शिल्प:- [सगण सगण(112 112), दो-दो चरण तुकांत (6वर्ण प्रति चरण )
"तिलका छंद"
नयना पुलके
मनवा हरषे।।
चढ़ती बदरी
अतुरी बखरी।।
भिगती मछली
छलकी गगरी।।
कुमली बदनी
सह सू-नयनी।।
नयना चतुरी
रसना मधुरी।।
चितवे नगरी
महके डगरी।।
सजना अयना
छवि सू-नयना।।
घरनी घरकी
सुलक्ष्मी, वर की।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी