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तीसरा दृश्य

25 जनवरी 2022

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पहाड़ की तराई
(राजा सूर्यदेव, रानी नीलदेवी और चार राजपूत बैठे हैं)
सू : कहो भाइयो इन मुसलमानों ने तो अब बड़ा उपद्रव मचाया है।
1 ला. : तो महाराज! जब तक प्राण हैं तब तक लड़ेंगे।
2 रा : महाराज! जय पराजय तो परमेश्वर के हाथ है परंतु हम अपना धम्र्म तो प्राण रहे तक निवाहैं ही गे।
सू. : हाँ हाँ, इसमें क्या संदेह है। मेरा कहने का मतलब यह है कि सब लोग सावधान रहैं।
3 रा. : महाराज! सब सावधान हैं। धम्र्म युद्ध में तो हमको जीतने वाला कोई पृथ्वी पर नहीं है। 
नी.दे. : पर सुना है कि ये दुष्ट अधम्र्म से बहुत लड़ते हैं।
सू. : प्यारी। वे अधम्र्म से लड़ें हम तो अधम्र्म नहीं न कर सकते। हम आर्यवंशी लोग धम्र्म छोड़ कर लड़ना क्या जानैं? यहां तो सामने लड़ना जानते हैं। जीते तो निज भूमि का उद्धार और मरे तो स्वर्ग। हमारे तो दोनों हाथ लड्डू हैं; और यश तो जीतै तो भी हमारा साथ है और मरैं तो भी। 
4 था. : महाराज। इसमें क्या संदेह है, और हम लोगों को एकाएकी अधम्र्म से भी जीतना कुछ दाल भात का गस्सा नहीं है।
नी.दे. : तो भी इन दुष्टों से सदा सावधान ही रहना चाहिए। आप लोग सब तरह चतुर हो मैं इसमें विशेष क्या कहूँ स्नेह कुछ कहलाए बिना नहीं रहता।
सू. दे. : (आदर से) प्यारी। कुछ चिंता नहीं है अब तो जो कुछ होगा देखा ही जायगा न। (राजपूतों से)।
सावधान सब लोग रहहु सब भाँति सदाहीं।
जागत ही सब रहैं रैनहूँ सोअहिं नाहीं ।।
कसे रहैं कटि रात दिवस सब वीर हमारे।
असव पीठ सो होंहि चारजामें जिनि न्यारे ।।
तोड़ा सुलगत चढ़े रहैं घोड़ा बंदूकन।
रहै खुली ही म्यान प्रतंचे नहिं उतरें छन ।।
देखि लेहिंगे कैसे पामर जवन बहादुर।
आवहिं तो चड़ि सनमुख कायर कूर सबै जुर ।।
दैहैं रन को स्वाद तुरंतहि तिनहिं चखाई।
जो पै इक छन हू सनमुख ह्नै करिहिं लराई ।।
(जवनिका पतन) 

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रचनाएँ
नीलदेवी
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भारतेंदु हरिश्चन्द्र द्वारा आधुनिक भारत के महानतम हिंदी लेखकों में से एक और आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामा माना जाता है। हरिश्चंद्र को उनकी कविता, और साथ ही साथ गद्य की नई शैली विकसित करने के लिए भी पहचाना जाता था उन्होंने कई नाटक, रोजमर्रा की जिंदगी का चित्रण, और सफरनामे लिखे। लेकिन, हरिश्चंद्र की सबसे उल्लेखनीय रचनाएँ आम लोगों की परेशानियों, गरीबी, शोषण, मध्यम वर्ग की अशांति को संबोधित करती हैं, और राष्ट्रीय प्रगति के लिए आग्रह करती हैं। वे एक प्रभावशाली हिंदू “परंपरावादी” थे, जो बढ़ते हुए आधुनिक दुनिया में अपनी परंपराओं के साथ निरंतरता बनाए रखने के लिए कोशिश करते थे। उनकी रचनाओं ने भारत में गरीबी और विदेशी प्रभुत्व और उपनिवेशवाद के सदियों के बारे में उनकी गहन भावनाओं को व्यक्त किया।
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प्रथम दृश्य

25 जनवरी 2022
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हिमगिरि का शिखर (तीन अप्सरा गान करती हुई दिखाई देती हैं) अप्सरागण.. (झिंझोटी जल्द तिताला) धन धन भारत की छत्रनी। वीरकन्यका वीरप्रसविनी वीरवधू जग जानी।। सती सिरोमनि धरमधुरन्धर बुधि बल धीरज खानी। इ

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दूसरा दृश्य

25 जनवरी 2022
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युद्ध के डेरे खड़े हैं। एक शामियाने के नीचे अमीर अबदुश्शरीफ खाँ सूर बैठा है और मुसाहिब लोग इर्द गिर्द बैठे हैं। शरीफ : एक मुसाहिब से, अबदुस्समद! खूब होशियारी से रहना। यहाँ के राजपूत बड़े काफिर हैं।

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तीसरा दृश्य

25 जनवरी 2022
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पहाड़ की तराई (राजा सूर्यदेव, रानी नीलदेवी और चार राजपूत बैठे हैं) सू : कहो भाइयो इन मुसलमानों ने तो अब बड़ा उपद्रव मचाया है। 1 ला. : तो महाराज! जब तक प्राण हैं तब तक लड़ेंगे। 2 रा : महाराज! जय परा

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चौथा दृश्य

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सराय (भठियारी, चपरगट्टू खाँ और पीकदान अली) चप. : क्यों भाई अब आज तो जशन होगा न? आज तो वह हिंदू न लड़ेगा न। पीक. : मैंने पक्की खबर सुनी है। आज ही तो पुलाव उड़ने का दिन है।  चप. : भई मैं तो इसी से त

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पंचम दृश्य

25 जनवरी 2022
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(सूर्यदेव के डेरे का बाहरी प्रान्त) (रात्रि का समय) देवा सिंह सिपाही पहरा देता हुआ घूमता है। नेपथ्य में गान (राग कलिगड़ा) सोंओ सुख निंदिया प्यारे ललन। नैनन के तारे दुलारे मेरे बारे  सोओ सुख निं

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छठवाँ दृश्य

25 जनवरी 2022
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अमीर का खेमा (मसनद पर अमीर अबदुश्शरीफ खाँ सूर बैठा है। इधर उधर  मुसल्मान लोग हथियार बाँधे मोछ पर ताव देते बड़ी शान से बैठे हैं।) अमीर : अलहम्दुलिल्लाह! इस कम्बख्त काफिर को तो किसी तरह गिरफ्तार किया

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सातवाँ दृश्य

25 जनवरी 2022
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कैदखाना। महाराज सूर्यदेव एक लोहे के पिंजड़े में मूर्छित पड़े हैं।  एक देवता सामने खड़ा होकर गाता है। देवता कृ लावनी, सब भांति दैव प्रतिकूल होइ एहि नासा। अब तजहु बीर बर भारत की सब आसा ।। अब सुख स

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आठवाँ दृश्य

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मैदान-वृक्ष (एक पागल आता है) पागल : मार मार मार-काट काट काट-ले ले ले-ईबी-सीबी-बीबी-तुरक तुरक तुरक-अरे आया आया आया-भागो भागो भागो। (दौड़ता है) मार मार मार-और मार दे मार-जाय न जाय न-दुष्ट चांडाल गोभक्

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नवाँ दृश्य

25 जनवरी 2022
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राजा सूर्यदेव के डेरे (एक भीतरी डेरे में रानी नीलदेवी बैठी हैं  और बाहरी डेरे में क्षत्री लोग पहरा देते हैं) नी. दे. : (गाती और रोती) तजी मोहि काके ऊपर नाथ। मोहि अकेली छोड़ि गए तजि बालपने को साथ

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दसवाँ दृश्य

25 जनवरी 2022
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स्थान-अमीर की मजलिस (अमीर गद्दी पर बैठा है। दो चार सेवक खड़े हैं।  दो चार मुसाहिब बैठे हैं। सामने शराब के पियाले,  सुराही, पानदान, इतरदान रक्खा है।  दो गवैये सामने गा रहे हैं। अमीर नशे में झूमता ह

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