चाहिए उन्हें भी
जादू की झप्पी,
आपकी,जो
हो गये हैं,
कोरोना काल,
में मासूम अनाथ,
चाहिए उन्हें भी,
अपने सिर पर,
फिरता ममता का हाथ।
चाहिए उनके ,
जीवन को किनारे।
उनकी भी चाहत,
कोई हमारा ,
भी भविष्य संवारे।
पर कैसी है विडम्बना,
वो बेचारे ,भटकते
सड़कों,गलियों में,
भूखे,प्यासे बेचारे,
उन्हें कोई न पूछता ,
और कुत्ते जो ,
घूमते थे आवारा,
उन्हें खिलाते दूध -भात,
अपने घर लाते,
सोफे,गाडी़ में बिठाते,
हर कोई है चूमता।
तब कुत्ते चाटते थे पत्तल,
अब इंसान चाट रहा है।
जो झप्पी चाहिए,
इन बेचारों को ,
उन्हें हर कोई,
कुत्तों में बांट रहा है।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'