एक रचना आप सभी
के समक्ष प्रस्तुत है सादर सुझाव
आपेक्षित………..
“गज़ल”
बेढंगी उँगली को लिखना सिखाया आप ने
ककहरे की बारहखड़ी भी बताया आप ने
अब कलम चलने लगी है कागजों पर बिनरुके
कह तजुरबे की कहानी भी सुनाया आप ने॥
शब्द है जुडने लगे मिले अक्षरों के पारखी
बहस करते तोतले भाषण सुनाया आप ने॥
आप तो उस्ताद है स्वरों सुधा आलाप के
टूटकर विखरे तरन्नुम भी उठाया आप ने॥
वक्त के हालात पर बदली गई हैं बोलियां
है हकिकत लाजिमी अवगुण छिपाया आप ने॥
कह दिया क्या कलम ने जो उठी हैं उँगलियाँ
लिख दिया मंदिर व मस्जिद भी लिखाया आप
ने॥
अब भला किस दोष पे जलने लगी है बाँतियाँ
बह रही है साथ लौ चलना सिखाया आप ने॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी