सड़क पर पडा़,
तो मारते हैं लात।
मंदिर में खडा़,
तो जोड़ते हैं हाथ।
फर्क है नसीब का,
एक है अशिक्षित,
तो दूसरा है,
पूर्ण शिक्षित,दीक्षित।
गुरु का सानिध्य पा,
लोग बनते हैं विद्वान,
पाते हैं मान सम्मान।
उनकी कीर्ति का होता गान।
जरूरी नहीं है कि,
विद्यालय हों।
जरूरी है लगन,
दिल से सीखने वाले हों।
नन्हीं सी पिपीलिका,
प्रेरणा देती कर्म करने का।
जाल बुनती मकडी़,
सीख देती हिम्मत न हारने की।
सूर्य देना सिखाता,
धरती सिखाती धैर्य।
वृक्ष दान को प्रेरित करते,
शलभ सिखाता,
मर मिटना प्रेम पर।
कुछ होता है पास,
तभी लोग आते हैं।
दीपक संग प्रकाश,
तभी पतंगे मड़राते हैं।
गुरु प्रदत्त गुणों से,
व्यक्ति पूछे जाते हैं।
वर्ना पत्थरों जैसे,
ठोकरें ही खाते हैं।
धन्य हैं गुरुवर,
जो जीवन सफल बनाते हैं।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'