"चतुष्पदी"
लगा न देना यार दुबारा दरवाजे पर फिर ताला।
भरा मिला है बहुत दिनों के बाद प्रेम से तर प्याला।
कहा सभी ने पी लो इसको दवा बहुत अक्सीर है-
मगर न लेना हद से ज्यादे पी जाती है मधुशाला।।
लगा लगा कर थक जाती है दुनिया अपने घर ताला।
खुली हुई खिड़की से आती खुश्बू मदमाती लाला।
पिया करो गम भी हैं सुंदर अपनों ने ईजाद किया-
भरी सड़क पर सहलाती है पुनः पिलाती मधुशाला।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी