अहमद ने, जो बाग के पेड़ पर बैठा हुआ था जब देखा कि चपला ने नाजिम को गिरफ्तार कर लिया और महल में चली गई तो सोचने लगा कि चंद्रकांता, चपला और चंपा बस यही तीनों महल में गई हैं, नाजिम इन सभी के साथ नहीं गया तो जरूर वह इस बगीचे में ही कहीं कैद होगा, यह सोच वह पेड़ से उतर इधर-उधर ढूँढ़ने लगा। जब उस तहखाने के पास पहुँचा जिसमें नाजिम कैद था तो भीतर से चिल्लाने की आवाज आई जिसे सुन उसने पहचान लिया कि नाजिम की आवाज है। तहखाने के किवाड़ खोल अंदर गया, नाजिम को बँधा पा झट से उसकी रस्सी खोली और तहखाने के बाहर आ कर बोला - ‘चलो जल्दी, इस बगीचे के बाहर हो जाएँ तब सब हाल सुनें कि क्या हुआ।’
नाजिम और अहमद बगीचे के बाहर आए और चलते-चलते आपस में बाच-चीत करने लगे। नाजिम ने चपला के हाथ फँस जाने और कोड़ा खाने का पूरा हाल कहा।
अहमद – ‘भाई नाजिम, जब तक पहले चपला को हम लोग न पकड़ लेंगे तब तक कोई काम न होगा, क्योंकि चपला बड़ी चालाक है और धीरे-धीरे चंपा को भी तेज कर रही है। अगर वह गिरफ्तार न की जाएगी तो थोड़े ही दिनों में एक की दो हो जाएगी चंपा भी इस काम में तेज होकर चपला का साथ देने लायक हो जाएगी।’
नाजिम – ‘ठीक है, खैर, आज तो कोई काम नहीं हो सकता, मुश्किल से जान बची है। हाँ, कल पहले यही काम करना है, यानी जिस तरह से हो चपला को पकड़ना और ऐसी जगह छिपाना है कि जहाँ पता न लगे और अपने ऊपर किसी को शक भी न हो।’
ये दोनों आपस में धीरे-धीरे बातें करते चले जा रहे थे, थोड़ी देर में जब महल के अगले दरवाजे के पास पहुँचे तो देखा कि केतकी जो कुमारी चंद्रकांता की लौंडी है, सामने से चली आ रही है।
तेजसिंह ने भी, जो केतकी के वेश में चले आ रहे थे, नाजिम और अहमद को देखते ही पहचान लिया और सोचने लगे कि भले मौके पर ये दोनों मिल गए हैं और अपनी भी सूरत अच्छी है, इस समय इन दोनों से कुछ खेल करना चाहिए और बन पड़े तो दोनों नहीं, एक को तो जरूर ही पकड़ना चाहिए।
तेजसिंह जान-बूझ कर इन दोनों के पास से होकर निकले। नाजिम और अहमद भी यह सोच कर उसके पीछे हो लिए कि देखें कहाँ जाती है? नकली केतकी (तेजसिंह) ने मुड़ कर देखा और कहा - ‘तुम लोग मेरे पीछे-पीछे क्यों चले आ रहे हो? जिस काम पर मुकर्रर हो उस काम को करो।’
अहमद ने कहा - ‘किस काम पर मुकर्रर हैं और क्या करें?, तुम क्या जानती हो?’
केतकी ने कहा - ‘मैं सब जानती हूँ। तुम वही काम करो जिसमें चपला के हाथ की जूतियाँ नसीब हों। जिस जगह तुम्हारी मददगार एक लौंडी तक नहीं है वहाँ तुम्हारे किए क्या होगा?’
नाजिम और अहमद केतकी की बात सुन कर दंग रह गए और सोचने लगे कि यह तो बड़ी चालाक मालूम होती है। अगर हम लोगों के मेल में आ जाए तो बड़ा काम निकले, इसकी बातों से मालूम भी होता है कि कुछ लालच देने पर हम लोगों का साथ देगी।
नाजिम ने कहा - ‘सुनो केतकी, हम लोगों का तो काम ही चालाकी करने का है। हम लोग अगर पकड़े जाने और मरने-मारने से डरें तो कभी काम न चले, इसी की बदौलत खाते हैं, बात-की-बात में हजारों रुपए इनाम मिलते हैं, खुदा की मेहरबानी से तुम्हारे जैसे मददगार भी मिल जाते हैं जैसे आज तुम मिल गईं। अब तुमको भी मुनासिब है कि हमारी मदद करो, जो कुछ हमको मिलेगा उससे हम तुमको भी हिस्सा देंगे।’
केतकी ने कहा - ‘सुनो जी, मैं उम्मीद के ऊपर जान देने वाली नहीं हूँ, वे कोई दूसरे होंगे। मैं तो पहले दाम लेती हूँ। अब इस वक्त अगर कुछ मुझको दो तो मैं अभी तेजसिंह को तुम्हारे हाथ गिरफ्तार करा दूँ, नहीं तो जाओ, जो कुछ करते हो, करो।’
तेजसिंह की गिरफ्तारी का हाल सुनते ही दोनों की तबीयत खुश हो गई। नाजिम ने कहा - ‘अगर तेजसिंह को पकड़वा दो तो जो कहो हम तुमको दें।’
केतकी – ‘एक हजार रुपए से कम मैं हरगिज न लूँगी। अगर मंजूर हो तो लाओ रुपए मेरे सामने रखो।’
नाजिम – ‘अब इस वक्त आधी रात को मैं कहाँ से रुपए लाऊँ, हाँ कल जरूर दे दूँगा।’
केतकी – ‘ऐसी बातें मुझसे न करो, मैं पहले ही कह चुकी हूँ कि मैं उधार सौदा नहीं करती, लो मैं जाती हूँ।’
नाजिम - (आगे से रोक कर) ‘सुनो तो, तुम खफा क्यों होती हो? अगर तुमको हम लोगों का ऐतबार न हो तो तुम इसी जगह ठहरो, हम लोग जा कर रुपए ले आते हैं।’
केतकी – ‘अच्छा, एक आदमी यहाँ मेरे पास रहे और एक आदमी जा कर रुपए ले आओ।’
नाजिम – ‘अच्छा, अहमद यहाँ तुम्हारे पास ठहरता है, मैं जा कर रुपए ले आता हूँ।’
यह कह कर नाजिम ने अहमद को तो उसी जगह छोड़ा और आप खुशी-खुशी क्रूरसिंह की तरफ रुपए लेने को चला।
नाजिम के चले जाने के बाद थोड़ी देर तक केतकी और अहमद इधर-उधर की बातें करते रहे। बात करते-करते केतकी ने दो-चार इलायची बटुए से निकाल कर अहमद को दीं और आप भी खाईं। अहमद को तेजसिंह के पकड़े जाने की उम्मीद में इतनी खुशी थी कि कुछ सोच न सका और इलायची खा गया, मगर थोड़ी ही देर में उसका सिर घूमने लगा। तब समझ गया कि यह कोई ऐयार (चालाक) है जिसने धोखा दिया। चट कमर से खंजर खींच बिना कुछ कहे केतकी को मारा, मगर केतकी पहले से होशियार थी, दाँव बचा कर उसने अहमद की कलाई पकड़ ली जिससे अहमद कुछ न कर सका बल्कि जरा ही देर में बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ा। तेजसिंह ने उसकी मुश्कें बाँध कर चादर में गठरी कसी और पीठ पर लाद नौगढ़ का रास्ता लिया। खुशी के मारे जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाते चले गए, यह भी ख्याल था कि कहीं ऐसा न हो कि नाजिम आ जाए और पीछा करे।
इधर नाजिम रुपए लेने के लिए गया तो सीधे क्रूरसिंह के मकान पर पहुँचा। उस समय क्रूरसिंह गहरी नींद में सो रहा था। जाते ही नाजिम ने उसको जगाया।
क्रूरसिंह ने पूछा - ‘क्या है जो इस वक्त आधी रात के समय आ कर मुझको उठा रहे हो?’
नाजिम ने क्रूरसिंह से अपनी पूरी कैफियत, यानी चंद्रकांता के बाग में जाना और गिरफ्तार होकर कोड़े खाना, अमहद का छुड़ा लाना, फिर वहाँ से रवाना होना, रास्ते में केतकी से मिलना और हजार रुपए पर तेजसिंह को पकड़वा देने की बातचीत तय करना वगैरह सब खुलासा हाल कह सुनाया।
क्रूरसिंह ने नाजिम के पकड़े जाने का हाल सुन कर कुछ अफसोस तो किया मगर पीछे तेजसिंह के गिरफ्तार होने की उम्मीद सुन कर उछल पड़ा, और बोला - ‘लो, अभी हजार रुपए देता हूँ, बल्कि खुद तुम्हारे साथ चलता हूँ’ यह कह कर उसने हजार रुपए संदूक में से निकाले और नाजिम के साथ हो लिया।
जब नाजिम क्रूरसिंह को साथ ले कर वहाँ पहुँचा जहाँ अहमद और केतकी को छोड़ा था तो दोनों में से कोई न मिला।
नाजिम तो सन्न हो गया और उसके मुँह से झट यह बात निकल पड़ी कि धोखा हुआ।’
क्रूरसिंह – ‘कहो नाजिम, क्या हुआ।’
नाजिम – ‘क्या कहूँ, वह जरूर केतकी नहीं कोई ऐयार था, जिसने पूरा धोखा दिया और अहमद को तो ले ही गया।’
क्रूरसिंह – ‘खूब, तुम तो बाग में ही चपला के हाथ से पिट चुके थे। अहमद बाकी था सो वह भी इस वक्त कहीं जूते खाता होगा, चलो छुट्टी हुई।’
नाजिम ने शक मिटाने के लिए थोड़ी देर तक इधर-उधर खोज भी की, पर कुछ पता न लगा, आखिर रोते-पीटते दोनों ने घर का रास्ता लिया।