चित्र अभिव्यक्ति आयोजन
मंच को सादर प्रस्तुत है एक कुण्डलिया छन्द..............
बढ़ी उमर गुजरी हुई, साथी संग मुकाम
रफ़्ता रफ़्ता सरकती, जीवन पहिया शाम
जीवन पहिया शाम, न बिछड़े बैरी का भी
बहुत कठिन आयाम, बुढ़ापा बड़ घर का भी
कह गौतम कविराय, बिना बेसना की कढ़ी
संगिनी है सहाय, उमर ज्यों पग पग बढ़ी॥
महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी