काफ़िया- आ स्वर रदीफ़- रह गया वज्न- २१२ २१२ २१२ २१२ फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
"गज़ल"
ले उधारी करज छाँकता रहा गया
खोद गड्ढा बनी भीत उसकी कभी
जिंदगी भर उसे पाटता रह गया।।
दूर होते गए आ सवालों में सभी
हल पजल क्या हुई सोचता रह गया।।
उमर भर की जहमद मिली मुफ्त में
ढाँककर फल रखा बाँटता रह गया।।
हर शितम अपने माथे पे मढ़ता गया
थी न स्याही मगर पोछता रह गया।।
वो न कागज लिखा ले कलम हाथ में
जो वसीयत मिली बाँटता रह गया।।
आदमी सा दिखा शख्स गौतम खड़ा
नींद आई कहाँ जागता रह गया।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी