सादर शुभदिवस आदरणीय मित्रों, एक ग़ज़ल आप सभी को सादर निवेदित है, आभार
"ग़ज़ल"
चलो आज फिर से, लिख लेते पढ़के
किताबों के पन्नों में, खो जाते मिलके
कई बार लिख लिख, मिटाई इबारत
अब न लिखेंगे जो, मिट जाए लिखके ।।
बचपन की पटरी, न पढ़ती जवानी
बहुत नाज रखती, नशा नक्श दिलके ।।
कहरहा तजुरबा, वक्त की नजाकत
मिलती न शोहरत, न मिले मन मनके ।।
न मिलता जनम है, यूँ ही जिंदगी में
मिलती न शोहबत, इतर चाह बनके ।।
जलता कब दीपक, रोशनी बुझा के
चरागों की छाँव, कब आए छनके ।।
महातम मिश्र