स्थान-अमीर की मजलिस
(अमीर गद्दी पर बैठा है। दो चार सेवक खड़े हैं।
दो चार मुसाहिब बैठे हैं। सामने शराब के पियाले,
सुराही, पानदान, इतरदान रक्खा है।
दो गवैये सामने गा रहे हैं। अमीर नशे में झूमता है)
गवैये : आज यह फत्ह की दरबार मुबारक होए।
मुल्क यह तुझको शहरयार मुबारक होए ।।
शुक्र सद शुक्र की पकड़ा गया वह दुश्मने दीन।
फत्ह अब हमको हरेक बार मुबारक होए ।।
हमको दिन रात मुबारक हो फतह ऐणे उरूज।
काफिरों को सदा फिटकार मुबारक होए ।।
फत्हे पंजाब से सब हिंद की उम्मीद हुई।
मोमिनो नेक य आसार मुबारक होए ।।
हिंदू गुमराह हों बेजर हों बनें अपने गुलाम।
हमको ऐशो तरबोतार मुबारक होए ।।
अमीर : आमीं आमीं। वाह वाह वल्लाही खूब गाया। कोई है? इन लोगों को एक एक जोड़ा दुशाला इनआम दो। (मद्यपान)
(एक नौकर आता है)
नौ : खुदावंद निआमत! एक परदेस की गानेवाली बहुत ही अच्छी खे़मे के दरवाजे पर हाजिर है। वह चाहती है कि हुजूर को कुछ अपना करतब दिखलाए। जो इरशाद हो बजा लाऊँ।
अमीर : जरूर लाओ। कहो साज मिला कर जल्द हाजिर हो।
नौ : जो इरशाद। (जाता है)
अमीर : आज के जशन का हाल सुनकर दूर दूर से नाचने गानेवाले चले आते हैं।
मुसाहिब : बजा इरशाद है, और उनको इनाम भी बहुत ज्यादा: मिलता है न क्यों आवैं?
(चार समाजियों के साथ एक गायिका का प्रवेश)
अमीर : आप ही आप, यह तायफा तो बहुत ही खूबसूरत है! ख्प्रगट, तुम्हारा क्या नाम है? (मद्यपान)
गायिका : मेरा नाम चंडिका है। मैं बड़ी दूर से आपका नाम सुनकर आती हूँ।
अमीर : बहुत अच्छी बात है। जल्द गाना शुरू करो। तुम्हारा गाना सुनने को मेरा इश्तियाक हर लहजे बढ़ता जाता है। जैसी तुम खूबसूरत हो वैसा ही तुम्हारा गाना भी खूबसूरत होगा। (मद्यपान)
गायिका : जो हुकुम। (गाती है)
ठुमरी तिताला
हाँ मोसे सेजिया चढ़लि नहिं जाई हो।
पिय बिनु साँपिन सी डसै बिरह रैन ।।
छिन छिन बढ़त बिथा तन सजनी,
कटत न कठिन वियोग की रजनी ।।
बिनु हरि अति अकुलाई हो।
अमीर : वाह वाह क्या कहना है! (मद्यपान) क्यों फिदाहुसैन! कितना अच्छा गाया है।
मुसाहिब : सुबहानअल्लाह! हुजूर क्या कहना है। वल्लाह मेरा तो क्या जिक है मेरे बुजुर्गों ने ख्वाब में भी ऐसा गाना नहीं सुना था।
(अमीर अंगूठी उतारकर देना चाहता है)
गायिका : मुझको अभी आपसे बहुत कुछ लेना है। अभी आप इसको अपने पास रखें आखीर में एक साथ मैं सब ले लूँगी।
अमीर : (मद्यपान करके) अच्छा! कुछ परवाह नहीं। हाँ, इसी धुन की एक और हो मगर उसमें फुरकत का मजमून न हो क्योंकि आज खुशी का दिन है।
गायिका : जो हुकुम (उसी चाल में गाती है)
जाओ जाओ काहे आओ प्यारे कतराए हो।
काहे चलो छाँह से छाँह मिलाए हो ।।
जिय को मरम तुम साफ कहत किन काहे फिरत मँडराए हो।
एहो हरि देखि यह नयो मेरो जीवन हम जानी तुम जो लुभाए हो ।।
अमीर : (मद्यपान कर के अत्यंत रीझने का नाट्य करता है) कसम खुदा की ऐसा गाना मैंने आज तक नहीं सुना था। दरहकीकत हिंदोस्तान इल्म का खजाना है। वल्लाह मैं बहुत ही खुश हुआ।
मुसाहिब गण: वल्लाह, (बजा इरशाद बेशक इत्यादि सिर और दाढ़ी हिलाकर कहते हैं)
अमीर : तुम शराब नहीं पीतीं?
गायिका : नहीं हुजूर।
अमीर : तो आज हमारी खातिर से पीओ।
गायिका : अब तो आपके यहाँ आई ही हूँ। ऐसी जल्दी क्या है। जो जो हुजूर कहैंगे सब करूँगी।
अमीर : अच्छा कुछ परवाह नहीं। (मद्यपान) थोड़ा सा और आगे बढ़ आओ।
(गायिका आगे बढ़ कर बैठती है)
अमीर : (खूब घूरकर स्वागत) हाय हाय! इसको देखकर मेरा दिल बिलकुल हाथ से जाता रहा। जिस तरह हो आज ही इसको काबू में लाना जरूर है। (प्रगट) वल्लाह, तुम्हारे गाने ने मुझको बेअख़्तियार कर दिया है। एक चीज़ और गाओ इसी धुन की। (मद्यपान)
गायिका : जो हुकुम। (गाती है)
हाँ गरवा लगावै गिरिधारी हो, देखो सखी लाज सरम जग की,
छोड़ि चट निपट निलज मुख चूमै बारी बारी।
अति मदमाती हरि कछु न गिनत छैल बरजि रही मैं होई होई बलिहारी।
अब कहाँ जाऊँ कहा करूँ लाज की मैं मारी।
अमीर : (मद्यपान करके उन्मत्त की भाँति) वाह! क्या कहना है। (गिलास हाथ में उठाकर) एक गिलास तो अब तुझको जरूर ही पीना होगा। लो तुमको मेरी कसम, वल्लाह मेरे सिर की कसम जो न पी जाओ।
गायिका : हुजूर मैंने आज तक शराब नहीं पी है। मैं जो पीऊँगी तो बिल्कुल बेहोश हो जाऊँगी।
अमीर : कुछ परवाह नहीं, पीओ।
गायिका : हाथ जोड़कर, हुजूर, एक दिन के वास्ते शराब पीकर मैं क्यों अपना ईमान छोडूँ?
अमीर : नहीं नहीं, तुम आज से हमारी नौकर हुई, जो तुम चाहोगी तुमको मिलैगा। अच्छा हमारे पास आओ हम तुमको अपने हाथ से शराब पिलावैंगे।
(गायिका अमीर के अति निकट बैठती है)
अमीर : लो जान साहब!
(पियाला उठाकर अमीर जिस समय गायिका के पास ले जाता है उस समय गायिका बनी हुई नीलदेवी चोली से कटार निकालकर अमीर को मारती है और चारों समाजी बाजा फेंककर शस्त्रा निकालकर मुसाहिब आदि को मारते हैं)।
नी. दे. : ले चांडाल पापी! मुझको जान साहब कहने का फल ले, महाराज के बध का बदला ले। मेरी यही इच्छा थी कि मैं इस चांडाल का अपने हाथ से बध करूँ। इसी हेतु मैंने कुमार को लड़ने से रोका सो इच्छा पूर्ण हुई। (और आघात) अब मैं सुखपूर्वक सती हूँगी
अमीर : (मृतावस्था में) दगा-अल्लाह चंडिका-
(रानी नीलदेवी ताली बजाती है (तंबू फाड़कर शस्त्रा खींचे हुए, कुमार सोमदेव राजपूतों के साथ आते हैं। मुसलमानों को मारते और बाँधते हैं। क्षत्राी लोग भारतवर्ष की जय, आर्यकुल की जय, क्षत्रियवंश की जय, महाराज सूर्यदेव की जय, महारानी नीलदेवी की जय, कुमार सोमदेव की जय इत्यादि शब्द करते हैं)।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र की अन्य किताबें
अन्य जीवनी – संस्मरण की किताबें
आधुनिक हिंदी के जन्मदाता कहे जाने वाले भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जन्म उत्तर प्रदेश के काशी जनपद वर्तमान में वाराणसी में 9 सितंबर 1850 को एक वैश्य परिवार में हुआ था। भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता का नाम गोपालचंद्र था, जो एक महान कवि थे और गिरधर दास के नाम से कविताएँ लिखते थे। हरिश्चंद्र की माता का नाम पार्वती देवी था, जो एक बड़ी शांति प्रिय और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी, किन्तु दुर्भाग्यवश भारतेंदु हरिश्चंद्र की माता का देहांत 5 वर्ष की अवस्था पर और उनके पिता का देहांत उनके 10 वर्ष की अवस्था पर हो गया और इसके बाद का उनका जीवन बड़ा ही कष्टों में बीता। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके जन्म स्थान पर हुई फिर भी उनका मन हमेशा पढ़ाई से दूर भागता रहा, किंतु अपनी प्रखर बुद्धि के कारण वह हर परीक्षा में उत्तीर्ण होते चले गए। अंततः उन्होंने केवीन्स कॉलेज बनारस में प्रवेश लिया भारतेंदु हरिश्चंद्र ने उस समय के सुप्रसिद्ध लेखक राजा सितारे शिवप्रसाद हिंद को अपना गुरु मान लिया था और उनसे ही उन्होंने अंग्रेजी भाषा का ज्ञान सीखा, जबकि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने संस्कृत, मराठी, बांग्ला, गुजराती, उर्दू आदि का ज्ञान घर पर ही अध्ययन करने के फलस्वरूप प्राप्त किया। जब भारतेंदु हरिश्चंद्र 15 वर्ष के हुए तो उन्होंने हिंदी साहित्य में प्रवेश किया, और 18 वर्ष की अवस्था में उन्होंने 1968 में कविवचन सुधा नामक एक पत्रिका निकाली जिस पत्रिका में बड़े-बड़े कवियों के लेख लिखे जाते थे। इसके पश्चात उन्होंने 1873 में हरिश्चंद्र मैगजीन 1874 में बाला बोधिनी नामक पत्रिका भी प्रकाशित की। भारतेंदु हरिश्चंद्र की आयु 20 वर्ष की हुई तब उन्हें ऑननेरी मजिस्ट्रेट के पद पर आसीन किया गया और आधुनिक हिंदी साहित्य के पिता के रूप में जाना जाने लगा। हिंदी साहित्य में उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि काशी के सभी विद्वानों ने मिलकर उन्हें भारतेंदु की अर्थात भारत का चंद्रमा की उपाधि प्रदान की। भारतेंदु हरिश्चंद्र के द्वारा भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी, श्री चंद्रावली, नील देवी, प्रेम जोगनी, सती प्रताप के साथ अन्य कई नाटक रचे गए हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र एक बहुत ही प्रसिद्ध निबंधकार के रूप में भी हिंदी साहित्य में जाने जाते हैं। उनके द्वारा लिखे गए कुछ निबंध संग्रह नाटक, कालचक्र (जर्नल), लेवी प्राण लेवी, कश्मीर कुसुम, जातीय संगीत, हिंदी भाषा, स्वर्ग में विचार सभा, आदि तथा निबंध काशी, मणिकर्णिका, बादशाह दर्पण, संगीतसार, नाटकों का इतिहास, सूर्योदय आदि है।
प्रेम मालिका, प्रेम सरोवर, प्रेम माधुरी, प्रेम तरंग, होली, वर्षाविनोद, कृष्णचरित्र, दानलीला, बसंत, विजय बल्लरी आदि भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने एक कहानी- कुछ आपबीती, कुछ जगबीती जैसी आत्मकथाऐं लिखी है। भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक माना जाता है, इसीलिए 1857 से लेकर 1900 तक के काल को भारतेन्दु युग के नाम से जाना जाता है। ऐसे महान हिंदी साहित्य के नाटककार निबंधकार और कहानीकार का नाम हमेशा हिंदी साहित्य में सम्मान के साथ लिया जायेगा। D