रंगोत्सव पर प्रस्तुत छंदमुक्त काव्य...... ॐ जय माँ शारदा......!
"छंदमुक्त काव्य"
मेरे आँगन की चहकती बुलबुल
मेरे बैठक की महकती खुश्बू
मेरे ड्योढ़ी की खनकती झूमर
आ तनिक नजदीक तो बैठ
देख! तेरे गजरे के फूल पर चाँदनी छायी है
पुनः इस द्वार के मलीन झालर पर खुशियाँ आयी है।।
उठा अब घूँघट, दिखा दे कजरारे नैन
आजाद करा ले अपने बेबसी के घूँटे हुए वैन
लौटा ले इन सिकुड़े हुए टमाटरों की लाली
देख! अधखुले होठों ने फिर से मुस्कान पायी है
पुनः, ठूठे दरख़्त पर बसंतिका मधुमालिनी आयी है।।
कुछ तो कह मेरे फागुन की हुडदंग
आज तो कुँए में घुली हुई है भंग
पी ले, पिला ले, तनिक झूम ले मतवाली
देख! तो पुराने थाली में गुलाल व अबीर समायी है
तुझे देखकर आज सोलहवें बसंत की याद आयी है।।
डलवा ले रंग मलवा ले अबीर
आज तो मत बना मुझे फक्कड़ फ़क़ीर
गाँव की गलियों से मंजीरे की आवाज आयी है
चौताल, झूमर, चैती रंगफाग व उलारे ने आलाप लगाई है।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी