सादर शुभप्रभात
मित्रगण, आज आप सभी को सादर निवेदित है एक कुण्डलिया छंद..............
“कुण्डलिया छंद”
मन जब मन की ना सुने, करे वाद प्रतिवाद
कुंठित हो विचरण करे, ताहि शरण अवसाद
ताहि शरण अवसाद, निरंकुश बैन उचारे
लपकि करे अपराध, हताहत रोष पुकारे
कह गौतम कविराय, न विकृति बोली सज्जन
बिन वाणी अकुलाय, विहंगम है चंचल मन॥
महातम मिश्र (गौतम)