“कुंडलिया”
कल्पवृक्ष एक साधना, देवा ऋषि की राह
पात पात से तप तपा, डाल डाल से छांह
डाल डाल से छांह, मिली छाई हरियाली
कहते वेद पुराण, अकल्पित नहि खुशियाली
बैठो गौतम आय, सुनहरे पावन ये वृक्ष
माया दें विसराय, अलौकिक शिवा कल्पवृक्ष॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी