मंच को सादर निवेदित है एक ग़ज़ल............
212 212 212 212
तर्ज- हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम
"ग़ज़ल"
तुम न आते न मौसम बदलता सनम
दूर बादल कहीं रुक बरसता सनम
आह भरती रही ये बिजुरया चमक
श्वांस मेरे न बादल गरजता सनम।।
तुमहि मेरे सबर के हो अभिराम जी
पास आओ जरा गम सुलगता सनम।।
देख लो बह चली आप शीतल हवा
हर दिशाओ दिशा में चपलता सनम।।
आज खुश्बू सहित हर तमन्ना सजी
बिन कली के न भौरा मचलता सनम।।
पुष्प खिलता नहीं है परागों बिना
बाग़ माली बिना कब संवरता सनम।।
याद गौतम दिलों से निकलती नहीं
खुद न पाथर दिवाना पिघलता सनम।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी