"मनहर घनाक्षरी"
सुबह की लाली लिए, अपनी सवारी लिए, सूरज निकलता है, जश्न तो मनाइए
नित्य प्रति क्रिया कर्म, साथ लिए मर्म धर्म, सुबह शाम रात की, चाँदनी नहाइए
कहत कवित्त कवि, दिल में उछाह भरि, स्वस्थ स्नेह करुणा को, हिल मिल गाइए
रखिए अनेको चाह, सुख दुःख साथ साथ, महिमा मानवता की, प्रभाती सुनाइए।।
देखिए सुजान आप, साथ साथ माई बाप, घर परिवार संग, स्नेह दुलराइए
करत विनोद हास्य, मीठी बोली आस पास, वन बाग़ घर द्वार, जगत हंसाइए
प्रपंच छल कटुता, उगाए नहीं प्रभुता, प्यार की जमीन लिए, पौध बन जाइए
आइए मिलाएं हाथ, साथ कहें सुप्रभात, नेह की छाया में, बैठिए बिठाइए।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी