🌿दिनांक :- 25/06/22🌿
🌺सुनों न! दैनन्दिनी,
सीखत सीखत सीखेंगें,
तो भर भर डलिया पीसेंगें।
पुरानी कहावत है। जिसका अर्थ है कि निरंतर अभ्यास से सीख जाएंगे और जब सीख जाएंगे तो डलिया भर भर कर अनाज पीसने के काबिल हो जाएंगे।
पहले के समय में अनाज को हाथ से ही चकिया (हाथ की चक्की) से पीसा जाता था। महिलाएं सुबह-सुबह सूरज उगने से पहले ही पीसना शुरू कर देतीं थीं। कभी-कभी दो तीन महिलाएं साथ में भी पीसतीं थीं। बारी-बारी से चकिया घुमातीं थीं। और साथ साथ गाना भी गातीं थीं। जिससे उनका काम करने के साथ-साथ मनोरंजन भी हो जाता था। फिर कोठी (मिट्टी के बने हुए बर्तन) में आटा भर देतीं थीं।
उसके बाद पर खाना-पीना बनाना, पशुओं की देखभाल करना, खेत खलिहानों का भी काम करना, बच्चे संभालना।
कितनी मेहनत करतीं थीं पहले की महिलाएं।
बड़े-बड़े घर होते थे उनको गोबर से लीपा जाता था। दूर-दूर से कुएं से पानी भर लातीं थीं। वो भी सिर पर मटके के ऊपर मटके को बड़े ही सहजता से रख कर चल लेतीं थीं।😳
बहुत खूब👌🏻
आज बस इतना ही,
कल मिलते हैं....😊