एव मंच को सादर निवेदित है
“हाइकु”
वो पहाड़ है
तमतमाया हुआ
मानों हिला है॥
धूल उडी है
आस पास बिखरी
हवा चली है॥
हलचल है
अंदर ही अंदर
शुष्क नमी है॥
सड़क पर
औंधे मुंह गिरा है
जहां जमीं है॥
निकलेगा वो
कारवां लिए हुए
शिला चली है॥
रोक लो उसे
गिरते ही उठेगी
खलबली है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी