जीवन है एक अंधेरा पथ
जीना है तो चलना होगा ।
इतनी अकर्मण्यता,
क्यों इतनी उदासी?
लहरें तो लहरें हैं,
यह सबके
जीवन में आतीं,
क्यों सोच रहे
दिन ही दिन आये?
रात कहां आश्रय पाये?
चलना है तो संभलना होगा।
अन्तर्मन क्या सोच रहा?
क्यों बैसाखी खोज रहा?
क्यों पाले निरर्थक आशा?
हाथ लगेगी सिर्फ निराशा,
हर परिस्थिति को स्वीकारो,
कदम-कदम मत हिम्मत हारो।
धैर्य रज्जु से धीरे-धीरे,
विश्वासों को मथना होगा।
अमृत की जो इच्छा पाल रहे,
विष को भी फिर निगलना होगा।
जीवन है एक अंधेरा पथ,
जीना है तो चलना होगा।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'