मामूली वक्त पर आज महाराज ने दरबार किया। कुमार और तेजसिंह भी हाजिर हुए। आज का दरबार बिल्कुल सुस्त और उदास था, मगर कुमार ने लड़ाई पर जाने के लिए महाराज से इजाजत ले ली और वहाँ से चले गए। महाराज भी उदासी की हालत में उठ के महल में चले गए। यह तो निश्चय हो गया कि चंद्रकांता और चपला जीती हैं मगर कहाँ हैं, किस हालत में हैं, सुखी हैं या दु:खी, इन सब बातों का ख्याल करके महल में महारानी से ले कर लौंडी तक सब उदास थीं, सभी की आँखों से आँसू जारी थे, खाने-पीने की किसी को भी फिक्र न थी, एक चंद्रकांता का ध्यान ही सभी का काम था।
महाराज जब महल में गए महारानी ने पूछा कि चंद्रकांता का पता लगाने की कुछ फिक्र की गई?’
महाराज ने कहा - ‘हाँ तेजसिंह उसकी खोज में जाते हैं, उनसे ज्यादा पता लगाने वाला कौन है जिससे मैं कहूँ? वीरेंद्रसिंह भी इस वक्त लड़ाई पर जाने के लिए मुझसे विदा हो गए, अब देखो क्या होता है।’