क्या लेकर मन में आशा,?
पूछ रहे हो हमारी अभिलाषा।
तुम्हीं अपनी आकांक्षायें लेकर,
करते हमारा भाग्य निर्धारण,
चाहिए?दूं उदाहरण?
स्वार्थ के वशीभूत हो ,तुम
हमको प्रभु शीश चढा़ते हो।
चापलूसी करने की खातिर,
नेता के गले हमें पहनाते हो।
प्रेमिका को रिझाने की खातिर,
उसके हाथों हमें थमाते हो,
पत्नी को मनाने के लिये,
उसके जूडे़ में हमें सजाते हो।
अपने त्योहार मनाने को,
हमसे बंदनवार बनाते हो।
प्रतिष्ठित व्यक्ति के स्वागत खातिर,
हमें उनके कदमों में बिछाते हो।
खुशबू से तर करने को पन्नें,
हमें किताबों में तुम दबाते हो।
सहानुभूति प्रकट करने को ,
हमको शव पर तुम चढा़ते हो।
अपनी अभिलाषा पूर्ति हेतु,
करके हमारा भाग्य निर्धारण,
पूछते हो हमारी अभिलाषा?
हम किसी से न रखते कोई आशा,
हम यदि अभिलाषायें पालेंगे,
तो पुष्प क्यों?पुरुष कहलायेंगे।
तुम्हारी प्रवृत्ति है ये कि,
मन में अनगिनत इच्छायें रखते हो,
फिर उनके टूटने पर ,स्वयं
टूटते और फिर बिखरते हो,
होते हो ,हताश,निराश,
होता है तनाव और अवसाद,
क्रोध में भर जाते हो,
मन में द्वेष का भाव भर,
निज स्वार्थ में अंधे होकर,
हत्यायें तक कर जाते हो,
आतंक फैलाते हो,
मासूमों को डराते,धमकाते,
उन्हें सताते और रुलाते हो।
झंझावतों से घबराते हो,
भावनाओं में बह जाते हो।
हम तो काँटों में भी मुस्काते हैं,
जहाँ होते वहाँ खुशबू फैलाते हैं।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'