सादर शुभप्रभात आदरणीय मित्रों, एक नई गजल आप सभी को सादर प्रस्तुत हैं आशीष की अनुकंपा सह......
"गजल"
हम मुलाकात करने गए, पर तुम नाराज से दिखे
तुम्हारी नज़रों से पूछा, तो तुम नासाज से दिखे
आखिर क्या है तुम्हारी, जिंदगी सफर का मिजाज
कभी-कभी तुम अपने आप में, खुशमिजाज से दिखे ।।
क्यूँ नहीं करते अपनों से, अपने अरमाने जफ़ा
अकड़ गई जिन्दगी पर, तुम उसी अंदाज से दिखे ।।
मिल परायों से कबतक, बहाओगे अपने जज्बात
खीचते रहे गाड़ी जुतकर, फिर उसी गैराज से दिखे ।।
खुद पर तनिक भरोशा, करके देख लो जनाब
हंसिया अपना ही है, तुम्ही तुनकमिजाज से दिखे ।।
दूरियां जमीन से नहीं , दिल से करती है वफ़ा
पर तुम खुदगर्ज ही ठहरे, और लाइलाज से दिखे ।।
महातम मिश्र