दिगपाल छंद पर पहला प्रयास, 12-12 पर यती, प्रथम यति के अंत में गुरु, और द्वितीय अति के अंत में दो
गुरु तथा दो पंक्तियों का तुकांत......
"दिगपाल
छंद"
भुजबल की ताकत ही, साथ निभाती भाया
पराए की छाँव तो, मोहिनी धरे माया।।
करमो धरम के बिना, हिलती न नीर नैया
आलस की बाजी को, पार लगाए दैया।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी