"कुंडलिया"
लाली
उगी सुबह लिए, पूरब सूरज तात
नवतर
किरणें खेल ती, मन भाए प्रभात
मन भाए
प्रभात, निहारूँ सुन्दर बेला
भ्रमर
भंगिमा प्रात, पुष्प दिखलाए खेला
कह
गौतम चितलाय, सुहानी बरखा आली
घटत
बढ़त निशि जाय, पल्लवित हर्षित लाली।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी