एक
भोजपुरी रचना.........
“मन अजोर हो गइल”
तोहरी देखली सुरतिया मन
अजोर हो गइल
रात देखली सपन सजन
चितचोर हो गइल
चित के चैना उड़ल मन के
मैना उड़ल
पंहुचल बगिया में जाके
बिभोर हो गइल॥
प्रीति के रीति कबहु हम
न पढ़ली सखी
आज सिखली नव हरफ बड़ शोर
हो गइल॥
सुधि बुधि खो गइल राह
अरुझे लगल
अंगना के अंजोरिया बहुत
थोर हो गइल॥
कइसन हवे ई पढ़ाई
आठोंडांडी छितराइल
कोर पन्ना मोर रहल
सराबोर हो गइल॥
लोगवा घूरि-घूरि के
बाँचे लें पतिया हमार
अस बुझाला की फरल डार
झकोर हो गइल॥
चेहरा उतरि-गिरि जाला
याद आवे पठशाला
बितल बिछड़ल दिनवा अब
चकोर हो गइल॥
केहू मारे हनि ताना
केहुके पाकल निशाना
मोर जनाना बनि जियल
कमजोर हो गइल॥
अबो पढ़ेला लोगवा
नित-नित नव पढ़ाई
मोरे समय के डोर अब
बेडोर हो गइल॥
- महातम
मिश्र, गौतम गोरखपुरी