प्रदत चित्र पर किसी भी विधा मे एक साहित्यिक रचना के तहत
"ग़ज़ल, दरख़्त व छाँव"
दरख्तों की छाँव तो बिताएं गिन गिन
महल बहुत मुश्किल से काटते हैं दिन
काश रुक पाता नदी लिए पेड़ों की छैयां
तो झुरमुटों की छाँव बैठता एक दिन।।
शुद्ध पानी दीवारों से छान पिया बहुत
चुल्लूभर पीता सतही गन्दगी हटाके घिन।।
दोनें में भर लाता नदी का विषैला नीर
नीलकंठ को नहला देता फिर से एक दिन।।
अमराइयों से कहता ऊगा अब नई कोपलें
चिड़ियों को बिठाता बना घोंसला चुनचुन।।
राहगीरों को सहलाती पुरवाइयां पेड़ों की
मंजिलों को निहारता बजाकर मधुर बिन।।
त्योहारों से कहता पानी पेड़ का रिश्ता
होली में पानी पानी कर देता आज के दिन।।
सूखी होली मिलावटी मेवा की गुझिया
सराबोर कर देता तुझे तनिक मेरी भी सुन।।
लगा ले अपने आँगन में एक अदद् बिरवां
फिर देख मुंडेर अपने ता धिनक धिन धिन।।
महातम मिश्र