मंच के सम्मानार्थ प्रेषित एक पद काव्य.........
"पद"
ऊधौ बांचो राग विरागा
जतन कियो कपटी मन साधा, चित न चढ़ो अनुरागा।
पाई पाई जोड़ा तिनका, तासो तमस चिरागा।।
बहुत चाह से रखा शरीरा, पहिरायो मन धागा
रोज सुबह इठलाये मनवा, काँव काँव कर कागा।।
पिया न आए ठौर ठिकाने, सौतन पर हिय लागा
उनहि कोइ उपचार बताओ, ऊधौ जिय ले भागा।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपूरी