प्राचीन मंदिर का वो प्रांगण,
प्रवचन ,कीर्तन,भजन,
आरती,शंख,और प्रसाद वितरण।
लाखों का चढा़वा,
दिख रहा था,मात्र दिखावा।
वो पापी वृत्तियां,
भोग प्रभु को लगा रहीं,
और बाहर,
दुखियारी एक,
थी,भूख से छटपटा रही।
प्रभु,
प्रसाद से थे पटे हुये।
और भूख से,
दुखियारी के,
थे पेट पीठ मिले हुये।
क्या वास्तव में,
था देव सबके गहन ध्यान में,
कि एक पत्तल उसे दें,
नहीं जुडा़ किसी के ज्ञान में?
आशाओं की आस मिटी,
अश्रुधार बह चली।
खुद को दे सांत्वना,
देखती कि रात हो चली।
सहसा द्वार खुला देख,
डरते दबते किया प्रवेश।
बैठकर श्री चरणों में,
बोली बहुत भूखी हूँ,
प्रभु मुझे भी साथ खिला ले।
उसका बस छूना चरण भोग,
कि आहट से पुजारी जागकर,
चोरी करता जानकर,
बेरहमी से पीटकर,
राहत की सांस ली,
सीढि़यों तक खदेड़कर।
वह कराह कर बोल उठी,
वाह प्रभु तेरी माया,
दुनिया निर्दयी व्यवहार कर,
दया की भीख मांगती,
औरों का सुकून हर,
अपना सुकून तलाशती?
भूखा है तू भी,
भूखी हूँ मैं भी,
पर तेरी बसाई दुनिया में,
अब स्नेह भाव कहीं नहीं।