नहीं लिया हथियार हाथ में, नहीं किया कोई प्रतिकार
अत्याचार न होने देंगे बस इतनी ही थी मनुहार
सत्याग्रह के सैनिक थे ये, सब सह कर रह कर उपवास
वास बन्दियों मे स्वीकृत था, हृदय-देश पर था विश्वास
मुरझा तन था, निश्वल मन था जीवन ही केवल धन था
मुसलमान हिन्दूपन छोड़ा बस निर्मल अपनापन था।
मंदिर में था चाँद चमकता, मसजिद में मुरली की तान
मक्का हो चाहे वृन्दावन होते आपस में कुर्बान
सूखी रोटी दोनों खाते, पीते थे रावी का जल
मानो मल धोने को पाया, उसने अहा उसी दिन बल
गुरु गोविन्द तुम्हारे बच्चे अब भी तन चुनवाते हैं
पथ से विचलित न हों, मुदित गोली से मारे जाते हैं।
गली-गली में अली-अली की गूँज मचाते हिल-मिलकर
मारे जाते, कर न उठाते, हृदय चढ़ाते खिल-खिल कर
कहो करें क्या, बैठे हैं हम, सुनें मस्त आवाजों को
धो लेवें रावी के जल से, हम इन ताजे घावों को।
रामचन्द्र मुखचन्द्र तुम्हारा घातक से कब कुम्हलाया
तुमको मारा नहीं वीर अपने को उसने मरवाया।
जाओ, जाओ, जाओ प्रभु को, पहुँचाओ स्वदेश-संदेश
“गोली से मारे जाते हैं भारतवासी, हे सर्वेश”।
रामचन्द्र तुम कर्मचन्द्र सुत बनकर आ जाना सानन्द
जिससे माता के संकट के बंधन तोड़ सको स्वच्छन्द।
चिन्ता है होवे न कलंकित हिन्दू धर्म, पाक इस्लाम
गावें दोनों सुध-बुध खोकर या अल्ला, जय जय घनश्याम।
स्वागत है सब जगतीतल का, उसके अत्याचारों का
अपनापन रख कर स्वागत है, उसकी दुर्बल मारो का
हिन्दू-मुसलिम-ऐक्य बनाया स्वागत उन उपहारों का
पर मिटने के दिवस रूप धर आवेंगे त्योहारों का।
गोली को सह जाओ, जाओ प्रिय अब्दुल करीम जाओ
अपनी बीती हुई खुदा तक अपने बन कर पहुँचाओ।