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सातवाँ दृश्य

25 जनवरी 2022

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कैदखाना। महाराज सूर्यदेव एक लोहे के पिंजड़े में मूर्छित पड़े हैं। 
एक देवता सामने खड़ा होकर गाता है।
देवता कृ
लावनी,
सब भांति दैव प्रतिकूल होइ एहि नासा।
अब तजहु बीर बर भारत की सब आसा ।।
अब सुख सूरज को उदय नहीं इत ह्नैहै।
सो दिन फिर इत सपनेहूं नहिं ऐहै ।।
स्वाधीनपनो बल धीरज सबहि नसैहै।
मंगलमय भारत भुव मसान ह्नै जैहै ।।
दुख ही दुख करिहै चारहु ओर प्रकासा।
अब तजहु बीर बर भारत की सब आसा ।।
इस कलह विरोध सबन के हिय घर करिहै।
मूरखता को तम चारहु ओर पसरिहै ।।
वीरता एकता ममता दूर सिधरि है।
तजि उद्यम सब ही दास वृत्ति अनुसरि है ।।
ह्नै जैहै चारहु बरन शूद्र वनि दासा।
अब तजहु बीर बर भारत की सब आसा ।।
ह्नैहैं सब इनके भूत पिशाच उपासी।
कोऊ बनि जैहैं आपुहि स्वयं प्रकासी ।।
नसि जैहैं सगरे सत्य धर्म अविनासी।
निज हरि सों ह्नै हैं बिमुख भरत भुवबासी ।।
तजि सुपथ सबहि जन करिहैं कुपथ बिलासा।
अब तजहुं बीर बर भारत की सब आसा ।।
अपनी वस्तुन कहँ लखिहैं सबहि पराई।
निज चाल छोड़ि गहिहैं औरन की धाई ।।
तुरकन हित करिहैं हिंदू संग लराई।
यवनन के चरनहिं रहिहैं सीस चढ़ाई ।।
तजि निज कुल करिहैं नीचन संग निवासा।
अब तजहु बीर बर भारत की सब आसा ।।
रहे हमहुँ कबहुँ स्वाधीन आर्य बल धारी।
यह दैहैं जिय सों सबही बात बिसारी ।।
हरि विमुख धरम बिनु धन, बलहीन दुखारी।
आलसी मंद तन छीन छुछित संसारी ।।
सुख सों सहिहैं सिर यवन पादुका त्रसा।
अब तजहु बीर बर भारत की सब आसा ।।
(जाता है)
सू. दे. : (सिर उठा कर) यह कौन था? इस मरते हुए शरीर पर इस ने अमृत और विष दोनों एक साथ क्यों बरसाया? अरे अभी तो यहां खड़ा गा रहा था अभी कहाँ चला गया? निस्संदेह यह कोई देवता था। नहीं तो इस कठिन पहरे में कौन आ सकता है। ऐसा सुंदर रूप और ऐसा मधुर सुर और किसका हो सकता है। क्या कहता था? ‘अब तजहु वीर वर भारत की सब आसा’ ऐं! यह देववाक्य क्या सचमुच सिद्ध होगा? क्या अब भारत का स्वाधीनता सूर्य फिर न उदय होगा? क्या हम क्षत्रिय राजकुमारों को भी अब दासवृत्ति करनी पडै़गी? हाय! क्या मरते मरते भी हमको यह वज्र शब्द सुनना पड़ा? और क्या कहा ‘सुख सौं सहिहैं सिर यवन पादुका त्रासा।’ हाय! क्या अब यहाँ यही दिन आवैगे? क्या भारत जननी अब एक भी वीर पुत्र न प्रसव करैगी? क्या दैव को अब इस उत्तम भूमि की यही नीच गति करनी है? हा! मैं यह सुनकर क्यों नहीं मरा कि आर्यकुल की जय हुई और यवन सब भारतवर्ष से निकाल दिए गए। हाय!
(हाय करता और रोता हुआ मुर्छित हो जाता है)
(जवनिका पतन) 

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रचनाएँ
नीलदेवी
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भारतेंदु हरिश्चन्द्र द्वारा आधुनिक भारत के महानतम हिंदी लेखकों में से एक और आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामा माना जाता है। हरिश्चंद्र को उनकी कविता, और साथ ही साथ गद्य की नई शैली विकसित करने के लिए भी पहचाना जाता था उन्होंने कई नाटक, रोजमर्रा की जिंदगी का चित्रण, और सफरनामे लिखे। लेकिन, हरिश्चंद्र की सबसे उल्लेखनीय रचनाएँ आम लोगों की परेशानियों, गरीबी, शोषण, मध्यम वर्ग की अशांति को संबोधित करती हैं, और राष्ट्रीय प्रगति के लिए आग्रह करती हैं। वे एक प्रभावशाली हिंदू “परंपरावादी” थे, जो बढ़ते हुए आधुनिक दुनिया में अपनी परंपराओं के साथ निरंतरता बनाए रखने के लिए कोशिश करते थे। उनकी रचनाओं ने भारत में गरीबी और विदेशी प्रभुत्व और उपनिवेशवाद के सदियों के बारे में उनकी गहन भावनाओं को व्यक्त किया।
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प्रथम दृश्य

25 जनवरी 2022
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हिमगिरि का शिखर (तीन अप्सरा गान करती हुई दिखाई देती हैं) अप्सरागण.. (झिंझोटी जल्द तिताला) धन धन भारत की छत्रनी। वीरकन्यका वीरप्रसविनी वीरवधू जग जानी।। सती सिरोमनि धरमधुरन्धर बुधि बल धीरज खानी। इ

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दूसरा दृश्य

25 जनवरी 2022
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युद्ध के डेरे खड़े हैं। एक शामियाने के नीचे अमीर अबदुश्शरीफ खाँ सूर बैठा है और मुसाहिब लोग इर्द गिर्द बैठे हैं। शरीफ : एक मुसाहिब से, अबदुस्समद! खूब होशियारी से रहना। यहाँ के राजपूत बड़े काफिर हैं।

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तीसरा दृश्य

25 जनवरी 2022
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पहाड़ की तराई (राजा सूर्यदेव, रानी नीलदेवी और चार राजपूत बैठे हैं) सू : कहो भाइयो इन मुसलमानों ने तो अब बड़ा उपद्रव मचाया है। 1 ला. : तो महाराज! जब तक प्राण हैं तब तक लड़ेंगे। 2 रा : महाराज! जय परा

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चौथा दृश्य

25 जनवरी 2022
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सराय (भठियारी, चपरगट्टू खाँ और पीकदान अली) चप. : क्यों भाई अब आज तो जशन होगा न? आज तो वह हिंदू न लड़ेगा न। पीक. : मैंने पक्की खबर सुनी है। आज ही तो पुलाव उड़ने का दिन है।  चप. : भई मैं तो इसी से त

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पंचम दृश्य

25 जनवरी 2022
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(सूर्यदेव के डेरे का बाहरी प्रान्त) (रात्रि का समय) देवा सिंह सिपाही पहरा देता हुआ घूमता है। नेपथ्य में गान (राग कलिगड़ा) सोंओ सुख निंदिया प्यारे ललन। नैनन के तारे दुलारे मेरे बारे  सोओ सुख निं

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छठवाँ दृश्य

25 जनवरी 2022
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अमीर का खेमा (मसनद पर अमीर अबदुश्शरीफ खाँ सूर बैठा है। इधर उधर  मुसल्मान लोग हथियार बाँधे मोछ पर ताव देते बड़ी शान से बैठे हैं।) अमीर : अलहम्दुलिल्लाह! इस कम्बख्त काफिर को तो किसी तरह गिरफ्तार किया

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सातवाँ दृश्य

25 जनवरी 2022
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कैदखाना। महाराज सूर्यदेव एक लोहे के पिंजड़े में मूर्छित पड़े हैं।  एक देवता सामने खड़ा होकर गाता है। देवता कृ लावनी, सब भांति दैव प्रतिकूल होइ एहि नासा। अब तजहु बीर बर भारत की सब आसा ।। अब सुख स

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आठवाँ दृश्य

25 जनवरी 2022
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मैदान-वृक्ष (एक पागल आता है) पागल : मार मार मार-काट काट काट-ले ले ले-ईबी-सीबी-बीबी-तुरक तुरक तुरक-अरे आया आया आया-भागो भागो भागो। (दौड़ता है) मार मार मार-और मार दे मार-जाय न जाय न-दुष्ट चांडाल गोभक्

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नवाँ दृश्य

25 जनवरी 2022
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राजा सूर्यदेव के डेरे (एक भीतरी डेरे में रानी नीलदेवी बैठी हैं  और बाहरी डेरे में क्षत्री लोग पहरा देते हैं) नी. दे. : (गाती और रोती) तजी मोहि काके ऊपर नाथ। मोहि अकेली छोड़ि गए तजि बालपने को साथ

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दसवाँ दृश्य

25 जनवरी 2022
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स्थान-अमीर की मजलिस (अमीर गद्दी पर बैठा है। दो चार सेवक खड़े हैं।  दो चार मुसाहिब बैठे हैं। सामने शराब के पियाले,  सुराही, पानदान, इतरदान रक्खा है।  दो गवैये सामने गा रहे हैं। अमीर नशे में झूमता ह

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