"चौराहे की बतकही"
झिनकू भैया अपने गाँव के एक मध्यम किसान हैं, अच्छी खेती करते हैं, प्रति वर्ष करीब चार लाख का गल्ला, नजदीकी सरकारी खरीद केंद्र पर बिक्री कर देते हैं। कुछ सरकारी अनुदान इत्यादि भी मिल ही जाता है। अभी अभी कृषि कानून जो सरकार ने दोनों सदनों से पारित किया है उससे वे संतुष्ट भी हैं। कर्मठी व्यक्ति हैं शायद इसी लिए देश का चंहुँमुखी विकास देखकर सरकार के कामों का समर्थन भी करते हैं। शियासत से कोषों दूर रहते है पर तथाकथित किसान आंदोलन से खिन्न हो गए हैं और समाचार पत्र की खबरों से आहत भी हैं।
एक दिन चौराहे पर अचानक मिल गए और अपने गुबार रोक न पाए। कहने लगे यह किसान के नाम पर आंदोलन है इससे किसान का कोई लेना देना नहीं है कुछ मुट्ठी भर लोग जो बाजार के सरगना हैं जिनका करोड़ों का व्यापार है उन्हीं के पेट का दर्द है। इस बिल से उनका शायद बहुत कुछ घाटा हो रहा है, उनको उनके रास्ते में कुछ अवरोध दिख रहा है जिससे यह आंदोलन महीनों से सड़क पर अपनी मनमानी कर रहा है। करोड़ों का खर्च प्रतिदिन हो रहा है, राजनीति हो रही है, देश का कितना नुकसान हो रहा है।क्या अन्नदाता ऐसा कर सकता है जरूर दाल में कुछ कालापन है?।
सुरेश बीच में टपक पड़ा और कहने लगा झिनकू भैया आप की बात सही भी हो सकती है, अभी कुछ दिन पहले ही शाहीन बाग आंदोलन सरकार के सिर का दर्द बना हुआ था जिसकी कलई उतर रही है। पर यह आंदोलन कुछ हटकर है, किसान बिल में एम एस पी को कानूनी दर्जा तो देना ही चाहिए। जब डीजल- पेट्रोल, सोना, घरेलू उत्पाद इत्यादि एक ही निर्धारित मूल्य पर बिक रहें हैं तो किसान की उपज का मूल्य अलग-अलग क्यों है। किसान की लागत की अनदेखी क्यों हो रही है। सरकारी समितियों पर गेंहूँ धान इत्यादि का जो मूल्य निर्धारित है वहीं मूल्य बाजार में क्यों नहीं?, बाजार में गेंहूँ आज 1600 और धान 1100 रुपये प्रति कुंटल है। क्या यह उचित मूल्य है जब कि सरकार लगभग 1900 में खरीदी कर रही है। बड़े किसान बेशक अपनी उपज सरकारी समितियों पर बेंच लेते हैं लेकिन छोटे व जरूरत मंद किसान एक दो कुंटल अनाज लेकर कहाँ समिति पर टिक पाता है। इस दर्द को सभी को समझना चाहिए और समर्थित मूल्य बाजारों पर भी लागू होना चाहिए ताकि किसान अपनी गृहस्ती चला सके। झिनकू भैया बड़े इत्मीनान से सुन रहे थे और बोले बिल्कुल सही कह रहे हो सुरेश बाबू यह हो जाय तो सर्व मंगल हो।
झिनकू भैया खुश होकर बोले, चलो भाई अब घर चलते है शाम हो गई, वार्ता बहुत अच्छी लगी कुछ लोग और आ जाते तो टी वी जैसा सिर कूट शुरू हो जाता, पक्ष विपक्ष अपनी हाँकते रहते और ऐंकर चिल्ला चिल्ला कर विवेचना रोक कर यही कहता, आज बस इतना ही फिर कल दिमांक चाटेंगे, धन्यवाद नमस्कार शुभरात्रि।
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी