“दोहा-मुक्तक”
नित मायावी खेत में, झूमता अहंकार।
पाल पोस हम खुद रहे, मानों है उपहार।
पुलकित रहती डालियाँ, लेकर सुंदर फूल-
रंग बिरंगे बाग से, कौन करे प्रतिकार॥-१
पक्षी भी आ बैठते, तकते हैं अभिमान।
चुँगने को दाना मिले, कर घायल सम्मान।
स्वर्ण तुला बिच तौल के, खुश होत अहंकार-
चमक धमक नजरें चढ़ा, को ताके अपमान॥-२
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी