फागुन के उल्लास पर एक चौताल का नया सृजन, आशीष की अपेक्षा लिए हुए, आप सभी आदरणीय मित्रों को सादर निवेदित है..........
"चौताल"
फागुन को रंग लगाय गई, पनघट पट आई पनिहारिन
रंग रसियन चाह बढ़ाय गई, गागरिया लाई पनिहारिन
निहुरि घड़ा अस भरति छबीली.................................
मानहु मन बसंत डोलाय गई, पनघट पट आई पनिहारिन।।-1
अधखिली कली भरमाय गई, झटपट नियराई पनिहारिन
मानहुँ मदन कदम पद चूमति...........................................
रंग घोरि बदन लपटाय गई, लटपट बिखराई पनिहारिन।।-2
रंगिहों केहि भांति बताय गई, घूंघट सरकाई पनिहारिन
गोल कपोल गुलाल मलहु मति.....................................
चोली चुनरी सरकाय गई, नटखट नरमाई पनिहारिन।।-3
लय ढोलक मंजिरा बजाय गई, चौताल सिखाई पनिहारिन
वैसवार रंगफाग बिरह यति.............................................
मिलि गौतम नेह लगाय गई, बिहँसी बलखाई पनिहारिन।।-4
महातम मिश्र (गौतम)