सादर शुभप्रभात प्रिय मित्रों, कुछ दिनों के पश्चात आप सभी से पुन: मिलन का सौभग्य मिला, माँ गंगा का आशीष मिला और आप सभी का स्नेह मिला, आज मंच के सम्मान में एक दोहा शीर्षक मुक्तक आप सभी को सादर निवेदित है...........शीर्षक है, अंधकार/अँधेरा/तिमिर/तीरगी
“शीर्षक मुक्तक”
मन में उठा विषाद है, अंधकार को दोष
रे प्रकाश तूँ कहाँ है, तिमिर तीरगी रोष।
छाया अंधेरा अनत, चक्षुहीन लिए दीप
अंधा बांटे गुड़ चना, कूप पड़त संतोष॥
महातम मिश्र