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दसवाँ दृश्य

25 जनवरी 2022

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स्थान-अमीर की मजलिस
(अमीर गद्दी पर बैठा है। दो चार सेवक खड़े हैं। 
दो चार मुसाहिब बैठे हैं। सामने शराब के पियाले, 
सुराही, पानदान, इतरदान रक्खा है। 
दो गवैये सामने गा रहे हैं। अमीर नशे में झूमता है)
गवैये : आज यह फत्ह की दरबार मुबारक होए।
मुल्क यह तुझको शहरयार मुबारक होए ।।
शुक्र सद शुक्र की पकड़ा गया वह दुश्मने दीन।
फत्ह अब हमको हरेक बार मुबारक होए ।।
हमको दिन रात मुबारक हो फतह ऐणे उरूज।
काफिरों को सदा फिटकार मुबारक होए ।।
फत्हे पंजाब से सब हिंद की उम्मीद हुई।
मोमिनो नेक य आसार मुबारक होए ।।
हिंदू गुमराह हों बेजर हों बनें अपने गुलाम।
हमको ऐशो तरबोतार मुबारक होए ।।
अमीर : आमीं आमीं। वाह वाह वल्लाही खूब गाया। कोई है? इन लोगों को एक एक जोड़ा दुशाला इनआम दो। (मद्यपान)
(एक नौकर आता है)
नौ : खुदावंद निआमत! एक परदेस की गानेवाली बहुत ही अच्छी खे़मे के दरवाजे पर हाजिर है। वह चाहती है कि हुजूर को कुछ अपना करतब दिखलाए। जो इरशाद हो बजा लाऊँ।
अमीर : जरूर लाओ। कहो साज मिला कर जल्द हाजिर हो।
नौ : जो इरशाद। (जाता है)
अमीर : आज के जशन का हाल सुनकर दूर दूर से नाचने गानेवाले चले आते हैं।
मुसाहिब : बजा इरशाद है, और उनको इनाम भी बहुत ज्यादा: मिलता है न क्यों आवैं?
(चार समाजियों के साथ एक गायिका का प्रवेश)
अमीर : आप ही आप, यह तायफा तो बहुत ही खूबसूरत है! ख्प्रगट, तुम्हारा क्या नाम है? (मद्यपान)
गायिका : मेरा नाम चंडिका है। मैं बड़ी दूर से आपका नाम सुनकर आती हूँ।
अमीर : बहुत अच्छी बात है। जल्द गाना शुरू करो। तुम्हारा गाना सुनने को मेरा इश्तियाक हर लहजे बढ़ता जाता है। जैसी तुम खूबसूरत हो वैसा ही तुम्हारा गाना भी खूबसूरत होगा। (मद्यपान)
गायिका : जो हुकुम। (गाती है)
ठुमरी तिताला
हाँ मोसे सेजिया चढ़लि नहिं जाई हो।
पिय बिनु साँपिन सी डसै बिरह रैन ।।
छिन छिन बढ़त बिथा तन सजनी,
कटत न कठिन वियोग की रजनी ।।
बिनु हरि अति अकुलाई हो।
अमीर : वाह वाह क्या कहना है! (मद्यपान) क्यों फिदाहुसैन! कितना अच्छा गाया है।
मुसाहिब : सुबहानअल्लाह! हुजूर क्या कहना है। वल्लाह मेरा तो क्या जिक है मेरे बुजुर्गों ने ख्वाब में भी ऐसा गाना नहीं सुना था।
(अमीर अंगूठी उतारकर देना चाहता है)
गायिका : मुझको अभी आपसे बहुत कुछ लेना है। अभी आप इसको अपने पास रखें आखीर में एक साथ मैं सब ले लूँगी।
अमीर : (मद्यपान करके) अच्छा! कुछ परवाह नहीं। हाँ, इसी धुन की एक और हो मगर उसमें फुरकत का मजमून न हो क्योंकि आज खुशी का दिन है।
गायिका : जो हुकुम (उसी चाल में गाती है)
जाओ जाओ काहे आओ प्यारे कतराए हो।
काहे चलो छाँह से छाँह मिलाए हो ।।
जिय को मरम तुम साफ कहत किन काहे फिरत मँडराए हो।
एहो हरि देखि यह नयो मेरो जीवन हम जानी तुम जो लुभाए हो ।।
अमीर : (मद्यपान कर के अत्यंत रीझने का नाट्य करता है) कसम खुदा की ऐसा गाना मैंने आज तक नहीं सुना था। दरहकीकत हिंदोस्तान इल्म का खजाना है। वल्लाह मैं बहुत ही खुश हुआ।
मुसाहिब गण: वल्लाह, (बजा इरशाद बेशक इत्यादि सिर और दाढ़ी हिलाकर कहते हैं) 
अमीर : तुम शराब नहीं पीतीं?
गायिका : नहीं हुजूर।
अमीर : तो आज हमारी खातिर से पीओ।
गायिका : अब तो आपके यहाँ आई ही हूँ। ऐसी जल्दी क्या है। जो जो हुजूर कहैंगे सब करूँगी।
अमीर : अच्छा कुछ परवाह नहीं। (मद्यपान) थोड़ा सा और आगे बढ़ आओ।
(गायिका आगे बढ़ कर बैठती है)
अमीर : (खूब घूरकर स्वागत) हाय हाय! इसको देखकर मेरा दिल बिलकुल हाथ से जाता रहा। जिस तरह हो आज ही इसको काबू में लाना जरूर है। (प्रगट) वल्लाह, तुम्हारे गाने ने मुझको बेअख़्तियार कर दिया है। एक चीज़ और गाओ इसी धुन की। (मद्यपान) 
गायिका : जो हुकुम। (गाती है)
हाँ गरवा लगावै गिरिधारी हो, देखो सखी लाज सरम जग की,
छोड़ि चट निपट निलज मुख चूमै बारी बारी।
अति मदमाती हरि कछु न गिनत छैल बरजि रही मैं होई होई बलिहारी।
अब कहाँ जाऊँ कहा करूँ लाज की मैं मारी।
अमीर : (मद्यपान करके उन्मत्त की भाँति) वाह! क्या कहना है। (गिलास हाथ में उठाकर) एक गिलास तो अब तुझको जरूर ही पीना होगा। लो तुमको मेरी कसम, वल्लाह मेरे सिर की कसम जो न पी जाओ।
गायिका : हुजूर मैंने आज तक शराब नहीं पी है। मैं जो पीऊँगी तो बिल्कुल बेहोश हो जाऊँगी।
अमीर : कुछ परवाह नहीं, पीओ।
गायिका : हाथ जोड़कर, हुजूर, एक दिन के वास्ते शराब पीकर मैं क्यों अपना ईमान छोडूँ?
अमीर : नहीं नहीं, तुम आज से हमारी नौकर हुई, जो तुम चाहोगी तुमको मिलैगा। अच्छा हमारे पास आओ हम तुमको अपने हाथ से शराब पिलावैंगे।
(गायिका अमीर के अति निकट बैठती है)
अमीर : लो जान साहब!
(पियाला उठाकर अमीर जिस समय गायिका के पास ले जाता है उस समय गायिका बनी हुई नीलदेवी चोली से कटार निकालकर अमीर को मारती है और चारों समाजी बाजा फेंककर शस्त्रा निकालकर मुसाहिब आदि को मारते हैं)।
नी. दे. : ले चांडाल पापी! मुझको जान साहब कहने का फल ले, महाराज के बध का बदला ले। मेरी यही इच्छा थी कि मैं इस चांडाल का अपने हाथ से बध करूँ। इसी हेतु मैंने कुमार को लड़ने से रोका सो इच्छा पूर्ण हुई। (और आघात) अब मैं सुखपूर्वक सती हूँगी
अमीर : (मृतावस्था में) दगा-अल्लाह चंडिका-
(रानी नीलदेवी ताली बजाती है (तंबू फाड़कर शस्त्रा खींचे हुए, कुमार सोमदेव राजपूतों के साथ आते हैं। मुसलमानों को मारते और बाँधते हैं। क्षत्राी लोग भारतवर्ष की जय, आर्यकुल की जय, क्षत्रियवंश की जय, महाराज सूर्यदेव की जय, महारानी नीलदेवी की जय, कुमार सोमदेव की जय इत्यादि शब्द करते हैं)।
 

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रचनाएँ
नीलदेवी
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भारतेंदु हरिश्चन्द्र द्वारा आधुनिक भारत के महानतम हिंदी लेखकों में से एक और आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामा माना जाता है। हरिश्चंद्र को उनकी कविता, और साथ ही साथ गद्य की नई शैली विकसित करने के लिए भी पहचाना जाता था उन्होंने कई नाटक, रोजमर्रा की जिंदगी का चित्रण, और सफरनामे लिखे। लेकिन, हरिश्चंद्र की सबसे उल्लेखनीय रचनाएँ आम लोगों की परेशानियों, गरीबी, शोषण, मध्यम वर्ग की अशांति को संबोधित करती हैं, और राष्ट्रीय प्रगति के लिए आग्रह करती हैं। वे एक प्रभावशाली हिंदू “परंपरावादी” थे, जो बढ़ते हुए आधुनिक दुनिया में अपनी परंपराओं के साथ निरंतरता बनाए रखने के लिए कोशिश करते थे। उनकी रचनाओं ने भारत में गरीबी और विदेशी प्रभुत्व और उपनिवेशवाद के सदियों के बारे में उनकी गहन भावनाओं को व्यक्त किया।
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प्रथम दृश्य

25 जनवरी 2022
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हिमगिरि का शिखर (तीन अप्सरा गान करती हुई दिखाई देती हैं) अप्सरागण.. (झिंझोटी जल्द तिताला) धन धन भारत की छत्रनी। वीरकन्यका वीरप्रसविनी वीरवधू जग जानी।। सती सिरोमनि धरमधुरन्धर बुधि बल धीरज खानी। इ

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दूसरा दृश्य

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युद्ध के डेरे खड़े हैं। एक शामियाने के नीचे अमीर अबदुश्शरीफ खाँ सूर बैठा है और मुसाहिब लोग इर्द गिर्द बैठे हैं। शरीफ : एक मुसाहिब से, अबदुस्समद! खूब होशियारी से रहना। यहाँ के राजपूत बड़े काफिर हैं।

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तीसरा दृश्य

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पहाड़ की तराई (राजा सूर्यदेव, रानी नीलदेवी और चार राजपूत बैठे हैं) सू : कहो भाइयो इन मुसलमानों ने तो अब बड़ा उपद्रव मचाया है। 1 ला. : तो महाराज! जब तक प्राण हैं तब तक लड़ेंगे। 2 रा : महाराज! जय परा

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चौथा दृश्य

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सराय (भठियारी, चपरगट्टू खाँ और पीकदान अली) चप. : क्यों भाई अब आज तो जशन होगा न? आज तो वह हिंदू न लड़ेगा न। पीक. : मैंने पक्की खबर सुनी है। आज ही तो पुलाव उड़ने का दिन है।  चप. : भई मैं तो इसी से त

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पंचम दृश्य

25 जनवरी 2022
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(सूर्यदेव के डेरे का बाहरी प्रान्त) (रात्रि का समय) देवा सिंह सिपाही पहरा देता हुआ घूमता है। नेपथ्य में गान (राग कलिगड़ा) सोंओ सुख निंदिया प्यारे ललन। नैनन के तारे दुलारे मेरे बारे  सोओ सुख निं

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छठवाँ दृश्य

25 जनवरी 2022
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अमीर का खेमा (मसनद पर अमीर अबदुश्शरीफ खाँ सूर बैठा है। इधर उधर  मुसल्मान लोग हथियार बाँधे मोछ पर ताव देते बड़ी शान से बैठे हैं।) अमीर : अलहम्दुलिल्लाह! इस कम्बख्त काफिर को तो किसी तरह गिरफ्तार किया

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सातवाँ दृश्य

25 जनवरी 2022
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कैदखाना। महाराज सूर्यदेव एक लोहे के पिंजड़े में मूर्छित पड़े हैं।  एक देवता सामने खड़ा होकर गाता है। देवता कृ लावनी, सब भांति दैव प्रतिकूल होइ एहि नासा। अब तजहु बीर बर भारत की सब आसा ।। अब सुख स

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आठवाँ दृश्य

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मैदान-वृक्ष (एक पागल आता है) पागल : मार मार मार-काट काट काट-ले ले ले-ईबी-सीबी-बीबी-तुरक तुरक तुरक-अरे आया आया आया-भागो भागो भागो। (दौड़ता है) मार मार मार-और मार दे मार-जाय न जाय न-दुष्ट चांडाल गोभक्

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नवाँ दृश्य

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राजा सूर्यदेव के डेरे (एक भीतरी डेरे में रानी नीलदेवी बैठी हैं  और बाहरी डेरे में क्षत्री लोग पहरा देते हैं) नी. दे. : (गाती और रोती) तजी मोहि काके ऊपर नाथ। मोहि अकेली छोड़ि गए तजि बालपने को साथ

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दसवाँ दृश्य

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स्थान-अमीर की मजलिस (अमीर गद्दी पर बैठा है। दो चार सेवक खड़े हैं।  दो चार मुसाहिब बैठे हैं। सामने शराब के पियाले,  सुराही, पानदान, इतरदान रक्खा है।  दो गवैये सामने गा रहे हैं। अमीर नशे में झूमता ह

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