आंगन में चारपाई ,
कभी साक्षी थी ,
प्रसव वेदना की,
नवजात के आगमन की।

आपसी सानिध्य की ,
परस्पर प्रेम की,
मिलन की,शुभ चिंतन की,
भावों के मधुर संगम की।

मिठास की,विश्वास की,
स्नेहसिक्त छुअन की,
ज्ञान की ,वार्तालापों,
विचारों के आदान-प्रदान की।

उन सुकून भरे अंधेरों की,
मद्धिम -मद्धिम
नन्हें उजेरों की,
अंताक्षरी,किस्से
और कहानियों की,

बचपन की नादानियों,
शैतानियों की।
पकवानों से उठती सुगंधों की,
सौभाग्य की,अनमोल क्षणों की,
रीति,रिवाजों,परंपराओं की,
घर के बडे़ और बुजुर्गों की


बूढी़ हड्डियों सी पाटियों,
लटकती खाल सी रस्सियों,
वाली जरजर ,आंगन में,
वही चारपाई साक्षी है,
टूटते,रिश्तों की चुभन की,
आपसी तनाव,दुराव,छिपाव,
मनमुटाव की,बिखराव की,
तनहाइयों भरी घुटन की,
अहर्निश कुढ़न की,जलन की।
संयुक्त परिवारों से घटकर ,
छोटे होते परिवारों के ,
एकाकीपन की,
तनाव,चिंता,अवसाद,
व्यस्तता ,प्रतिस्पर्था की,
भागदौड़ वाले मशीनी जीवन की।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'