वे तुम्हारे बोल
वह तुम्हारा प्यार, चुम्बन
वह तुम्हारा स्नेह-सिहरन
वे तुम्हारे बोल
वे अनमोल मोती
वे रजत-क्षण
वह तुम्हारे आँसुओं के बिन्दु
वे लोने सरोवर
बिन्दुओं में प्रेम के भगवान का
संगीत भर-भर
बोलते थे तुम
अमर रस घोलते थे
तुम हठीले
पर हॄदय-पट तार
हो पाये कभी मेरे न गीले
ना, अजी मैंने
सुने तक भी
नहीं, प्यारे
तुम्हारे बोल
बोल से बढ़कर, बजा, मेरे हृदय में
सुख क्षणों का ढोल
वे तुम्हारे बोल
किंतु
आज जब
तुव युगुल-भुज के
हार का
मेरे हिये में
है नहीं उपहार
आज भावों से भरा वह
मौन है, तव मधुर स्वर सुकुमार
आज मैंने
बीन खोई
बीन-वादक का
अमर स्वर-भार
आज मैं तो
खो चुका
साँसें-उसाँसें
और अपना लाड़ला
उर ज्वार
आज जब तुम
हो नहीं, इस
फूस कुटिया में
कि कसक समेत
’चेत’ की चेतावनी देने
पधारे हिय-स्वभाव अचेत।
और यह क्या
वे तुम्हारे बोल
जिनको वध किया था
पा तुम्हें सुख साथ
कल्पना के रथ चढ़े आये
उठाये तर्जना का हाथ।
आज तुम होते कि
यह वर माँगता हूँ
इस उजड़ती हाट में
घर माँगता हूँ
लौटकर समझा रहे
जी भा रहे तव बोल
बोल पर, जी दूखता है
रहे शत शिर डोल
जब न तुम हो तब
तुम्हारे बोल लौटे प्राण
और समझाने लगे तुम
प्राण हो तुम प्राण
प्राण बोलो वे तुम्हारे बोल
कल्पना पर चढ़
उतर जी पर
कसक में घोल
एक बिरिया
एक विरिया
फिर कहो वे बोल।