सम्मानित मंच के सम्मुख सादर प्रस्तुत है एक गज़ल........
“गज़ल”
अब लगता है हम भी बदलने लगे
फल बड़े पेड़ छोटे आम्र फलने लगे
गमलों में लगाया आम्रपाली बहुत
स्वाद फ्रूटी पर बच्चे पिघलने लगे॥
महुआ अब टपकती नहीं बाग में
लय अंगूरी लता संग थिरकने लगे॥
इन अनारी के दानों को मुंह में रखे
गुच्छ मचले तो रसधर बरसने लगे॥
बेर देखा लगा छोटे अमरूद हैं सब
रुक इलाहाबादी गली से सरकने लगे॥
घूमा भिंडी गली में न भिंडी दिखी
राह कुनरू करैला अब पकड़ने लगे॥
क्या से क्या हो रहा हैं गजबे हवा
कायदे रुख बेगुनाही पे बदलने लगे॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी