मीरी गलीचा बिछा हुआ था। आगे उसके कई तरह की भोजन की चीजें चाँदी और सोने के बरतनों में सजाई हुई रखी थीं। आसन पर एक खत पड़ा था जिसे कुमार ने उठा कर पढ़ा, यह लिखा हुआ था -

‘आप किसी तरह घबराएँ नहीं, यह मकान आपके एक दोस्त का है जहाँ हर तरह से आपकी खातिर की जाएगी। इस वक्त आप भोजन करके बगल की कोठरी में जहाँ आपके लिए पलँग बिछा है कुछ देर आराम करें।’

इसे पढ़ कर कुमार जी में सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए? भूख बड़े जोर की लगी है पर बिना मालिक के इन चीजों को खाने को जी नहीं चाहता और कुछ पता भी नहीं लगता कि इस मकान का मालिक कौन है जो छिप-छिप कर हमारी खातिरदारी की चीजें तैयार कर रहा है, पर मालूम नहीं होता कि कौन किधर से आता है, कहाँ खाना बनाता है, मालिक मकान या उसके नौकर-चाकर किस जगह रहते हैं या किस राह से आते-जाते हैं। उन लोगों को जब इसी जगह छिपे रहना मँजूर था तो मुझे यहाँ लाने की जरूरत ही क्या थी?

उसी आसन पर बैठे हुए बड़ी देर तक कुमार तरह-तरह की बातें सोचते रहे, यहाँ तक कि भूख ने उन्हें बेताब कर दिया, आखिर कब तक भूखे रहते? लाचार भोजन की तरफ हाथ बढ़ाया, मगर फिर कुछ सोच कर रुक गए और हाथ खींच लिया।

भोजन करने के लिए तैयार होकर फिर कुमार के रुक जाने से बड़े जोर के साथ हँसने की आवाज आई जिसे सुन कर कुमार और भी हैरान हुए। इधर-उधर देखने लगे मगर कुछ पता न लगा, ऊपर की तरफ कई खिड़कियाँ दिखाई पड़ीं मगर कोई आदमी नजर न आया।

कुमार ऊपर वाली खिड़कियों की तरफ देख ही रहे थे कि एक आवाज आई - ‘आप भोजन करने में देर न कीजिए, कोई खतरे की जगह नहीं है।’

भूख के मारे कुमार विकल हो रहे थे, लाचार हो कर खाने लगे। सब चीजें एक-से-एक स्वादिष्ट बनी हुई थीं। अच्छी तरह से भोजन करने के बाद कुमार उठे, एक तरफ हाथ धोने के लिए लोटे में जल रखा हुआ था। अपने हाथ से लोटा उठा, हाथ धोए और उस बगल वाली कोठरी की तरफ चले। जैसा कि पुरजे में लिखा हुआ था उसी के मुताबिक सोने के लिए उस कोठरी में निहायत खूबसूरत पलँग बिछा हुआ पाया।

मसहरी पर लेट कर तरह-तरह की बातें सोचने लगे। इस मकान का मालिक कौन है और मुलाकात न करने में उसने क्या फायदा सोचा है, यहाँ कब तक पड़े रहना होगा, वहाँ लश्कर वालों की हमारी खोज में क्या दशा होगी इत्यादि बातों को सोचते-सोचते कुमार को नींद आ गई और बेखबर सो गए।

दो घंटे रात बीते तक कुमार सोए रहे। इसके बाद बीन की और उसके साथ ही किसी के गाने की आवाज कानों में पड़ी, झट आँखें खोल इधर-उधर देखने लगे, मालूम हुआ कि यह वह कमरा नहीं है जिसमें भोजन करके सोए थे, बल्कि इस वक्त अपने को एक निहायत खूबसूरत सजी हुई बारहदरी में पाया जिसके बाहर से बीन और गाने की आवाज आ रही थी।

कुमार पलँग पर से उठे और बाहर देखने लगे। रात बिल्कुल अधेरी थी मगर रोशनी खूब हो रही थी जिससे मालूम पड़ा कि यह बाग भी वह नहीं है जिसमें दिन को स्नान और भोजन किया था।

इस वक्त यह नहीं मालूम होता था कि यह बाग कितना बड़ा है क्योंकि इसके दूसरे तरफ की दीवार बिल्कुल नजर नहीं आती थी। बड़े-बड़े दरख्त भी इस बाग में बहुत थे। रोशनी खूब हो रही थी। कई औरतें जो कमसिन और खूबसूरत थीं, टहलती और कभी-कभी गाती या बजाती हुई नजर पड़ीं, जिनका तमाशा दूर से खड़े हो कर कुमार देखने लगे। वे आपस में हँसती और ठिठोली करती हुई एक रविश से दूसरी और दूसरी से तीसरी पर घूम रही थीं। कुमार का दिल न माना और ये धीरे धीरे उनके पास जा कर खड़े हो गए।

वे सब कुमार को देख कर रुक गईं और आपस में कुछ बातें करने लगीं, जिसको कुमार बिल्कुल नहीं समझ सकते थे, मगर उनके हाथ-पैर हिलाने के भाव से मालूम होता था कि वे कुमार को देख कर ताज्जुब कर रही हैं। इतने में एक औरत आगे बढ़ कर कुमार के पास आई और उनसे बोली - ‘आप कौन हैं और बिना हुक्म इस बाग में क्यों चले आए?’

कुमार ने उसे नजदीक से देखा तो निहायत हसीन और चंचल पाया। जवाब दिया - ‘मैं नहीं जानता यह बाग किसका है, अगर हो सके तो बताओ कि यहाँ का मालिक कौन है?’

औरत – ‘हमने जो कुछ पूछा है पहले उसका जवाब दे लो फिर हमसे जो पूछोगे सो बता देंगे।’

कुमार – ‘मुझे कुछ भी मालूम नहीं कि मैं यहाँ क्यों कर आ गया।’

औरत – ‘क्या खूब। कैसे सीधे-सादे आदमी हैं (दूसरी औरत की तरफ देख कर) बहिन, जरा इधर आना, देखो कैसे भोले-भाले चोर इस बाग में आ गए हैं जो अपने आने का सबब भी नहीं जानते।’

उस औरत के आवाज देने पर सभी ने आ कर कुमार को घेर लिया और पूछना शुरू किया - ‘सच बताओ तुम कौन हो और यहाँ क्यों आए?’

दूसरी औरत – ‘जरा इनके कमर में तो हाथ डालो, देखो कुछ चुराया तो नहीं?’

तीसरी – ‘जरूर कुछ न कुछ चुराया होगा।’

चौथी – ‘अपनी सूरत इन्होंने कैसी बना रखी है, मालूम होता है कि किसी राजा के लड़के हैं।’

पहली – ‘भला यह तो बताइए कि ये कपड़े आपने कहाँ से चुराए?’

इन सभी की बातें सुन कर कुमार बड़े हैरान हुए। जी में सोचने लगे कि अजब आफत में आ फँसे, कुछ समझ में नहीं आता, जरूर इन्हीं लोगों की बदमाशी से मैं यहाँ तक पहुँचा और यही लोग अब मुझे चोर बनाती हैं। यों ही कुछ देर तक सोचते रहे, बाद इसके फिर बातचीत होने लगी।

कुमार – ‘मालूम होता है कि तुम्हीं लोगों ने मुझे यहाँ ला कर रखा है।’

एक औरत – ‘हम लोगों को क्या गरज थी जो आपको यहाँ लाते या आप ही खुश हो हमें क्या दे देंगे जिसकी उम्मीद में हम लोग ऐसा करते। अब यह कहने से क्या होता है, जरूर चोरी की नीयत से ही आप आए हैं।’

कुमार – ‘मुझको यह भी मालूम नहीं कि यहाँ आने या जाने का रास्ता कौन-सा है। अगर यह भी बतला दो तो मैं यहाँ से चला जाऊँ।’

दूसरी – ‘वाह, क्या बेचारे अनजान बनते हैं। यहाँ तक आए भी और रास्ता भी नहीं मालूम।’

तीसरी – ‘बहिन, तुम नहीं समझतीं यह चालाकी से भागना चाहते हैं।’

चौथी – ‘अब इनको गिरफ्तार करके ले चलना चाहिए।’

कुमार – ‘भला मुझे कहाँ ले चलोगी?’

एक औरत – ‘अपने मालिक के सामने।’

कुमार – ‘तुम्हारे मालिक का क्या नाम है?’

एक – ‘ऐसी किसकी मजाल है जो हमारे मालिक का नाम ले।’

कुमार – ‘क्या तुम्हें अपने मालिक का नाम बताने में भी कुछ हर्ज है।’

दूसरी – ‘हर्ज! नाम लेते ही जुबान कट कर गिर पड़ेगी।’

कुमार – ‘तो तुम लोग अपने मालिक से बातचीत कैसे करती हो?’

दूसरी – ‘मालिक की तस्वीर से बातचीत करते हैं, सामना नहीं होता।’

कुमार – ‘अगर कोई पूछे कि तुम किसकी नौकर हो तो कैसे बताओगी?’

तीसरी – ‘हम लोग अपने मालिक राजकुमारी की तस्वीर अपने गले में लटकाए रहती हैं जिससे मालूम हो कि हम सब फलाने की लौंडी हैं।’

कुमार – ‘क्या यहाँ कई राजकुमारी हैं जो लौंडियों की पहचान में गड़बड़ी हो जाने का डर है?’

पहली – ‘नहीं, यहाँ सिर्फ दो राजकुमारी हैं और दोनों के यहाँ यही चलन है, कोई अपने मालिक का नाम नहीं ले सकता। जब पहचान की जरूरत होती है तो गले की तस्वीर दिखा दी जाती है।’

कुमार – ‘भला मुझे भी वह तस्वीर दिखाओगी?’

‘हाँ-हाँ, लो देख लो।’ कह कर एक ने अपने गले की छोटी-सी तस्वीर जो धुकधुकी की तरह लटक रही थी निकाल कर कुमार को दिखाई जिसे देखते ही उनके होश उड़ गए।

‘हैं। यह तस्वीर तो कुमारी चंद्रकांता की है। तो क्या ये सब उन्हीं की लौंडी हैं। नहीं-नहीं, कुमारी चंद्रकांता यहाँ भला कैसे आएँगी? उनका राज्य तो विजयगढ़ है। अच्छा पूछें तो यह मकान किस शहर में है?’

कुमार – ‘भला यह तो बताओ इस शहर का क्या नाम है जिसमें हम इस वक्त हैं।’

एक - इस शहर का नाम चित्रनगर है क्योंकि सभी के गले में कुमारी की तस्वीर लटकती रहती है।’

कुमार – ‘और इस शहर का यह नाम कब से पड़ा?’

एक – ‘हजारों बरस से यही नाम है और इसी रंग की तस्वीर कई पुश्त से हम लोगों के गले में है। पहले मेरी परदादी को सरकार से मिली थी, होते-होते अब मेरे गले में आ गई।’

कुमार – ‘क्या तब से यही राजकुमारी यहाँ का राज्य करती आई हैं, कोई इनका माँ-बाप नहीं है?’

दूसरी – ‘अब यह सब हम लोग क्या जानें, कुछ राजकुमारी से तो मुलाकात होती नहीं जो मालूम हो कि यही हैं या दूसरी, जवान हैं या बूढ़ी हो गईं।’

कुमार – ‘तो कचहरी कौन करता है?’

दूसरी – ‘एक बड़ी-सी तस्वीर हम लोगों के मालिक राजकुमारी की है, उसी के सामने दरबार लगता है। जो कुछ हुक्म होता है उसी तस्वीर से आवाज आती है।’

कुमार – ‘तुम लोगों की बातों ने तो मुझे पागल बना दिया है। ऐसी बातें करती हो जो कभी मुमकिन ही नहीं, अक्ल में नहीं आ सकतीं। अच्छा उस दरबार में मुझे भी ले जा सकती हो?’

औरत – ‘इसमें कहने की कौन-सी बात है, आखिर आपको गिरफ्तार करके उसी दरबार में तो ले चलना है, आप खुद ही देख लीजिएगा।’

कुमार – ‘जब तुम लोगों का मालिक कोई भी नहीं या अगर है तो एक तस्वीर, तब हमने उसका क्या बिगाड़ा? क्यों हमें बाँध के ले चलोगी?’

औरत – ‘हमारी राजकुमारी सभी की नजरों से छिप कर अपने राज्य भर में घूमा करती हैं और अपने मकान और बगीचों की सैर किया करती हैं मगर किसी की निगाह उन पर नहीं पड़ती। हम लोग रोज बाग और कमरों की सफाई करती हैं, और रोज ही कमरों का सामान, फर्श, पलँग के बिछौने वगैरह ऐसे हो जाते हैं जैसे किसी के मसरफ (इस्तेमाल) में आए हों। वह रौंदे जाते और मैले भी हो जाते हैं, इससे मालूम होता है कि हमारी राजकुमारी सभो की नजरों से छिप कर घूमा करती हैं, जिनकी हजारों बरस की उम्र है, और इसी तरह हमेशा जीती रहेंगी।

दूसरी – ‘बहिन तुम इनकी बातों का जवाब कब तक देती रहोगी? ये तो इसी तरह जान बचाना चाहते हैं?’

पहली – ‘नहीं-नहीं, ये जरूर किसी रईस राजा के लड़के हैं, इनकी बातों का जवाब देना मुनासिब है और इनको इज्जत के साथ कैद करके दरबार में ले चलना चाहिए।’

तीसरी - भला इनका और इनके बाप का नामधाम भी तो पूछ लो कि इसी तरह राजा का लड़का समझ लोगी। (कुमार की तरफ देख कर) क्यों जी आप किसके लड़के हैं और आपका नाम क्या है?’

कुमार – ‘मैं नौगढ़ के महाराज सुरेंद्रसिंह का लड़का वीरेंद्रसिंह हूँ।’

इनका नाम सुनते ही वे सब खुश हो कर आपस में कहने लगीं - ‘वाह, इनको तो जरूर पकड़ के ले चलना चाहिए, बहुत कुछ इनाम मिलेगा, क्योंकि इन्हीं को गिरफ्तार करने के लिए सरकार की तरफ से मुनादी की गई थी, इन्होंने बड़ा भारी नुकसान किया है, सरकारी तिलिस्म तोड़ डाला और खजाना लूट कर घर ले गए। अब इनसे बात न करनी चाहिए। जल्दी इनके हाथ-पैर बाँधो और इसी वक्त सरकार के पास ले चलो। अभी आधी रात नहीं गई है, दरबार होता होगा, देर हो जाएगी तो कल दिन भर इनकी हिफाजत करनी पड़ेगी, क्योंकि हमारे सरकार का दरबार रात ही को होता है।’

इन सभी की ये बातें सुन कर कुमार की तो अक्ल चकरा गई। कभी ताज्जुब, कभी सोच, कभी घबराहट से इनकी अजब हालत हो गई। आखिर, उन औरतों की तरफ देख कर बोले - ‘फसाद क्यों करती हो, हम तो आप ही तुम लोगों के साथ चलने को तैयार हैं, चलो देखें तुम्हारी राजकुमारी का दरबार कैसा है।’

एक – ‘जब आप खुद चलने को तैयार हैं तब हम लोगों को ज्यादा बखेड़ा करने की क्या जरूरत है, चलिए।’

कुमार – ‘चलो।’

वे सब औरतें गिनती में नौ थीं, चार कुमार के आगे चार पीछे हो उनको ले कर रवाना हुईं और एक यह कह कर चली गई कि मैं पहले खबर करती हूँ कि फलाने डाकू को हम लोगों ने गिरफ्तार किया है जिसको साथ वाली सखियाँ लिए आती हैं।

वे सब कुमार को लिए बाग के एक कोने में गईं जहाँ दूसरी तरफ निकल जाने के लिए छोटा-सा दरवाजा नजर पड़ा जिसमें शीशे की सिर्फ एक सफेद हाँडी जल रही थी।

वे सब कुमार को लिए हुए इसी दरवाजे में घुसीं। थोड़ी दूर जा कर दूसरा बाग जो बहुत सजा था नजर पड़ा जिसमें हद से ज्यादा रोशनी हो रही थी और कई चोबदार हाथ में सोने-चाँदी के आसे लिए इधर-उधर टहल रहे थे। इनके अलावे और भी बहुत से आदमी घूमते-फिरते दिखाई पड़े।

उन औरतों से किसी ने कुछ बातचीत या रोक-टोक न की, ये सब कुमार को लिए हुए बराबर धड़धड़ाती हुई एक बड़े भारी दीवानखाने में पहुँचीं जहाँ की सजावट और कैफियत देख कुमार के होश जाते रहे।

सबसे पहले कुमार की निगाह उस बड़ी तस्वीर के ऊपर पड़ी जो ठीक सामने सोने के जड़ाऊ सिंहासन पर रखी हुई थी। मालूम होता था कि सिंहासन पर कुमारी चंद्रकांता सिर पर मुकुट धारे बैठी हैं, ऊपर छत्र लगा हुआ है, और सिंहासन के दोनों तरफ दो जिंदा शेर बैठे हुए हैं जो कभी-कभी डकारते और गुर्राते भी थे। बाद इसके बड़े-बड़े सरदार बेशकीमती पोशाकें पहने सिंहासन के सामने दो-पट्टी कतार बाँधे सिर झुकाए बैठे थे। दरबार में सन्नाटा छाया हुआ था, सब चुप मारे बैठे थे।

चंद्रकांता की तस्वीर और ऐसे दरबार को देख कर एक दफा तो कुमार पर भी रोब छा गया। चुपचाप सामने खड़े हो गए, उनके पीछे और दोनों बगल वे सब औरतें खड़ी हो गईं जिन्होंने कुमार को चोरों की तरह हाजिर किया था।

तस्वीर के पीछे से आवाज आई - ‘ये कौन हैं?’

उन औरतों में से एक ने जवाब दिया - ‘ये सरकारी बाग में घूमते हुए पकड़े गए हैं और पूछने से मालूम हुआ कि इनका नाम वीरेंद्रसिंह है, विक्रमी तिलिस्म इन्होंने ही तोड़ा है।’ फिर आवाज आई - ‘अगर यह सच है तो इनके बारे में बहुत कुछ विचार करना पड़ेगा, इस वक्त ले जा कर हिफाजत से रखो, फिर हुक्म पा कर दरबार में हाजिर करना।’

उन लौंडियों ने कुमार को एक अच्छे कमरे में ले जा कर रखा जो हर तरह से सजा हुआ था मगर कुमार अपने ख्याल में डूबे हुए थे। नए बाग की सैर और तस्वीर के दरबार ने उन्हें और अचंभे में डाल दिया था। गरदन झुकाए सोच रहे थे। पहले बाग में जो ताज्जुब की बातें देखीं उनका तो पता लगा ही नहीं, इस बाग में तो और भी बातें दिखाई देती हैं जिसमें कुमारी चंद्रकांता की तस्वीर और उनके दरबार का लगना और भी हैरान कर रहा है। इसी सोच-विचार में गरदन झुकाए लौंडियों के साथ चले गए, इसका कुछ भी ख्याल नहीं कि कहाँ जाते हैं, कौन लिए जाता है, या कैसे सजे हुए मकान में बैठाए गए हैं।

जमीन पर फर्श बिछा हुआ और गद्दी लगी हुई थी, बड़े तकिए के सिवाय और भी कई तकिए पड़े हुए थे। कुमार उस गद्दी पर बैठ गए और दो घंटे तक सिर झुकाए ऐसा सोचते रहे कि तनोबदन की बिल्कुल खबर न रही। प्यास मालूम हुई तो पानी के लिए इधर-उधर देखने लगे। एक लौंडी सामने खड़ी थी, उसने हाथ जोड़ कर पूछा - ‘क्या हुक्म होता है?’ जिसके जवाब में कुमार ने हाथ के इशारे से पानी माँगा। सोने के कटोरे में पानी भर के लौंडी ने कुमार के हाथ में दिया, पीते ही एकदम उनके दिमाग तक ठंडक पहुँच गई, साथ ही आँखों में झपकी आने लगी और धीरे-धीरे बिल्कुल बेहोश हो कर उसी गद्दी पर लेट गए। 

82
रचनाएँ
चंद्रकांता
5.0
पहला प्रसिद्ध उपन्यास चंद्रकांता सन्‌ 1888 ई. में काशी में प्रकाशित हुआ था। उसके चारो भागों के कुछ ही दिनों में कई संस्करण हो गए थे। चन्द्रकान्ता सन्तति (1894 - 1904): चन्द्रकान्ता की अभूतपूर्व सफलता से प्रेरित हो कर देवकीनन्दन खत्री ने चौबीस भागों वाले विशाल उपन्यास चंद्रकान्ता सन्तति की रचना की।
1

भाग 1

11 जून 2022
2
2
0

शाम का वक्त है,  कुछ-कुछ सूरज दिखाई दे रहा है, सुनसान मैदान में एक पहाड़ी के नीचे दो शख्स वीरेंद्रसिंह और तेजसिंह एक पत्थर की चट्टान पर बैठ कर आपस में बातें कर रहे हैं। वीरेंद्रसिंह की उम्र इक्कीस या

2

भाग 2

11 जून 2022
2
1
0

विजयगढ़ में क्रूरसिंह अपनी बैठक के अंदर नाजिम और अहमद दोनों ऐयारों के साथ बातें कर रहा है। क्रूरसिंह – ‘देखो नाजिम, महाराज का तो यह ख्याल है कि मैं राजा होकर मंत्री के लड़के को कैसे दामाद बनाऊँ, और च

3

भाग 3

11 जून 2022
2
1
0

कुछ-कुछ दिन बाकी है, चंद्रकांता, चपला और चंपा बाग में टहल रही हैं। भीनी-भीनी फूलों की महक धीमी हवा के साथ मिल कर तबीयत को खुश कर रही है। तरह-तरह के फूल खिले हुए हैं। बाग के पश्चिम की तरफ वाले आम के घन

4

भाग 4

11 जून 2022
2
1
0

तेजसिंह वीरेंद्रसिंह से रुखसत होकर विजयगढ़ पहुँचेगा और चंद्रकांता से मिलने की कोशिश करने लगे, मगर कोई तरकीब न बैठी, क्योंकि पहरे वाले बड़ी होशियारी से पहरा दे रहे थे। आखिर सोचने लगे कि क्या करना चाहिए

5

भाग 5

11 जून 2022
1
1
0

अहमद ने, जो बाग के पेड़ पर बैठा हुआ था जब देखा कि चपला ने नाजिम को गिरफ्तार कर लिया और महल में चली गई तो सोचने लगा कि चंद्रकांता, चपला और चंपा बस यही तीनों महल में गई हैं, नाजिम इन सभी के साथ नहीं गया

6

भाग 6

11 जून 2022
1
0
0

तेजसिंह को विजयगढ़ की तरफ विदा कर वीरेंद्रसिंह अपने महल में आए मगर किसी काम में उनका दिल न लगता था। हरदम चंद्रकांता की याद में सिर झुकाए बैठे रहना और जब कभी निराश हो जाना तो चंद्रकांता की तस्वीर अपने

7

भाग 7

11 जून 2022
1
1
0

अहमद के पकड़े जाने से नाजिम बहुत उदास हो गया और क्रूरसिंह को तो अपनी ही फिक्र पड़ गई कि कहीं तेजसिंह मुझको भी न पकड़ ले जाए। इस खौफ से वह हरदम चौकन्ना रहता था, मगर महाराज जयसिंह के दरबार में रोज आता औ

8

भाग 8

11 जून 2022
1
0
0

वीरेंद्रसिंह चंद्रकांता से मीठी-मीठी बातें कर रहे हैं, चपला से तेजसिंह उलझ रहे हैं, चंपा बेचारी इन लोगों का मुँह ताक रही है। अचानक एक काला कलूटा आदमी सिर से पैर तक आबनूस का कुंदा, लाल-लाल आँखें, लंगोट

9

भाग 9

11 जून 2022
1
1
0

वीरेंद्रसिंह और तेजसिंह बाग के बाहर से अपने खेमे की तरफ रवाना हुए। जब खेमे में पहुँचे तो आधी रात बीत चुकी थी, मगर तेजसिंह को कब चैन पड़ता था, वीरेंद्रसिंह को पहुँचा कर फिर लौटे और अहमद की सूरत बना क्र

10

भाग 10

11 जून 2022
1
1
0

क्रूरसिंह की तबाही का हाल शहर-भर में फैल गया। महारानी रत्नगर्भा (चंद्रकांता की माँ) और चंद्रकांता इन सभी ने भी सुना। कुमारी और चपला को बड़ी खुशी हुई। जब महाराज महल में गए तो हँसी-हँसी में महारानी ने क

11

भाग 11

11 जून 2022
1
1
0

क्रूरसिंह को बस एक यही फिक्र लगी हुई थी कि जिस तरह बने वीरेंद्रसिंह और तेजसिंह को मार डालना ही नहीं चाहिए, बल्कि नौगढ़ का राज्य ही गारत कर देना चाहिए। नाजिम को साथ लिए चुनारगढ़ पहुँचा और शिवदत्त के दर

12

भाग 12

11 जून 2022
1
1
0

वीरेंद्रसिंह और तेजसिंह नौगढ़ के किले के बाहर निकल बहुत से आदमियों को साथ लिए चंद्रप्रभा नदी के किनारे बैठ शोभा देख रहे थे। एक तरफ से चंद्रप्रभा दूसरी तरफ से करमनाशा नदी बहती हुई आई हैं और किले के नीच

13

भाग 13

11 जून 2022
1
0
0

तीन पहर रात गुजर गई, उनके सब दोस्त जो बेहोश पड़े थे वह भी होश में आए मगर अपनी हालत देख-देख हैरान थे। लोगों ने पूछा - ‘आप लोग कैसे बेहोश हो गए और दीवान साहब कहाँ हैं?’ उन्होंने कहा - ‘एक गंधी इत्र बेच

14

भाग 14

11 जून 2022
1
1
0

नौगढ़ और विजयगढ़ का राज पहाड़ी है, जंगल भी बहुत भारी और घना है, नदियाँ चंद्रप्रभा और कर्मनाशा घूमती हुईं इन पहाड़ों पर बहती हैं। जाबूजा खोह और दर्रे पहाड़ों में बड़े खूबसूरत कुदरती बने हुए हैं। पेड़ों

15

भाग 15

11 जून 2022
1
0
0

हम पहले यह लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त के यहाँ जितने ऐयार हैं सभी को तेजसिंह पहचानते हैं। अब तेजसिंह को यह जानने की फिक्र हुई कि उनमें से कौन-कौन चार आए हैं, इसलिए दूसरे दिन शाम के वक्त उन्होंने अप

16

भाग 16

11 जून 2022
1
0
0

एक दिन तेजसिंह बालादवी के लिए विजयगढ़ के बाहर निकले। पहर दिन बाकी था जब घूमते-फिरते बहुत दूर निकल गए। देखा कि एक पेड़ के नीचे कुँवर वीरेंद्रसिंह बैठे हैं। उनकी सवारी का घोड़ा पेड़ से बँधा हुआ है, सामन

17

भाग 17

11 जून 2022
1
0
0

चपला कोई साधारण औरत न थी। खूबसूरती और नजाकत के अलावा उसमें ताकत भी थी। दो-चार आदमियों से लड़ जाना या उनको गिरफ्तार कर लेना उसके लिए एक अदना-सा काम था, शस्त्र विद्या को पूरे तौर पर जानती थी। ऐयारी के फ

18

भाग 18

11 जून 2022
1
0
0

अब महाराज शिवदत्त की महफिल का हाल सुनिए। महाराज शिवदत्तसिंह महफिल में आ विराजे। रंभा के आने में देर हुई तो एक चोबदार को कहा कि जा कर उसको बुला लाएँ और चेतराम ब्राह्मण को तेजसिंह को लाने के लिए भेजा।

19

भाग 19

11 जून 2022
1
0
0

तेजसिंह को छुड़ाने के लिए जब चपला चुनारगढ़ गई तब चंपा ने जी में सोचा कि ऐयार तो बहुत से आए हैं और मैं अकेली हूँ, ऐसा न हो, कभी कोई आफत आ जाए। ऐसी तरकीब करनी चाहिए जिसमें ऐयारों का डर न रहे और रात को भ

20

भाग 20

11 जून 2022
1
0
0

महाराज शिवदत्तसिंह ने घसीटासिंह और चुन्नीलाल को तेजसिंह को पकड़ने के लिए भेज कर दरबार बर्खास्त किया और महल में चले गए, मगर दिल उनका रंभा की जुल्फों में ऐसा फँस गया था कि किसी तरह निकल ही नहीं सकता था।

21

भाग 21

11 जून 2022
1
0
0

दूसरे दिन महाराज जयसिंह दरबार में बैठे हरदयालसिंह से तेजसिंह का हाल पूछ रहे थे कि अभी तक पता लगा या नहीं, कि इतने में सामने से तेजसिंह एक बड़ा भारी गट्ठर पीठ पर लादे हुए आ पहुँचे। गठरी तो दरबार के बीच

22

भाग 22

11 जून 2022
1
0
0

सुबह होते ही कुमार नहा-धो कर जंगी कपड़े पहन हथियारों को बदन पर सजा माँ-बाप से विदा होने के लिए महल में गए। रानी से महाराज ने रात ही सब हाल कह दिया था। वे इनका फौजी ठाठ देख कर दिल में बहुत खुश हुईं। कु

23

भाग 23

11 जून 2022
1
0
0

शाम को महाराज से मिलने के लिए वीरेंद्रसिंह गए। महाराज उन्हें अपनी बगल में बैठा कर बातचीत करने लगे। इतने में हरदयालसिंह और तेजसिंह भी आ पहुँचे। महाराज ने हाल पूछा। उन्होंने अर्ज किया कि फौज मुकाबले में

24

चंद्रकांता दूसरा - भाग 1

11 जून 2022
1
0
0

इस आदमी को सभी ने देखा मगर हैरान थे कि यह कौन है, कैसे आया और क्या कह गया। तेजसिंह ने जोर से पुकार के कहा - ‘आप लोग चुप रहें, मुझको मालूम हो गया कि यह सब ऐयारी हुई है, असल में कुमारी और चपला दोनों जीत

25

भाग 2

11 जून 2022
1
0
0

मामूली वक्त पर आज महाराज ने दरबार किया। कुमार और तेजसिंह भी हाजिर हुए। आज का दरबार बिल्कुल सुस्त और उदास था, मगर कुमार ने लड़ाई पर जाने के लिए महाराज से इजाजत ले ली और वहाँ से चले गए। महाराज भी उदासी

26

भाग 3

11 जून 2022
1
0
0

कुछ दिन बाकी है, एक मैदान में हरी-हरी दूब पर पंद्रह-बीस कुर्सियाँ रखी हुई हैं और सिर्फ तीन आदमी कुँवर वीरेंद्रसिंह, तेजसिंह और फतहसिंह सेनापति बैठे हैं, बाकी कुर्सियाँ खाली पड़ी हैं। उनके पूरब की तरफ

27

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

महाराज शिवदत्त का शमला लिए हुए देवीसिंह कुँवर वीरेंद्रसिंह के पास पहुँचे और जो कुछ हुआ था बयान किया। कुमार यह सुन कर हँसने लगे और बोले - ‘चलो सगुन तो अच्छा हुआ?’ तेजसिंह ने कहा - ‘सबसे ज्यादा अच्छा

28

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

‘चंद्रकांता को ले जा कर कहाँ रखा होगा? अच्छे कमरे में या अँधेरी कोठरी में? उसको खाने को क्या दिया होगा और वह बेचारी सिवाय रोने के क्या करती होगी। खाने-पीने की उसे कब सुध होगी। उसका मुँह दु:ख और भय से

29

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

तेजसिंह चंद्रकांता और चपला का पता लगाने के लिए कुँवर वीरेंद्रसिंह से विदा हो फौज के हाते के बाहर आए और सोचने लगे कि अब किधर जाएँ, कहाँ ढूँढ़े? दुश्मन की फौज में देखने की तो कोई जरूरत नहीं क्योंकि वहाँ

30

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

अब सवेरा होने ही वाला था, महल में लौंडियों की आँखें खुलीं तो महारानी को न देख कर घबरा गईं, इधर-उधर देखा, कहीं नहीं। आखिर खूब गुल-शोर मचा, चारों तरफ खोज होने लगी, पर कहीं पता न लगा। यह खबर बाहर तक फैल

31

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

जिस जंगल में कुमार और देवीसिंह बैठे थे और उस सिपाही को पेड़ से बाँधा था वह बहुत ही घना था। वहाँ जल्दी किसी की पहुँच नहीं हो सकती थी। तेजसिंह के चले जाने पर कुमार और देवीसिंह एक साफ पत्थर की चट्टान पर

32

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

तेजसिंह पहरे वाले सिपाही की सूरत में किले के दरवाजे पर पहुँचे। कई सिपाहियों ने जो सवेरा हो जाने के सबब जाग उठे थे तेजसिंह की तरफ देख कर कहा - ‘जैरामसिंह, तुम कहाँ चले गए थे? यहाँ पहरे में गड़बड़ पड़ ग

33

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

चुनारगढ़ के किले के अंदर महाराज शिवदत्त के खास महल में एक कोठरी के अंदर जिसमें लोहे के छड़दार किवाड़ लगे हुए थे, हाथों में हथकड़ी, पैरों में बेड़ी पड़ी हुई, दरवाजे के सहारे उदास मुख वीरेंद्रसिंह बैठे

34

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

कुमारी के पास आते हुए चपला को नीचे से कुँवर वीरेंद्रसिंह वगैरह सभी ने देखा। ऊपर से चपला पुकार कर कहने लगी - ‘जिस खोह में हम लोगों को शिवदत्त ने कैद किया था उसके लगभग सात कोस दक्षिण एक पुराने खँडहर में

35

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

चार दिन रास्ते में लगे, पाँचवे दिन चुनारगढ़ की सरहद में फौज पहुँची। महाराज शिवदत्त के दीवान ने यह खबर सुनी तो घबरा उठे, क्योंकि महाराज शिवदत्त तो कैद हो ही चुके थे, लड़ने की ताकत किसे थी। बहुत-सी नजर

36

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

महाराज जयसिंह, कुँवर वीरेंद्रसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी खँडहर की सैर करने के लिए उसके अंदर गए। जाते ही यकीन हो गया कि बेशक यह तिलिस्म है। हर एक तरफ वे लोग घुसे और एक-एक चीज को अच्छी तरह दे

37

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

रात-भर जगन्नाथ ज्योतिषी रमल फेंकने और विचार करने में लगे रहे। कुँवर वीरेंद्रसिंह, तेजसिंह और देवीसिंह भी रात-भर पास ही बैठे रहे। सब बातों को देख-भाल कर ज्योतिषी जी ने कहा - ‘रमल से मालूम होता है कि इस

38

भाग 15

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन स्नान-पूजा से छुट्टी पा कर कुँवर वीरेंद्रसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी फिर उस खँडहर में घुसे, सिरका साथ में लेते गए। कल जो पत्थर निकला था उस पर जो कुछ लिखा था फिर पढ़ के याद कर लिया

39

भाग 16

11 जून 2022
0
0
0

इन फूलों को पा कर तेजसिंह जितने खुश हुए शायद अपनी उम्र में आज तक कभी ऐसे खुश न हुए होंगे। एक तो पहले ही ऐयारी में बढ़े-चढ़े थे, आज इन फूलों ने इन्हें और बढ़ा दिया। अब कौन है जो इनका मुकाबला करे? हाँ ए

40

भाग 17

11 जून 2022
0
0
0

तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी के चले जाने पर कुमार बहुत देर तक सुस्त बैठे रहे। तरह-तरह के ख्याल पैदा होते रहे, जरा खटका हुआ और दरवाजे की तरफ देखने लगते कि शायद तेजसिंह या देवीसिंह आते हों, जब किसी

41

चंद्रकांता तीसरा भाग -1

11 जून 2022
0
0
0

वह नाजुक औरत जिसके हाथ में किताब है और जो सब औरतों के आगे-आगे आ रही है, कौन और कहाँ की रहने वाली है, जब तक यह न मालूम हो जाए तब तक हम उसको वनकन्या के नाम से लिखेंगे। धीरे-धीरे चल कर वनकन्या जब उन पेड

42

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

कुँवर वीरेंद्रसिंह बैठे फतहसिंह से बातें कर रहे थे कि एक मालिन जो जवान और कुछ खूबसूरत भी थी हाथ में जंगली फूलों की डाली लिए कुमार के बगल से इस तरह निकली जैसे उसको यह मालूम नहीं कि यहाँ कोई है। मुँह से

43

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

कल रात से आज की रात कुमार को और भी भारी गुजरी। बार-बार उस बरवे को पढ़ते रहे। सवेरा होते ही उठे, स्नान-पूजा कर जंगल में जाने के लिए तेजसिंह को बुलाया, वे भी आए। आज फिर तेजसिंह ने मना किया मगर कुमार ने

44

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

तिलिस्मी खँडहर में घुस कर पहले वे उस दालान में गए जहाँ पत्थर के चबूतरे पर पत्थर ही का आदमी सोया हुआ था। कुमार ने इसी जगह से तिलिस्म तोड़ने में हाथ लगाया। जिस चबूतरे पर पत्थर का आदमी सोया था उसके सिरह

45

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी के जाने के बाद कुँवर वीरेंद्रसिंह इन लोगों के वापस आने के इंतजार में रात-भर जागते रह गए। ज्यों-ज्यों रात गुजरती थी कुमार की तबीयत घबराती थी। सवेरा होने ही वाला था जब य

46

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

देवीसिंह और ज्योतिषी जी वनकन्या की टोह में निकल कर थोड़ी ही दूर गए होंगे कि एक नकाबपोश सवार मिला। जिसने पुकार कर कहा - ‘देवीसिंह कहाँ जाते हो? तुम्हारी चालाकी हम लोगों से न चलेगी, अभी कल आप लोगों की ख

47

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

आज तेजसिंह के वापस आने और बाँके-तिरछे जवान के पहुँच कर बातचीत करने और खत लिखने में देर हो गई, दो पहर दिन चढ़ आया। तेजसिंह ने बद्रीनाथ को होश में ला कर पहरे में किया और कुमार से कहा - ‘अब स्नान-पूजा कर

48

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

देवीसिंह उस बुढ़िया के पीछे रवाना हुए। जब तक दिन बाकी रहा बुढ़िया चलती गई। उन्होंने भी पीछा न छोड़ा। कुछ रात गए तक वह चुड़ैल एक छोटे से पहाड़ के दर्रे में पहुँची जिसके दोनों तरफ ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ थी

49

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

जब दरबार बर्खास्त हुआ आधी रात जा चुकी थी। फतहसिंह दीवान साहब को ले कर अपने खेमे में गए। थोड़ी देर बाद कुमार के खेमे में तेजसिंह, देवीसिंह, और ज्योतिषी जी फिर इकट्ठे हुए। उस वक्त सिवाय इन चारों आदमियों

50

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

सुबह को कुमार ने स्नान-पूजा से छुट्टी पा कर तिलिस्म तोड़ने का इरादा किया और तीनों ऐयारों को साथ ले तिलिस्म में घुसे। कल की तरह तहखाने और कोठरियों में से होते हुए उसी बाग में पहुँचे। स्याह पत्थर के दाल

51

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

तेजसिंह को तिलिस्म में से खजाने के संदूकों को निकलवा कर नौगढ़ भेजवाने में कई दिन लगे क्योंकि उसके साथ पहरे वगैरह का बहुत कुछ इंतजाम करना पड़ा। रोज तिलिस्म में जाते और पहर दिन जब बाकी रहता तिलिस्म से ब

52

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

कुँवर वीरेंद्रसिंह के गायब होने से उनके लश्कर में खलबली पड़ गई। तेजसिंह और देवीसिंह ने घबरा कर चारों तरफ खोज की मगर कुछ पता न लगा। दिन भर बीत जाने पर ज्योतिषी जी ने तेजसिंह से कहा - ‘रमल से जान पड़ता

53

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

कुँवर वीरेंद्रसिंह धीरे-धीरे बेहोश हो कर उस गद्दी पर लेट गए। जब आँख खुली अपने को एक पत्थर की चट्टान पर सोए पाया। घबरा कर इधर-उधर देखने लगे। चारों तरफ ऊँची-ऊँची पहाड़ी, बीच में बहता चश्मा, किनारे-किनार

54

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

कुमार के गायब हो जाने के बाद तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी उनकी खोज में निकले हैं। इस खबर को सुन कर महाराज शिवदत्त के जी में फिर बेईमानी पैदा हुई। एकांत में अपने ऐयारों और दीवान को बुला कर उसने कहा

55

भाग 15

11 जून 2022
0
0
0

चुनारगढ़ के पास दो पहाड़ियों के बीच के एक नाले के किनारे शाम के वक्त पंडित बद्रीनाथ, रामनारायण, पन्नालाल, नाजिम और अहमद बैठे आपस में बातें कर रहे हैं। नाजिम – ‘क्या कहें हमारा मालिक तो बहिश्त में चला

56

भाग 16

11 जून 2022
0
0
0

राजा सुरेंद्रसिंह भी नौगढ़ से रवाना हो, दौड़े-दौड़े बिना मुकाम किए दो रोज में चुनारगढ़ के पास पहुँचे। शाम के वक्त महाराज जयसिंह को खबर लगी। फतहसिंह सेनापति को, जो उनके लश्कर के साथ थे, इस्तकबाल के लिए

57

भाग 17

11 जून 2022
0
0
0

फतहसिंह सेनापति की बहादुरी ने किले वालों के छक्के छुड़ा दिए। यही मालूम होता था कि अगर इसी तरह रात-भर लड़ाई होती रही तो सवेरे तक किला हाथ से जाता रहेगा और फाटक टूट जाएगा। आश्चर्य में पड़े बद्रीनाथ वगैर

58

भाग 18

11 जून 2022
0
0
0

तेजसिंह वगैरह ऐयारों के साथ कुमार खोह से निकल कर तिलिस्म की तरफ रवाना हुए। एक रात रास्ते में बिता कर दूसरे दिन सवेरे जब रवाना हुए तो एक नकाबपोश सवार दूर से दिखाई पड़ा, जो कुमार की तरफ ही आ रहा था। जब

59

भाग 19

11 जून 2022
0
0
0

दिन अनुमानतः पहर भर के आया होगा कि फतहसिंह की फौज लड़ती हुई, फिर किले के दरवाजे तक पहुँची। शिवदत्त की फौज बुर्जियों पर से गोलों की बौछार मार कर उन लोगों को भगाना चाहती थी कि यकायक किले का दरवाजा खुल ग

60

भाग 20

11 जून 2022
0
0
0

तिलिस्म के दरवाजे पर कुँवर वीरेंद्रसिंह का डेरा खड़ा हो गया। खजाना पहले ही निकाल चुके थे, अब कुल दो टुकड़े तिलिस्म के टूटने को बाकी थे, एक तो वह चबूतरा जिस पर पत्थर का आदमी सोया था, दूसरे अजदहे वाले द

61

चंद्रकांता चौथा भाग 1

11 जून 2022
0
0
0

वनकन्या को यकायक जमीन से निकल कर पैर पकड़ते देख वीरेंद्रसिंह एकदम घबरा उठे। देर तक सोचते रहे कि यह क्या मामला है, यहाँ वनकन्या क्यों कर आ पहुँची और यह योगी कौन हैं जो इसकी मदद कर रहे हैं? आखिर बहुत द

62

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

आखिर कुँवर वीरेंद्रसिंह ने तेजसिंह से कहा - ‘मुझे अभी तक यह न मालूम हुआ कि योगी जी ने उँगली के इशारे से तुम्हें क्या दिखाया और इतनी देर तक तुम्हारा ध्यान कहाँ अटका रहा, तुम क्या देखते रहे और अब वे दोन

63

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

यह तो मालूम हुआ कि कुमारी चंद्रकांता जीती है, मगर कहाँ है और उस खोह में से क्यों कर निकल गई, वनकन्या कौन है, योगी जी कहाँ से आए, तेजसिंह को उन्होंने क्या दिखाया इत्यादि बातों को सोचते और ख्याल दौड़ाते

64

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

राजा सुरेंद्रसिंह के सिपाहियों ने महाराज शिवदत्त और उनकी रानी को नौगढ़ पहुँचाया। जीतसिंह की राय से उन दोनों को रहने के लिए सुंदर मकान दिया गया। उनकी हथकड़ी-बेड़ी खोल दी गई, मगर हिफाजत के लिए मकान के च

65

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

कुँवर वीरेंद्रसिंह तीनों ऐयारों के साथ खोह के अंदर घूमने लगे। तेजसिंह ने इधर-उधर के कई निशानों को देख कर कुमार से कहा - ‘बेशक यहाँ का छोटा तिलिस्म तोड़ कर कोई खजाना ले गया। जरूर कुमारी चंद्रकांता को भ

66

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

विजयगढ़ के महाराज जयसिंह को पहले यह खबर मिली थी कि तिलिस्म टूट जाने पर भी कुमारी चंद्रकांता की खबर न लगी। इसके बाद यह मालूम हुआ कि कुमारी जीती-जागती है और उसी की खोज में वीरेंद्रसिंह फिर खोह के अंदर ग

67

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

बद्रीनाथ, जालिम खाँ की फिक्र में रवाना हुए। वह क्या करेंगे, कैसे जालिम खाँ को गिरफ्तार करेंगे इसका हाल किसी को मालूम नहीं। जालिम खाँ ने आखिरी इश्तिहार में महाराज को धमकाया था कि अब तुम्हारे महल में डा

68

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

कुँवर वीरेंद्रसिंह तीसरे बाग की तरफ रवाना हुए, जिसमें राजकुमारी चंद्रकांता की दरबारी तस्वीर देखी थी और जहाँ कई औरतें कैदियों की तरह इनको गिरफ्तार करके ले गई थीं। उसमें जाने का रास्ता इनको मालूम था। ज

69

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

जो कुछ दिन बाकी था, दीवान हरदयालसिंह ने जासूसों को इकट्ठा करने और समझाने-बुझाने में बिताया। शाम को सब जासूसों को साथ ले हुक्म के मुताबिक महाराज जयसिंह के पास बाग में हाजिर हुए। खुद महाराज जयसिंह ने ज

70

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

विजयगढ़ के पास भयानक जंगल में नाले के किनारे एक पत्थर की चट्टान पर दो आदमी आपस में धीरे-धीरे बातचीत कर रहे हैं। चाँदनी खूब छिटकी हुई है जिसमें इन लोगों की सूरत और पोशाक साफ दिखाई पड़ती है। दोनों आदमिय

71

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

वह दिन आ गया कि जब बारह बजे रात को बद्रीनाथ का सिर ले कर आफत खाँ महल में पहुँचे। आज शहर भर में खलबली मची हुई थी। शाम ही से महाराज जयसिंह खुद सब तरह का इंतजाम कर रहे थे। बड़े-बड़े बहादुर और फुर्तीले जव

72

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

खोह वाले तिलिस्म के अंदर बाग में कुँवर वीरेंद्रसिंह और योगी जी मे बातचीत होने लगी जिसे वनकन्या और इनके ऐयार बखूबी सुन रहे थे। कुमार - ‘पहले यह कहिए चंद्रकांता जीती है या मर गई?’ योगी – ‘राम-राम, चंद

73

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

सुबह को खुशी-खुशी महाराज ने दरबार किया। तेजसिंह और बद्रीनाथ भी बड़ी इज्जत से बैठाए गए। महाराज के हुक्म से जालिम खाँ और उसके चारों साथी दरबार में लाए गए जो हथकड़ी-बेड़ी से जकड़े हुए थे। हुक्म पा तेजसिं

74

भाग 15

11 जून 2022
0
0
0

दो घंटे बाद दरबार के बाहर से शोरगुल की आवाज आने लगी। सभी का ख्याल उसी तरफ गया। एक चोबदार ने आ कर अर्ज किया कि पंडित बद्रीनाथ उस खूनी को पकड़े लिए आ रहे हैं। उस खूनी को कमंद से बाँधे साथ लिए हुए पंडित

75

भाग 16

11 जून 2022
0
0
0

पाठक, अब वह समय आ गया कि आप भी चंद्रकांता और कुँवर वीरेंद्रसिंह को खुश होते देख खुश हों। यह तो आप समझते ही होंगे कि महाराज जयसिंह विजयगढ़ से रवाना होकर नौगढ़ जाएँगे और वहाँ से राजा सुरेंद्रसिंह और कुम

76

भाग 17

11 जून 2022
0
0
0

अपनी जगह पर दीवान हरदयालसिंह को छोड़, तेजसिंह और बद्रीनाथ को साथ ले कर महाराज जयसिंह विजयगढ़ से नौगढ़ की तरफ रवाना हुए। साथ में सिर्फ पाँच सौ आदमियों का झमेला था। एक दिन रास्ते में लगा, दूसरे दिन नौगढ

77

भाग 18

11 जून 2022
0
0
0

दिन दोपहर से कुछ ज्यादा जा चुका था। उस वक्त तक कुमार ने स्नान-पूजा कुछ नहीं की थी। लश्कर में जा कर कुमार राजा सुरेंद्रसिंह और महाराज जयसिंह से मिले और सिद्धनाथ योगी का संदेशा दिया। दोनों ने पूछा कि ब

78

भाग 19

11 जून 2022
0
0
0

बहुत सवेरे महाराज जयसिंह, राजा सुरेंद्रसिंह और कुमार अपने कुल ऐयारों को साथ ले खोह के दरवाजे पर आए। तेजसिंह ने दोनों ताले खोले जिन्हें देख महाराज जयसिंह और सुरेंद्रसिंह बहुत हैरान हुए। खोह के अंदर जा

79

भाग 20

11 जून 2022
0
0
0

महाराज जयसिंह और सुरेंद्रसिंह के पूछने पर सिद्धनाथ बाबा ने इस दिलचस्प पहाड़ी और कुमारी चंद्रकांता का हाल कहना शुरू किया। बाबा जी – ‘मुझे मालूम था कि यह पहाड़ी एक छोटा-सा तिलिस्म है और चुनारगढ़ के इला

80

भाग 21

11 जून 2022
0
0
0

सिद्धनाथ योगी ने कहा - ‘पहले इस खोह का दरवाजा खोल मैं इसके अंदर पहुँचा और पहाड़ी के ऊपर एक दर्रे में बेचारी चंद्रकांता को बेबस पड़े हुए देखा। अपने गुरु से मैं सुन चुका था कि इस खोह में कई छोटे-छोटे बा

81

भाग 22

11 जून 2022
0
0
0

बाबा जी यहाँ से उठ कर महाराज जयसिंह वगैरह को साथ ले दूसरे बाग में पहुँचे और वहाँ घूम-फिर कर तमाम बाग, इमारत, खजाना और सब असबाबों को दिखाने लगे जो इस तिलिस्म में से कुमारी ने पाया था। महाराज जयसिंह उन

82

भाग 23

11 जून 2022
0
0
0

जिस राह से कुँवर वीरेंद्रसिंह वगैरह आया-जाया करते थे और महाराज जयसिंह वगैरह आए थे, वह राह इस लायक नहीं थी कि कोई हाथी, घोड़ा या पालकी पर सवार हो कर आए और ऊपर वाली दूसरी राह में खोह के दरवाजे तक जाने म

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए