कार्तिक पूर्णिमा पर ,
आज खिला खिला ,
मुस्कुरा रहा सुंदर चांद,
सजे धजे सारे तारे ,
खडे़ हुये हों मानों ,
पुष्प थाल
लिये स्वागत को,
चौदह वर्ष
का वनवास काटकर,
प्रभु लौटे जो हैं,
निज धाम।
सभी देव आनंदित हो,
मना रहे हैं आज दीवाली,
असुरों से सभी को
मुक्ति है जो आज मिली।
हर्षित हैं मातायें तीनों,
हर्षित और लज्जित है,
मंथरा बेचारी ,
जिनकी हर ली थी
मति माया ने सारी।
हर्षित और लज्जित है ,
माता केकई भी ,
अपनों कर्मों को याद कर,
रो रो मांग रही क्षमा ,
प्रभु अश्रु पोछते आलिंगन कर।
हर्षित सारी अयोध्या है,
सुअवसर जो आया है,
प्रतीक्षारत था सिंहासन ,
उस पर उन्हें बिठाया है।
सिंहासनारुड़ प्रभु ,
वो कमलनयन,
मुस्कुरा रहे शोभा सुख धाम,
उन्हें देख हर्षित हो,
झिलमिला रही,
जगमगा रही है शाम।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'