वज्न- 1222 1222 1222 1222
"खुदा
भी जब जमीं पर आसमाँ पर देखता होगा"
"ग़ज़ल"
हवाओं में तपिस इतनी भिगे दामन मिनारों में
न बच पाए चुनर धानी न
पानी ही किनारों में
बदले रुख दिशाओं ने भली
बरसात की बातें
सनम अपनी अदाओं को
दिखादे आ दिदारों में।।
बुलाती है तुझे तेरी
तलैया आज चिंता में
तड़फती हैं मछलियां चैन
खोती घिर विचारों में।।
दरख्तों की नमी सूखी हुई
जस बांस की बंसी
बजा दो राग बासंती
प्रिये बागों बिहारों में।।
सुबह होती तरस जगती अधर
प्यासे हुए मेरे
पिला दो घूंट प्याले को
तमन्ना तक इसारों में।।
जिला दो फिर बहे दरिया
दिखाए जोश में मोजा
करवटें ले रही धरती
सरकती है विकारों में।।
सुहानी रात में आकाश
तारों से भरा रहता
मगर दिन में अगन वर्षा
गिराए छुप सितारों में।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी