काफिया- अर, रदीफ़- जाते , वज्न- 1222 1222 1222 1222
गीतिका/ गजल
बहुत अब हो गई बातें, बहुत अरमान शुभ रातें
विवसता ले कदम चलते, खुशी बरबाद कर जाते
यही कहता रहा दुश्मन, कि दामन पाक है उसका
मगर उसके महकमे ही, दुसह अपराध कर जाते॥
कहूँ कितना दिखाऊँ क्या, छुपी नापाक हरकत को
वतन के नाम पर हल्ला, नियति बदनाम कर जाते॥
मदरसे में रखी पुस्तक, न खुद किरदार पढ़ पाती
मरहला खुद कहाँ लिखता, लहू अखबार भर जाते॥
असलहे हाथ से चलते, नकाबों से तनिक पूछो
न मुर्दा खुद हिला करते, कब्र में तर बतर जाते॥
रखें हम धैर्य का दरिया, पढ़ो तो खोलकर आंखे
खंजर पीठ पिछे दुश्मनी, कई इंसान मर जाते॥
सुन अब गौतमी चाहें, वतन के प्राण पर हमला
क्षमा हक ना मिले कातिल, करम निरवाण हर जाते॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी