शीर्षक -- फसल/ समानार्थी (एच्छिक मापनी)
“दोहा मुक्तक”
जब मन में उगती फसल, तब लहराते खेत
खाद खपत बीया निरत, भर जाते चित नेत
हर ऋतु में पकती फसल, मीठे मीठे स्वाद
अपने अपने फल लिए, अपने अपने हेत॥-1
कभी क्रुद्ध होती हवा, कभी फसल बीमार
गुर्राता है नभ कभी, कृषक कर्म आधार
आस लगाकर खेड़ता, जुतकर अपने मेड़
नमन शमन बदरी तपे, माँ धरती रखवार॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी