कहीं धूप ,कहीं छांव,
गुजरना दोनों से पड़ता है,
दोनों एक सिक्के के दो पहलू,
जीवन मे हैं जैसे ये तराजू,
जो संतुलन बनाते चलते हैं,
कभी सुख तो कभी विपत्तियां,
लेतीं हमारे धैर्य की ये परीक्षा।
कभी नवजात का आगमन ,
तो कभी मृत्यु का होता करुण क्रंदन
स्वीकारना दोनों को ही पड़ता है।
सुख हमें आनंदित करते तो,
दुख अपनों की पहचान कराते हैं,
पर हम खुश होते छाया पाकर,
पर धूप से विचलित हो जाते हैं।
धूप के बाद जैसे छाया,
वास्तविक आनंद दे जाती है,
वैसे ही दुख के बाद सुख की खुशबू,
आजीवन हमें महकाती है।
धूप होती संघर्षों का प्रतीक जो,
हमें और मजबूत बनाती है,
धूप ही होती है जो हमको,
मुसीबतों का सामना करना सिखाती है,
छाया तो दो पल की होती खुशियां,
छू मंतर हो जाती हैं,पर
धूप ,कठिनाई,विपत्ति ही ,
हमें ईश्वर के नज़दीक ले जाती है।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'