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ये इंसानी पर्दे

7 सितम्बर 2022

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ये इंसानी पर्दे


ये इंसानी चेहरे,
     ये पर्दे ,
इनके पीछे छिपे,
कितने राज गहरे।
      कितनी मासूमियत से,
       ये आइना बन जाते हैं,
       जो कोई देखता है इनमें,
       अक्स उसका ही दिखाते हैं।
ये इंसानी ,
   चेहरों के पर्दे,
          जिनके पीछे ,
    छुपी होती हैं ,
    कितनी गहराइयां,
अलग चेहरों की,
कुछ अलग ही सच्चाइयां,
इन पर्दों के पीछे,
कैसा चलता रहता है खेल,
      असंख्य फैली हुयीं बेल।
कोई चमकती हुयी,
आंखों के पीछे,
अपने आंसू छिपाता है,
    कोई मुस्कुराते अधरों में,
अपनी वेदनायें छुपाता है
    कोई छुपाता है चालबाजियां,
        कोई मक्कारियां,
कोई गद्दारियां,
   कोई अपना स्वार्थ छुपाता है।
बेवकूफ वही कहलाता है,
           जो कुछ न छुपाता है,
इस मतलबी जहां के फ्रेम में,
          फिट वही न हो पाता है।

प्रभा मिश्रा 'नूतन '





   

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

बहुत ही ईमानदार और खूबसूरत भावाभिव्यक्ति👌👌

17 सितम्बर 2022

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

17 सितम्बर 2022

धन्यवाद 🙏एक व्यू मेरी बुक 'स्त्री हूँ ना'पर दे दें 🙏🙏

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रचनाएँ
नूतन काव्य प्रभा
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मेरी इस किताब में समाजिक रचनाएं हैं
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जीवन का है सार क्या !!

19 अगस्त 2022
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सोचूं ,विचारूं ,करूं मनन , जीवन का है सार क्या? सबकी अपनी अलग परिभाषायें, अलग विचार और मान्यतायें। कुछ कहते जीवागमन, उत्पत्ति,प्रारंभ ही रुदन। तो क्या जीवन का सार यही?🤔 विस्तार यही,अभिसार यही🤔 कुछ म

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किरण बनकर

19 अगस्त 2022
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आया आलस्य ,आकर पसरा, देखकर नयनोन्मेष, द्वार भीतर किया प्रवेश। प्राची से चली तप्त पवन, उड़ते ज्यों सिकता कण, करते उत्पन्न एक चुभन। मानस हिरन दिनभर भटका, हर चिंतन के पीछे अटका, थकहार कर चूर हुआ, आकर यही

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भारती संस्कृति

19 अगस्त 2022
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परिचित पूरे ब्रह्माण्ड से, प्रारंभ से, हर प्रीति,रीति,रंग से , हर धूप ,छांव से, हर अंग से। साक्षी हूँ हर उस भाव की, जो शुद्धता में पले, वसुधा को कुटुम्ब मान, साथ सभी को ले चले। सुकून मुझे धर्म में, हर

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कहीं नहीं

19 अगस्त 2022
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प्राचीन मंदिर का वो प्रांगण, प्रवचन ,कीर्तन,भजन, आरती,शंख,और प्रसाद वितरण। लाखों का चढा़वा, दिख रहा था,मात्र दिखावा। वो पापी वृत्तियां, भोग प्रभु को लगा रहीं, और बाहर, दुखियारी एक, थी,भूख से छटपटा रही

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मोबाइल फोन

19 अगस्त 2022
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वो मोबाइल फोन से, असलियत कुछ इस तरह छुपाते हैं, प्रेमिका पूछती है -कहाँ हो जानू? कूडा़ गाडी़ लिये जाते जानू, खुद को 'आॅफिस में हूँ 'बताते हैं।🤣 **************************** आजकल मोबाइल फोन, जमाने की

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कहीं धूप कहीं छाया

19 अगस्त 2022
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कहीं धूप ,कहीं छांव, गुजरना दोनों से पड़ता है, दोनों एक सिक्के के दो पहलू, जीवन मे हैं जैसे ये तराजू, जो संतुलन बनाते चलते हैं, कभी सुख तो कभी विपत्तियां, लेतीं हमारे धैर्य की ये परीक्षा।

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झिलमिलाती शाम

19 अगस्त 2022
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कार्तिक पूर्णिमा पर , आज खिला खिला , मुस्कुरा रहा सुंदर चांद, सजे धजे सारे तारे , खडे़ हुये हों मानों , पुष्प थाल लिये स्वागत को, चौदह वर्ष का वनवास काटकर, प्रभु लौटे जो हैं, निज धाम। सभी देव आनंदित

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गोधूलि बेला

19 अगस्त 2022
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जा रहा है दिवाकर धरा के बाहु पाश से , अपने प्रभा रश्मियों,के &nbsp

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जीना है तो ...

19 अगस्त 2022
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जीवन है एक अंधेरा पथ जीना है तो चलना होगा । इतनी अकर्मण्यता, क्यों इतनी उदासी? लहरें तो लहरें हैं, यह सबके जीवन में आतीं, क्यों सोच रहे दिन ही दिन आये? रात कहां आश्रय पाये? चलना है तो संभलना होगा। अ

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मानवता का फर्ज

19 अगस्त 2022
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जीवन कानन , तिमिर आच्छादित , है राह सघन। धैर्य मां की, उंगली थामें, संचित कर , एक -एक उम्मीद किरन कदम , फूंक-फूंक कर, बढा़ना है। समक्ष खडे़ अगिन सवाल, समय गर्भ में , है जिनका हल, क्यों विकल रे

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बुढा़पा

19 अगस्त 2022
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जब श्वेत सूर्य रश्मियां, केशों को अपने रंग में , रंग ज्यों चमकें,मुस्कायें। &nb

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जादू की झप्पी

19 अगस्त 2022
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चाहिए उन्हें भी जादू की झप्पी, आपकी,जो हो गये हैं, कोरोना काल, में मासूम अनाथ, चाहिए उन्हें भी, अपने सिर पर, फिरता ममता का हाथ। चाहिए उनके , जीवन को किनारे। उनकी भी चाहत, कोई हमारा , भी भविष्य संवार

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जादू की झप्पी

19 अगस्त 2022
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एक जादू की झप्पी ,एक आलिंगन, भर जाता है प्रसन्नता से पूरा मन। रोम-रोम में एक नयी पुलकन। एक ताजगी का अहसास ,एक उमंग। जैसे घोला गया हो स्नेह में मधु और मिसरी होती है न अनुभूति,कुछ ऐसी ही। ऐसा अहसास जैसे

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जिसकी लाठी उसकी भैंस

19 अगस्त 2022
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जिसकी होती है लाठी , भैंस वही ले जाता है। योग्य मारा मारा फिरता , मंत्री आठवीं फेल, बन जाता है। हिंदी भी न सही से बोल सके, वो शिक्षित करने की बात करे। सब मलते पांव में तेल , भैसा गद्दी पर बैठा मुस्कुत

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फिर पापा ने

19 अगस्त 2022
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भारोत्तोलन का पुरस्कार जीत कर, कह रही थी वो,सबसे रौब में भर, कितनी भी हों चीजें भारी, मैं उठा सकती हूं सारी। तभी तो चमक रहा, मेरे सिर पर ताज। वहीं खडा़ था,एक बच्चा बहुत उदास, बोला -मेरा दिल उठाकर, अपन

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रोया वो इस कदर

19 अगस्त 2022
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रोया वो इस कदर, माँ-बाप के देहांत पर, अनाथ था हो गया, टूटा वो बिखर कर। शैशव वो राह थी, हाथ कोई थाम ले, किसको ये चाह थी? तीन दिवस वो फिरा, न मिला मदद का सिरा। भुभुच्छा थी उफान पर, थी चीख-चीख कह रही, कु

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जीवित प्रमाण पत्र

4 सितम्बर 2022
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वो लिवाने आया है मुझे,भरवाने के लिये ,जीवित प्रमाण पत्र,जिनकी नज़रों में मर चुका था मैं,होते ही सेवानिवृत्त।छीननीं जो हैं मुझसे,मेरी पेंशन की सारी गोटियां,चूसनी जो हैं उसे अभी भी,मेरी बूढी़ हो चुकी बो

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गोधूलि बेला आई है

4 सितम्बर 2022
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जा रहा है दिवाकर धरा के बाहु पाश से ,अपने प्रभा रश्मियों,के सभी कर विलग कर।कर रहा है गमन,वो &n

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हार गए वो

4 सितम्बर 2022
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वो रौशन हुये, सारे जहाँ में, अपने गुणों के, उजेरों से। हार गये वो, अपनी संतानों, के कुकृत्यों, के अंधेरों से। तेल और बाती बन, लड़ते रहे वो, उनकी खातिर, संघर्षों के, हर थपेडो़ं से, पर हार गये , वो संता

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हमारी अभिलाषा

4 सितम्बर 2022
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क्या लेकर मन में आशा,? पूछ रहे हो हमारी अभिलाषा। तुम्हीं अपनी आकांक्षायें लेकर, करते हमारा भाग्य निर्धारण, चाहिए?दूं उदाहरण? स्वार्थ के वशीभूत हो ,तुम हमको प्रभु शीश चढा़ते हो। चापलूसी करने की खातिर,

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नौ दो ग्यारह

4 सितम्बर 2022
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तीनों ही हैं दुखित बहुत,जिनकी आंखों के सारे सपने,एक एक कर टूट गये।पार हो जाती नैया लेकिन,किनारे ही रूठ गये।किसकी तरफ देखें आशाओं से,किसे कहें कि वो है हमारा,उनकी खुशियां सारी हो गयीं,देखो न नौ दो ग्या

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घिसी हुई चप्पल

4 सितम्बर 2022
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पहले,घिस रही थीं चप्पलें,बेटी हेतु,सुयोग्य वर पाने के लिये।अब,घिस रही हैं चप्पलें,उसे ,उस रिश्ते से,मुक्ति दिलाने के लिये।***************************घिसी हुयी चप्पले ,दर्शाती हैं कि ,वोदिन -रात मेहनत

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आँगन में चारपाई

4 सितम्बर 2022
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आंगन में चारपाई , कभी साक्षी थी , प्रसव वेदना की, नवजात के आगमन की।  आपसी सानिध्य की , परस्पर प्रेम की, मिलन की,शुभ चिंतन की, भावों के मधुर संगम की।  मिठास की,विश्वास की, स्नेहसिक्त छुअन की, ज्ञान

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तो क्या हुआ जो...

4 सितम्बर 2022
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उन पति-पत्नी में,गजब का नाता था,दोनों हर पल साथ रहते,साथ सुख बांटते,साथ दुख सहते,वह उनके ,और वहउसके मन की,हर बात समझ जाता था।वह अपना कर्तव्य,पूरी निष्ठा से वहन करती,तन और मन से,हर सांस और धड़कन से,पूर

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बिंदिया

4 सितम्बर 2022
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मां के सुंदर,उन्नत,ललाट पर उदित,नवजात शिशु सूर्य,सी चमकती हुयी ,बिंदिया ,उनकी शोभा,कई गुना बढाती थी,जिसे देख ,खुश हो जाता था ,मैंमन आनंद,से भर जाता था।याद हैं वो मुझे अभी ,बचप

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खुला आसमान

4 सितम्बर 2022
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वो डालों के पंक्षी जो,जो निहारते थे,खुला आसमान,उत्साह से निखरते थे,भरते थे वो उडा़न।बडे़ तड़के ही उठ जाते थे,खुला आसमान देख चहचहाते थे।संग लिये झुंड साथियों का,पूरा आसमान नाप आते थे,आज पिंजडे़ मे कैद

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शिक्षक दिवस विशेष

5 सितम्बर 2022
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एक तू ही है गुरु,जो दूर कर विकार,दे सके आकार,प्रदान कर ज्ञान,बना सके महान।🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏नैतिकता की नींव रख,सदाचार सिखाती है ,वो माँ ही है जो,प्रथम गुरु कहलाती है।🙏🙏🙏🙏🙏🙏दर्पण सच्चा शिक्षक जो,अपना

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निल बटे सन्नाटा

7 सितम्बर 2022
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हर क्षण देती रही,एक नया इम्तेहान,छूना चाहा मैंने,सफलता का पायदान।तूने उडा़या ,सदा उपहास,पर न छोडा़ मैंने मैदान।खुशियों का एक कतरा भी,फिर भी कहां हासिल कर पाई।तेरी नज़र में ऐ नियति ,मैं तो निल बट

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करने को प्रभास

7 सितम्बर 2022
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करने को प्रभास, लेती हूं तिमिर ग्रास। पुनर्जागरण हेतु, किसी को तो जलना होगा। उपहास,हास ,हानि, सिर माथ मलना होगा। कि,पतन में ही किसी के, उत्थान छुपा सभी का। प्रभा मिश्रा 'नूतन'

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बच्चों की किलकारियाँ

7 सितम्बर 2022
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जहां गूंजती थीं कभी ,बच्चों की किलकारियां,आज गहन सन्नाटे,पसरे हैं वहां।न जाने कैसी कैसी बीमारियां,लील गयीं कितनी शिशु जिंदगियां,बुझे कितने आंगनों के दीप,छीन लीं दैव ने ,न जाने कितनों की खुशियां।वहीं,क

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बच्चों की किलकारियाँ

7 सितम्बर 2022
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रोशन हो जाता है घर,आंगन और समां,जब गूंजतीं हैं ,बच्चों की किलकारियां,मिट जाती है ,सारी प्रसव वेदना।एक उमंग आ जाती है,जीवन बगिया ,जैसे चहक जाती है।उमड़ उठती है,मां की ममता,पिता का वात्सल्य,हर दिवस एक,उ

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ये इंसानी पर्दे

7 सितम्बर 2022
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ये इंसानी पर्देये इंसानी चेहरे, ये पर्दे ,इनके पीछे छिपे,कितने राज गहरे। कितनी मासूमियत से, ये आइना बन जाते हैं, &n

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एलियन

7 सितम्बर 2022
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आजकल इंसान समझ न आ रहा है,इंसान नहीं,बाकी सब बनता जा रहा है।कभी जानवर ,तो कभी हैवान कभी वो ,शैतान नज़र आ रहा है ,क्या होता जा रहा है?न समझ आती है नियत ,न आचरण ,न मन,न दिखते हैं&nb

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दोनो ही जलते रहे

7 सितम्बर 2022
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घर गृहस्थी एक दीपक,तुम तेल मैं बाती,साथ साथ चलते रहे,दोनों ही जलते रहे।जितने भी गम के साये,अपने नीचे रहे छुपाये,वो संस्कारों में पलते रहे,हम दोनों ही जलते रहे।कठिनाइयों के कितने कुहासे,सब सहे,सुलगे धु

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खोजने चले वो खुशियों के ठिकाने

7 सितम्बर 2022
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खोजने चले वो, खुशियों के ठिकाने,जो अपनों के दुख का कारण, बने,किसी न किसी बहाने।जो अपने थे पालक, थे आश

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धन्य हैं गुरुवर 🙏

5 सितम्बर 2023
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सड़क पर पडा़, तो मारते हैं लात। मंदिर में खडा़, तो जोड़ते हैं हाथ। फर्क है नसीब का, एक है अशिक्षित, तो दूसरा है, पूर्ण शिक्षित,दीक्षित। गुरु का सानिध्य पा, लोग बनते हैं विद्वान, पाते हैं मान सम्मान। उ

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