बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?
प्राणों की मसोस, गीतों की
कड़ियाँ बन-बन रह जाती हैं
आँखों की बूँदें बूँदों पर
चढ़-चढ़ उमड़-घुमड़ आती हैं
रे निठुर किस के लिए
मैं आँसुओं में प्यार खोलूँ
बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?
मत उकसा, मेरे मन मोहन कि मैं
जगत-हित कुछ लिख डालूँ
तू है मेरा जगत, कि जग में
और कौन-सा जग मैं पा लूँ
तू न आए तो भला कब
तक कलेजा मैं टटोलूँ
बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?
तुमसे बोल बोलते, बोली
बनी हमारी कविता रानी
तुम से रूठ, तान बन बैठी
मेरी यह सिसकें दीवानी
अरे जी के ज्वार, जी से काढ़
फिर किस तौल तोलूँ
बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?
तुझे पुकारूँ तो हरियातीं
ये आहें, बेलों-तरुओं पर
तेरी याद गूँज उठती है
नभ-मंडल में विहगों के स्वर
नयन के साजन, नयन में
प्राण ले किस तरह डोलूँ
बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?
भर-भर आतीं तेरी यादें
प्रकृति में, बन राम कहानी
स्वयं भूल जाता हूँ, यह है
तेरी याद कि मेरी बानी
स्मरण की जंजीर तेरी
लटकती बन कसक मेरी
बाँधने जाकर बना बंदी
कि किस विधि बंद खोलूँ
बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?