सुखद यादें दीवाली की*****
दिवाली के 3 दिन ही बचे थे सबके घरों में सफेदी,रंगाई-पुताई हो चुकी थी । मैंने भी रंग-रोगन तो नहीं पर साफ-सफाई अपने हिसाब से निपटा ही ली थी । गृहनगर के कस्बे में हम दोनों पति-पत्नी अपने नियम के तहत पितृपक्ष से 2-4 दिन पहले आ गये थे जैसे साइबेरियन पक्षी प्रवास से वापस आ जाते हैं । फिर सभी पारम्परिक त्योहार निपटा होली बाद वापस बच्चों के यहां परिभ्रमण में । अपनी जड़ों में वापस आने का सुख भुक्तभोगी विरला ही समझ सकता है ।
पोते-पोतियों के फोन आते दादी क्या कर रही हैं? मेरा मन कुछ उदास सा हो जाता ,"बेटा करना क्या है ?बस दीवाली की तैयारी कर रही हूं । मैं परिवार में सबसे छोटी होने के कारण सास जी के साथ रहने से सभी त्योहार पारम्परिक रूप से मनाती । पास के घरों की जलती दीपपंक्ति देख एक सक्रियता आ जाती अमुक के घर में दीप जल गये चलो बच्चो फटाफट ।
अभी लाइट न जलाना दादी जी सप्तदीप पूजन कर मंदिर में रखवा दें तब लाइट जलाना।
मैं सप्तदीप सुन सोचती शायद अम्मा जी सातो द्वीप के अंधेरे को दूर करने की भावना से कर रही हों ।कुछ भी रहा हो बहुत मनमोहक लगता ।अम्मा जी कहतीं,"बहू जरा जल्दी से पूजन का सामान जुटाओ अभी कितना कुछ करना है? उस मीठी डांट को सुन मुस्कान आ जाती । अं
आज किसके पास समय है इन मान्यताओं के लिये पर अपनी संस्कृति और संस्कारों से ही तो बाहर अपनी पहचान होती है । पोते-पोतियां फोन में कहते ,"दादी जी कुछ तैयारी हमको भी तो बताइए" ।
"अरे वहां से क्या कर दोगे , यहां होते तो बताती । आजकल तो सब बातें बनाना खूब सीख गये हैं । अकेलेपन के आक्रोश से भुनभुनाते हुए फोन रखी ही थी कि तभी डोर बेल बजी मैंने अपने पति से कहा देखिए जी कौन है शायद दूध वाला होगा और अंदर जाने को 2 कदम गयी थी कि सभी बच्चों की खिलखिलाती खनकती आवाज मेरे कानों में पड़ी, दादी!! नानी!! दादी!! नानी!! करते चारों तरफ घर गुंजायमान होने लगा मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे बच्चों का बचपन फिर से लौट आया हो और चारों तरफ से जो घर सन्नाटे की नीरवता से भरा था पलभर में चहकने लगा ।
तभी मेरे पति ने डोर से ही आवाज दी अरे नीरा बाहर तो आओ देखो तो कौन आया है 🥰 दादी नानी करते सभी बच्चे लिपट गए। अरे मैं परिचय तो दे दूं मेरे दो बेटे और 1 बेटी है । वैसे हमारा नियम है कि दीवाली घर (कस्बे ) में ही मनायें पर कोविड की मजबूरी के चलते हम लोग भी दीपावली में नहीं आ पाए थे ।
मैंने मन ही मन ईश्वर को प्रणाम कर धन्यवाद दिया सद्बुद्धि देने को, जो ऐसा सरप्राइज दिया । बच्चे आते जरूर थे पर इधर काम की व्यस्तता के कारण नहीं आ पा रहे थे । बेटी भी यूएसए से दीपावली में अपनी ससुराल आई थी ।बच्चों को दिल्ली में बेटे के पास छोड़ भाईदूज को आने को बोल गयी थी । तीनों बच्चों के दो-दो बच्चे इनका उत्साह देखते ही बन रहा था ।
बच्चों के आने से एक अलग ही स्फूर्ति आ गयी थी । बहुओं ने पैर छुये मैंने गले लगाकर कहा," अरे तुम लोग कैसे बिना सूचना के आ गए तभी मेरी पोती जो थोड़ी बड़ी थी बोली, दादी जी तभी तो आपको मजा आया ना? वैसे तो आप टेंशन में रहतीं । चलिए बताइए कौन सा काम है अभी हम करते हैं । हमारे श्रीमान जी बैठक में बैठे समाचार देखते रहते थे आज तो बच्चों को साथ ले घूमने निकल दिए मैं भाव विभोर हो गयी
तभी बाहर से मिट्टी के दीए बनाने वाली रमिया की बहू ,पाय लागूं काकी ,"काकी दिया ले लो पिछले साल आप नहीं थी तो मेरे दिया की इस बार भरपाई करो ।
"अरे पैसे ले लेना जितने तुझको लेना हो"। "नहीं मैं तो दिया देकर जाऊंगी अच्छा दे दो जितने तेरा मन करे मानेगी तो है नहीं मैं हंसते हुए बोली ।
"डेढ़ सौ दे दूं नहीं तभी मेरे बड़े बेटे ने आकर कहा नहीं भौजी 200 दे दो ,कितने के हुये? बोली न देवर जी मैं तो त्योहारी लूंगी। मैने 1ऊनी साल व 100 रुपये देते हुए कहा ले अब तो खुश है । पाय लागूं काकी !!त्योहार में यहीं आया करो हमें भी साल भर उम्मीद रहती है काकी हमारे लिये भी कुछ लेकर आयेंगी
अभी दिवाली आने में 3 दिन थे बच्चों ने मिलकर काम की कमान संभाल ली थी । अन्नू, कृष्णा दिया धुल रहे थे । रिया,जिया बाबा जी के साथ मंदिर की साफ-सफाई में लगीं थीं । दोनों बहू ने किचेन संभाल लिया था । मैंने शक्करपारे, गुलाब जामुन ,नमकीन मठरी, पोहा की नमकीन ,चकली, दाल के समोसे खस्ता,दही बड़े आदि पहले बनाकर रखे थे बस दही में डुबोने थे वर्षों की आदत लगी थी । । उन दोनो ने सारा काम संभाल लिया था।
तभी मेरी बेटी का बेटा बोला,"नानी जी आपको कोई काम नहीं , आप मुझे दीवाली के बारे में बताइए क्यों मनाई जाती है । जिससे मैं अपने दोस्तों को बता सकूं ,आइ लव माय इण्डिया !!यह तो बहुत समझदार हो गया है ।
दीपावली का क्या अर्थ है ये क्यों मनाई जाती है ,इसे दीप पंचोत्सव क्यों कहते हैं ? तुम सभी ध्यानपूर्वक सुनो । दीवाली के बारे में अनेकों कथाएं युग-युगान्तरों से जुड़ती चली आ रही
है ।
दीपावली का अर्थ है दीप+अवली (दियों की पंक्ति) दीपमालिका ।
दीपों की झीलमिलाती, जगमगाती रोशनी वास्तव में दूसरों को खुशी देने की, बुराई पर अच्छाई की , असत्य पर सत्य की , अंधकार पर प्रकाश की , अधर्म पर धर्म की, अज्ञान पर ज्ञान की और निराशों के दिल में आशा का दीप जलाने की सच्चे अर्थों में दीपावली है ।
तभी तो मेरे पिताजी बचपन में मुझे एक श्लोक सिखाते जो मैं दिया जलाते समय करती हूं ।
शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धन संपदाम्।
शत्रुबुद्धिविनाशय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
इसका अर्थ है ****
मैं दीपक के प्रकाश को नमन करती हूं। यह प्रकाश शुभ कल्याणकारी ,आरोग्यदायी, धन एवं संपदा प्रदान करता है। यह दीप ज्योति अंधकाररुपी अज्ञान का विनाश करती है मनुष्य का अज्ञान ही उनकी बुद्धि एवं विवेक का शत्रु
है ।"
दादी जी दिया जलाना तो बहुत अच्छी बात है ।तभी तो बेटा मैं सिखाती हूं कि अपने जन्मदिन पर मोमबत्ती बुझाओ नहीं जलाओ यही तो हमारी संस्कृति (कल्चर) है।
"ज्योतिर्मय तमसोगमय"(अंधेरे से उजाले की ओर जायें)
दीपावली को पंचदिवसीय त्यौहार क्यों कहते हैं "देखो बेटा !! दीपावली का पर्व हिन्दी माह के कार्तिक मास की अमावस्या को होता है ।
यह दो दिन पहले धनतेरस से शुरू हो जाता है कल धनतेरस है। कार्तिक की तेरस को ,धनवंतरी जी जो देवों के चिकित्सक (डाक्टर)हैं वे समुद्र मंथन से अमृत कलश के साथ निकले थे । इससे उनकी पूजा की जाती है। अभी मैं शार्ट (संक्षेप) में ही बताऊंगी ।
इसके दूसरे दिन नरक चौदस को श्री कृष्ण भगवान ने नरकासुर मारा था । इसको रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग उबटन, तेल मालिस कर अपने शरीर को स्वच्छ करते हैं ।कुछ लोग इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं । इस दिन मृत्यु के देवता यमदेव की पूजा भी होती है ।
उसके दूसरे दिन बड़ी दीपावली का पर्व होता
है ।
दीपावली के दूसरे दिन प्रथमा को अन्नकूट गोवर्धन पूजा के दिन के रूप में मनाया जाता है। इसकी कहानी भी फिर कभी बताऊंगी ।
दीप पंचोत्सव के पांचवें दिन हम भाई दूज का त्यौहार मनाते हैं । इस दिन बहनें अपने भाई की मंगल कामना के लिए माथे पर रोली , हल्दी ,अक्षत का टीका लगाती है उनका मुंह मीठा कर दीर्घायु की कामना करती हैं । भाई बहन को कुछ उपहार देकर पैर छूते हैं । यही तो अपने देश की सुंदर सी परंपरा है
दीपावली के त्यौहार में बहुत से उद्देश्य छिपे हैं "बेटा जो हमारे कामगार हैं उनको हम प्रोत्साहन भी देते हैं देखो कितनी मेहनत से, कैसे सुंदर-सुंदर इन्होंने दिए बनाए हैं ।आज शहरों में मालसंस्कृतिकरण होने से इनको बहुत ही दिक्कत होती है यहां एक दूसरे के आदान-प्रदान से ही जीवन चलता था इससे सामाजिक सद्भाव व स्नेह जुड़ाव रहता था । इसी बहाने साल भर की साफ-सफाई हो जाती है । भाई को बहनों के आने का इंतजार रहता
है ।
मैं तुम्हें बताती हूं कि दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है??
तभी अन्नू बोल पड़ा, "हां नानी जी मुझे पता है दीपावली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है ? इस दिन भगवान राम जी 14 वर्ष का वनवास पूरा करके और राक्षस राज रावण को मार कर अपने नगर अयोध्या लौटे थे ।अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में पूरे नगर को दियों से सजाया था ।उस दिन अमावस्या की काली रात्रि दीपप्रकाश से जगमगा गई थी यह बात मेरी मम्मी ने मुझे बताई" ।
यह तो बहुत अच्छी बात है आज मुझे लगा यदि हम बच्चों को समय-समय पर अपनी संस्कृति के बारे में बताते रहें तो उन्हें भी गर्व होगा खेल-खेल में संस्कृति आगे बढ़ती रहेगी ।
तभी रिया बोली," दादी जी दादी जी !!मैं भी बताऊं दीपावली के दूसरे दिन प्रथमा को हमारे अहमदाबाद में गुजरातियों का नया वर्ष होता
है "। "बेटा यह भी बहुत अच्छी बात है चलो तुम्हे भी गुजराती नववर्ष की जानकारी है ।
कार्तिक अमावस्या के शुभ दिन समय-समय पर बहुत से ऐसे कार्य हुए थे जिनकी याद में खुशी मनाते हैं ।
1***
दीपावली का त्यौहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है, इस दिन समुद्र मंथन हुआ था जिससे 14 रत्न समुद्र से निकले थे ,इन 14 रत्नों में एक मां लक्ष्मी भी थीं । मां लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी कहा गया है । उनके स्वागत में दिये से रोशनी की जाती है । यह सतयुग का समय था ।
2***
महाभारत काल में कौरवों से चौपड़ (शतरंज) के खेल में छल से हारने के बाद 13 वर्ष के वनवास के बाद पांचो पांडव जब राज्य लौटे ,उस दिन भी कार्तिक अमावस्या का दिन था तो लोगों ने खुशी मनायी ।ये द्वापर युग था ।
ये नरकचौदस की कहानी है ।
द्वापर युग का प्राग्ज्योतिषपुर ( इस समय का असम) कामरूप राज्य में शक्तिशाली एवं दुष्ट राजा नरकासुर का राज्य था । उस दुष्ट ने 16000 निर्दोष राजकुमारियों का अपहरण (किडनैप)कर लिया था उसके धार्मिक आचरण से कुपित ,श्री कृष्ण भगवान ने राक्षस को मार मुक्त कराया था । तामसिक तत्वों पर सात्विक तत्वों की विजय का उत्सव था ।
3***
14 वर्ष का वनवास पूरा कर व राक्षसराज रावण का वध करने के बाद रामचंद्र जी के कार्तिक अमावस्या को अयोध्या आने पर स्वागत में अयोध्यावासियों ने पूरी नगरी दियों से सजायी थी ,उसी याद में दीवाली मनायी जाती है।
4***
विक्रमादित्य का राज्याभिषेक भी कार्तिक अमावस्या को ही हुआ था । हमारा विक्रम संवत उन्हीं के नाम से जाना जाता है । वे मुगलों को हराने वाले ,बहुत ही उदार व साहसी अंतिम शासक थे ।
5***
इस त्यौहार को सिख समुदाय के लोग अपने छठवें गुरु श्री हरि गोविंद जी के जेल से मुक्त होने की खुशी में यह त्यौहार मनाते हैं ।
हरि गोविंद जी सम्राट जहांगीर की कैद में, ग्वालियर जेल में थे ।
6***
जैन परंपरा के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी को दीपावली के दिन ही निर्वाण प्राप्त हुआ था ।उन्होंने बिहार के पावापुरी शहर में अपनी देह त्याग जीवन और मृत्यु के इस चक्र से मुक्ति प्राप्त की थी । उनके अनुयायियों ने इस दिन अंधकार को दूर करने हेतु दीप प्रज्वलित कराये थे ।
यह दीपोत्सव हमें सच्चे अर्थों में ज्ञान की खोज करने की प्रेरणा देता है ।
7***
दीपावली के पवित्र दिन भगवान विष्णु ने वामनअवतार के रूप में पातालराज बलि को मोक्ष प्रदान किया था । मैं कभी तुम लोगों को द्वादश अवतारों की कथा बताऊंगी । उन्होंने अपने 2 कदमों से पृथ्वी को नाप लिया था ।त्रिविक्रम वामन ने अपने पहले दो कदमों से स्वर्ग और पृथ्वी को नाप लिया राजा बलि समझ गए कि यह स्वयं भगवान विष्णु है वामन ने स्वयं तीसरे पद को रखने के लिए अपना मस्तक झुका दिया ।
यह अभिमान के अंत का प्रतीक है ।
8***
दीपावली की रात्रि को काली की पूजा भी की जाती है । यह पूजा बंगाल में बहुत ही प्रचलित है ।मां काली तामसिक शक्तियों का विनाश कर सात्विक शक्तियों को विद्यमान करती हैं ।इसकी भी एक कथा है असुर रक्त बीज के अत्याचार बढ़ जाने पर उसको मारने के लिए मां काली ने उसके शरीर से गिरने वाली रक्त की प्रत्येक बूंद अपनी जीभ पर लेतीं और राक्षसों का जन्म उनके मुंह में होता जाता मां काली सभी का भक्षण करतीं जातीं ।जब उसके रक्त की एक भी बूंद नहीं बची तब वह निश्चेष्ट होकर गिर गया ।
"दादी जी इसका नाम रक्तबीज क्यों पड़ा"?? "हां बेटा!! इसकी भी एक कहानी है ।रक्तबीज के बारे में कहा जाता था जब भी उसके शरीर से खून की एक बूंद धरती पर गिरती तभी उसके जैसे एक राक्षस का जन्म हो जाता था ।
हमारे अंदर की बुराई ही रक्तबीज राक्षस है"।
तभी छोटी बहू ने आवाज दी मम्मी जी आइये भोजन करिये बच्चों को भी ले आइयेगा । "वाह!! दादी जी आज तो मजा आ गयी । अब तो हम हर त्योहार पारम्परिक रूप से ही मनायेंगे और आपसे कहानी सुनेंगे"।
भोजन के बाद छोटे बेटे ने कहा, "चलो बच्चो कौन से पटाखे लाने हैं "। चाचा जी हम इस बार थोड़े से ही पटाखे लायेंगे जिससे कम प्रदूषण हो।
"अरे वाह बेटे तुमने तो पैसे ही बचा दिये "।
"पैसे नहीं अपनी सेहत, साथ ही हम बाकी पटाखे के बजट के पैसे से मिठाई व कपड़े लाकर अपने कामवालों की बस्ती में देकर आयेंगे तभी सच्चे अर्थों में दीवाली का प्रकाश फैलेगा ।
"अरे बालको तुम सब बड़े सयाने हो गये हो "।
भाई दूज पर बुआ के आ जाने से सबकी खुशी और बढ़ गयी ।
जाते समय बच्चे बहुत खुश व दुखी थे फिर मिलने का वादा करके गये ।बहुएं कह रहीं थी इस बार बच्चों ने किसी तरह की जिद नहीं की न खाने-पीने में न पटाखों में ।कैसे भाग-भाग कर उत्साह से दिया सजा रहे थे। सभी ने कहा पापाजी मम्मी जी बहुत-बहुत धन्यवाद। धन्यवाद बेटा अपनों को कैसा बस अपनों का साथ दिया जाता है ।
आज सभी को गये 2 दिन हो गये हैं ।
इंसानों व रिश्तों की माया होती है मिलकर इन पर्वों की खुशी दुगनी हो जाती हैं ।आज के बच्चे जिद्दी नहीं वरन अधिक तेज व समझदार हैं ।एकल परिवार में वर्किंग माता-पिता को ध्यानाकर्षण कराते वे कब जिद्दी हो जाते हैं उन्हें खुद नहीं पता लगता है । बहुएं खुशी से गृहकार्य कर लें सयाने यथाशक्ति बच्चों का सहयोग करें तो समाज की दशा और दिशा अलग होगी ।
बच्चों के आने से घर ,घर हो गया था । शायद हमारे पूर्वजों का त्यौहार मनाने का उद्देश्य आपसी मेल-मिलाप रहा होगा । दूर होने से दूरियां और भी बढ़ती जातीं हैं ।बच्चे तो कच्ची मिट्टी हैं जैसा वातावरण आपसी व्यवहार देखेंगे वैसा ही अनुकरण करेंगे ।हमारा दायित्व बनता है आपसी मेल से उन्हें पारिवारिक सुरक्षित व संरक्षित वातावरण दें जिससे वे उस संस्कार को अपने अनुभव से आत्मसात कर सकें।
दीपावली की मंगलकामनाओं के साथ 🙏🙏
स्वरचित डॉ विजय लक्ष्मी