"मत्तगयंद मालती सवैया" सात
भगण दो गुरु
माखन मीसिरि को नहि लागत मीठ मिठाइ जु मोहन मानो
आवत हो तुम मोर घरे
मटकी संग चोरत हो हिय जानो।।
एकहि बार विचार कियो तुम गोपिन तोहरी राह बखानो
आज कहूँ मन माधव मोहन
को नहि तो सम प्रान पियानो।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी